जीवनी/आत्मकथा >> क्रिकेट का महानायक सचिन क्रिकेट का महानायक सचिनराजशेखर मिश्र
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अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बनाये गए 87 शतकों और लगभग 30 हजार रनों ने उनके कद को बड़ा ही नहीं अपितु विशाल बना दिया है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सचिन तेंदुलकर और क्रिकेट एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं।
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में बनाए गए 87 शतकों और लगभग 30 हजार रनों ने
उनके कद को बड़ा ही नहीं अपितु विशाल बना दिया है। अब वह महामहिम हो गए
हैं। क्रिकेट जगत के इस महानायक ने क्रिकेट इतिहास के लगभग सारे रिकॉर्ड्स
अपने नाम दर्ज करा लिए हैं और हर एक मैच में एक नया कीर्तिमान स्थापित
करते जा रहे हैं।
श्रीमान सचिन
1989 था वह साल। भयंकर सर्दियां पडी थीं तब।
दौरा भी
दुश्मनों की सरज़मीं का था। उनकी टीम में एक से बढ़कर एक धुरंदर गेंदबाज
थे–इमरान ख़ान, अब्दुल कादिर, वसीम अकरम और वकार यूनुस। इन
खूंखार
खलीफाओं के सामने मुकाबले के लिए उतार दिया गया था एक बच्चे को। उम्र थी
सिर्फ 16 साल। माहौल भी खूनी और सामनेवाला भी खूनी। इधर था छोटे कद का
बालक, जो वीर भी था, समझदार भी। तेज भी था और मानसिक रूप से दृढ़ भी। यह
उसका पहला अंतर्राष्ट्रीय दौरा था और इस पहले दौरे से ही उसने यह जतला
दिया था कि आने वाला वक्त उसी का है। इस बात को उसने एक मर्तबा नहीं, कई
मर्तबा साबित की है कि वक्त उसी का है। इसी 15 नवंबर को यानी 2004 की
15वीं तारीख को उसने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अवतरित होने के 15 साल
पूरे किए। 15 सालों में उसने कई मिसालें पेश कीं। कई शतक बना डाले। इतने
रन बना डाले कि बालक सचिन से महामहिम सचिन बन गए। श्रीमान सचिन बन गए।
इन 15 सालों के दौरान जहां उसने सौ से ज्यादा टेस्ट मैच खेले, वहीं 300 से भी ज्यादा एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच। टेस्ट मैचों में दस हजार रनों के प्रतिष्ठित लक्ष्य को पूरा करने में थोड़ी कसर बाकी है, तो एकदिवसीय में वह 13 हजार से भी ज्यादा रन बना चुके हैं। 34 शतक टेस्ट मैचों में और 37 एकदिवसीय मैचों में। यानी उनके बल्ले से अब तक 71 शतक और 23 हजार से भी ज्यादा रन अंतर्राष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट में निकल चुके हैं और अभी तो खेल जारी है। तीन-चार साल वह अभी और खेलेंगे। जब रिटायर होंगे, तब श्रीमान सचिन के आगे कितनी उपलब्धियां दर्ज होंगी और कितने कीर्तिमान यह तो हम अभी सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। सिर्फ कल्पना बस।
हालांकि इसी साल के अंतिम कुछ महीनों के दौरान यह जुमला भी हवा में निकला था कि सचिन हो सकता है कि रिटायर हो जाए, क्योंकि उनके बाएं हाथ में टेनिस एलबो नामक घातक बीमारी पनप गई थी और महीनों क्रिकेट से दूर हो गए थे, पर वह यह जंग भी जीत गए और उन्होंने फिर से शुरु की अपने खेल जीवन की नई पारी। मुम्बई में कंगारुओं के खिलाफ जो छोटी पारी खेली उससे यह प्रमाणित हो गया कि श्रीमान सचिन में अभी भी आग बरकरार है।
कुछ लोगों का मानना है कि सचिन तेंदुलकर का कद अब थोड़ा छोटा हो गया है, क्योंकि टीम में वीरेन्द्र सहवाग आ गए हैं, राहुल द्रविड़ हैं, वी. वी. एस. लक्ष्मण हैं, सौरव गांगुली हैं। सहवाग ने तिहरा शतक बनाया है। द्रविड़ और मजबूत हो गए हैं। लक्ष्मण 280 से भी ज्यादा रनों की पारी खेल चुके हैं और गांगुली तो भारत के सबसे सफल कप्तान हो गए हैं। इतनी सब उपमाओं के साथ कुछ लोग सचिन के कद को छोटा करने की कोशिश करते हैं, पर वे भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते हैं, क्योंकि सचिन नामक कोहिनूर के सामने ये चार तो क्या सारी दुनिया के खलीफा खिलाड़ियों की कामयाबियां भी काफी पीछे छूट जाती हैं। फिर लोगों का जितना भावनात्मक जुड़ाव इस शख्स के साथ हो गया है, उतना किसी के भी साथ नहीं हो पाया है। न दादा सौरव के साथ और न ही किसी और के साथ ही।
भारतीय क्रिकेट टीम के कोच सर जॉन राइट का तो मानना है कि सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट का मोहम्मद अली है। उसके बगैर तो भारतीय क्रिकेट की कल्पना भी बेमानी है। आज की तारीख में भी वह टीम का सबसे प्रतिभावान खिलाड़ी है। टीम में प्रतिभावान तो कई हैं, पर सबसे प्रतिभावान श्रीमान सचिन ही थे और श्रीमान सचिन ही हैं। वह क्यों हैं आइए ? देखते हैं–
• 1988 की फरवरी में उसने विनोद कांबली के साथ जब 664 रनों की विश्व रेकॉर्ड की भागीदारी निभाई थी, तो लोग हतप्रभ रह गए थे। 23 से 25 फरवरी के बीच खेले गए इसी मैच से सचिन ने विश्व के धुरंधरों को चेतावनी दी थी कि सचिन आ रहा है।
• 14 दिसंबर 1989 को सियालकोट में जब पहली श्रृंखला का आख़िरी टेस्ट खेल रहा था, तब वकार की गेंद से चोट खा बैठा लेकिन, सचिन ने धैर्य नहीं खोया। मेडिकल सहायता ली। फिर खड़ा हुआ और शानदार 57 रनों की पारी खेली।
• 1992 में पर्थ में टेस्ट मैच खेला जा रहा था। फरवरी की 2-3 तारीख थी। एक समय भारत का स्कोर था 135 पर 6 विकेट। फिर हो गया 159 पर 8, लेकिन सचिन डटा रहा। उस समय तेज और उछाल वाली विकेट पर सचिन ने जो शतक (114 रन) बनाया था, उसे लोग आज भी याद रखते हैं। सचिन भी इस पारी को सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक मानते हैं।
• 1993, 24 नवंबर। कोलकाता। हीरो कप का फाइनल मैच। दक्षिण अफ्रीका को अंतिम ओवर में छह रन बनाने थे। सचिन ने अंतिम ओवर फेंका। छह गेंदों में सिर्फ तीन रन दिए। भारत ने मैच भी जीता और हीरो कप भी।
• 1995, अक्टूबर के महीने में उसने 31.5 करोड़ का एक कांट्रैक्ट साइन किया। वर्ल्ड टेल के साथ किए गए इस कांट्रैक्ट के साथ ही वह दुनिया का सबसे रईस क्रिकेटर बन गया।
• 2 जनवरी, 1998 का वह दिन। सचिन तेंदुलकर से कप्तानी छीन ली गई। 15 माह की अवधि में उसकी कप्तानी के दौरान भारत ने 17 में से तीन टेस्ट जीते थे। इसी साल सचिन ने अपने जीवन की पहली डबल सेंचुरी प्रथम श्रेणी क्रिकेट में बनाई। फिर ऑस्ट्रेलिया के साथ बढ़िया खेल दिखाया। 2-1 से श्रृंखला भारत ने जीती।
• 30-31 जनवरी, 1999–उसकी कमर में चोट लगी थी। पाकिस्तान के खिलाफ मैच हो रहा था। चेन्नई में भारत को जीतने के लिए 271 रन बनाने थे सचिन ने बेहतरीन 136 रन बनाए। जब आउट हुआ तो सिर्फ 17 रन बनाने थे और खिलाड़ी नहीं टिक पाए और भारत 12 रनों से मैच हार गया। वरना वह श्रृंखला भी भारत ही जीतता।
• इंदौर, 31 मार्च, 2001- यह दिन सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट जीवन का ऐतिहासिक दिन है। इसी दिन कंगारुओं के खिलाफ शतक (139 रन) भी बनाया था और एकदिवसीय क्रिकेट में दस हजार रन भी पूरे किए थे। फटाफट क्रिकेट में दस हजार रन बनाने वाले वह पहले क्रिकेटर बन गए थे।
• जनवरी, 2004 में सिडनी में खेले गए टेस्ट मैच में सचिन ने लाजवाब 241 (नॉट आउट) रनों की पारी खेली। यह उनकी सर्वश्रेष्ठठ पारी है।
• मार्च, 2004 में मुलतान पाकिस्तान में 194 (नॉट आउट) रनों की पारी की भी खूब चर्चा हुई। यदि कप्तान राहुल द्रविड़ थोड़ा सा वक्त दे देते तो वह साल का दूसरा दोहरा शतक जड़ देते, पर ऐसा हो न सका। जबकि हो सकता था।
ये कुछ ऐसे हीरे हैं, जिन्होंने सचिन के मुकुट को और अधिक चमकीला भी बनाया है और भड़कीला भी। उनकी इन्हीं सब उपलब्धियों के चलते ही तो उनका कद विशाल नहीं, बहुत विशाल बन गया है। वह देखने में तो छोटू उस्ताद लगते हैं, पर हकीकत में वह छोटू हैं नहीं। बड़े हैं बहुत बड़े हैं। ऐसे में हम उन्हें श्रीमान कह रहे हैं, महामहिम कह रहे हैं, आदरणीय कह रहे हैं, जो गलत नहीं है। सत्य है परम सत्य है।
एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा सेंचुरी और सबसे ज्यादा रन। दस हजार रन पार करने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर। अब 13 हराज से ज्यादा एकदिवसीय रन बना चुके हैं, जबकि दुनिया के बाकी क्रिकेटर दस हजार रन तक ही पहुंचे हैं। टेस्ट क्रिकेट में एलन बोर्डर, स्टीर वॉ, सुनील गावस्कर और ब्रायन लारा के बाद सबसे अधिक रन और गावस्कर के साथ-साथ सबसे अधिक सेंचुरी। करीब 58 रन प्रति पारी का औसत। पिछले वर्ल्ड कप के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और 1996 के वर्ल्ड कप में सबसे अधिक रन बनाने वाले क्रिकेटर। इतना ही नहीं गेंदबाजी में दोनों तरह के क्रिकेट में 150 से ज्यादा विकेट। ये आंकड़े सचिन के समुचे क्रिकेट कैरियर की कहानी बयां कर देते हैं।
छोटे कद के इस क्रिकेटर के नाम के साथ इंटरनेशनल क्रिकेट के बड़े-बड़े कीर्तिमान जुड़े हैं। उनके खेलने की आक्रामक शैली उन्हें अपने साथ के सभी क्रिकेटरों से अलग साबित करती है। वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा 375 और 400 रन की पारियां खेलकर अपने दृढ़ निश्चय और संकल्पपूर्ण खेल का उदाहरण तो रख सकते हैं लेकिन क्रिकेट के एक महत्वपूर्ण पक्ष ‘निरंतरता’ में वह सचिन से पिछड़ जाते हैं। देखने में लारा के कुछ टेस्ट रेकॉर्ड सचिन से बेहतर लगते हैं, मसलन उनकी डबल व हाफ सेंचुरी सचिन से सधिक हैं और सचिन ने एक पारी में अभी तक 300 का आंकड़ा भी पार नहीं किया है। यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी होगा कि आंकड़े हमेशा सही तस्वीर नहीं रखते। यदि ऐसा हो तो रन मशीन के रूप में विवियन रिचर्ड्स को बेजोड़ न कहा जाता, जबकि उनके कैरियर के आंकड़ों से उनकी उतनी महानता जाहिर नहीं होती। इसी तरह एक समय टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले रहे कर्टनी वॉल्श अपने पूरे कैरियर में बल्लेबाजों के लिए वह खौफ पैदा नहीं कर पाए जो उनसे कहीं कम विकेट लेने वाले गेंदबाजों ने पैदा किया।
देखा जाए तो ब्रायन लारा की फ्लॉप पारियों की संख्या सचिन से कहीं अधिक है। लारा कभी तो श्रीलंका दौरे तैजी ताबड़तोड़ पारियां खेलकर अपने आसपास किसी को भी टिकने नहीं देते, तो कभी उनकी खराब फॉर्म उनका पीछा नहीं छोड़ती। वहीं सचिन का यदि पिछले साल का टेस्ट प्रदर्शन अपवाद स्वरूप लिया जाए तो वह करीब-करीब हर श्रृंखला में एक न एक यादगार पारी जरूर खेलते रहे। दूसरे, लारा केवल टेस्ट क्रिकेट के महान खिलाड़ी बनकर रह गए जबकि सचिन दोनों ही तरह के क्रिकेट में बेजोड़ साबित हुए। तीसरे, सचिन की नौ सेंचुरियों के सहारे भारत जीता जबकि उनके मुकाबले लारा की सात सेंचुरी में ही उनकी टीम जीती।
हाल के वर्षों में उनकी यह कहकर आलोचना की जाती रही कि वह ‘मैच विनर’ नहीं रह गए हैं। यहां हम आपको याद दिला दें कि इंग्लैंड के खिलाफ लीड्स में उनकी 193 रन की पारी, नागपुर में जिम्बाब्वे के खिलाफ 176, इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में 165 और इसी स्थान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 155 रन की नॉट आउट पारी तथा एक अन्य मैच में इसी टीम के खिलाफ उनकी 126 रन की पारियों पर भारतीय टीम जीती। लखनऊ में श्रीलंका के खिलाफ 142 रन की पारी हो या दिल्ली में जिम्बाब्वे के खिलाफ 122 रन की पारी या फिर पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ 117 रन और कोलम्बो में श्रीलंका के खिलाफ 104 रन की नॉट आउट पारियां इन सबमें भारतीय टीम जीती। वन डे में पांच साल पहले शारजाह में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार दो सेंचुरी लगाकर उन्होंने करीब-करीब अकेले दम पर भारत को टूर्नामेंट जिताया। मुंबई में वर्ल्ड कप में आस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी 90 रन की पारी, जिम्बाब्वे के खिलाफ बेनोनी में 104 रन की पारी और पाकिस्तान के खिलाफ पिछले वर्ल्ड कप में 98 रन की पारी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी प्रतिभा का जीता जागता दस्तावेज बन गई। यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि सचिन न जाने कितने ही मौकों पर अकेले दम पर भारतीय पारी का बोझ ढोते रहे और अपनी टीम को जीत के बेहद करीब पहुंचाया। लेकिन बाकी बल्लेबाजों का योगदान इन मैचों में लगभग नगण्य ही रहा, जिससे जीती हुई बाजी हाथ से निकलती रही।
चेन्नई में पाकिस्तान के खिलाफ सचिन की सेंचुरी के बाद भारतीय जीत की औपचारिकता ही पूरी होनी बाकी थी, लेकिन बाकी के बल्लेबाजों से केवल 17 रन नहीं बन पाए। इसी तरह पिछले दिनों रावलपिंडी दूसरे वन डे मैच में उन्होंने शानदार सेंचुरी बनाकर टीम के स्कोर को 300 के पार पहुंचाया लेकिन यहां भी अन्य बल्लेबाजों से अपेक्षित सहयोग न मिलने से भारत जीत नहीं सका। वैसे तो क्रिकेट का हर स्ट्रोक उनके पास है, लेकिन स्ट्रेट ड्राइव उनकी मुख्य ताकत है। इस एक शॉट से उन्होंने वसीम अकरम से लेकर शोएब अख्तर तक और ब्रेट ली से लेकर एलन डोनाल्ड तक की एक नहीं चलने दी।
इन 15 सालों के दौरान जहां उसने सौ से ज्यादा टेस्ट मैच खेले, वहीं 300 से भी ज्यादा एकदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच। टेस्ट मैचों में दस हजार रनों के प्रतिष्ठित लक्ष्य को पूरा करने में थोड़ी कसर बाकी है, तो एकदिवसीय में वह 13 हजार से भी ज्यादा रन बना चुके हैं। 34 शतक टेस्ट मैचों में और 37 एकदिवसीय मैचों में। यानी उनके बल्ले से अब तक 71 शतक और 23 हजार से भी ज्यादा रन अंतर्राष्ट्रीय स्तर की क्रिकेट में निकल चुके हैं और अभी तो खेल जारी है। तीन-चार साल वह अभी और खेलेंगे। जब रिटायर होंगे, तब श्रीमान सचिन के आगे कितनी उपलब्धियां दर्ज होंगी और कितने कीर्तिमान यह तो हम अभी सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। सिर्फ कल्पना बस।
हालांकि इसी साल के अंतिम कुछ महीनों के दौरान यह जुमला भी हवा में निकला था कि सचिन हो सकता है कि रिटायर हो जाए, क्योंकि उनके बाएं हाथ में टेनिस एलबो नामक घातक बीमारी पनप गई थी और महीनों क्रिकेट से दूर हो गए थे, पर वह यह जंग भी जीत गए और उन्होंने फिर से शुरु की अपने खेल जीवन की नई पारी। मुम्बई में कंगारुओं के खिलाफ जो छोटी पारी खेली उससे यह प्रमाणित हो गया कि श्रीमान सचिन में अभी भी आग बरकरार है।
कुछ लोगों का मानना है कि सचिन तेंदुलकर का कद अब थोड़ा छोटा हो गया है, क्योंकि टीम में वीरेन्द्र सहवाग आ गए हैं, राहुल द्रविड़ हैं, वी. वी. एस. लक्ष्मण हैं, सौरव गांगुली हैं। सहवाग ने तिहरा शतक बनाया है। द्रविड़ और मजबूत हो गए हैं। लक्ष्मण 280 से भी ज्यादा रनों की पारी खेल चुके हैं और गांगुली तो भारत के सबसे सफल कप्तान हो गए हैं। इतनी सब उपमाओं के साथ कुछ लोग सचिन के कद को छोटा करने की कोशिश करते हैं, पर वे भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाते हैं, क्योंकि सचिन नामक कोहिनूर के सामने ये चार तो क्या सारी दुनिया के खलीफा खिलाड़ियों की कामयाबियां भी काफी पीछे छूट जाती हैं। फिर लोगों का जितना भावनात्मक जुड़ाव इस शख्स के साथ हो गया है, उतना किसी के भी साथ नहीं हो पाया है। न दादा सौरव के साथ और न ही किसी और के साथ ही।
भारतीय क्रिकेट टीम के कोच सर जॉन राइट का तो मानना है कि सचिन तेंदुलकर भारतीय क्रिकेट का मोहम्मद अली है। उसके बगैर तो भारतीय क्रिकेट की कल्पना भी बेमानी है। आज की तारीख में भी वह टीम का सबसे प्रतिभावान खिलाड़ी है। टीम में प्रतिभावान तो कई हैं, पर सबसे प्रतिभावान श्रीमान सचिन ही थे और श्रीमान सचिन ही हैं। वह क्यों हैं आइए ? देखते हैं–
• 1988 की फरवरी में उसने विनोद कांबली के साथ जब 664 रनों की विश्व रेकॉर्ड की भागीदारी निभाई थी, तो लोग हतप्रभ रह गए थे। 23 से 25 फरवरी के बीच खेले गए इसी मैच से सचिन ने विश्व के धुरंधरों को चेतावनी दी थी कि सचिन आ रहा है।
• 14 दिसंबर 1989 को सियालकोट में जब पहली श्रृंखला का आख़िरी टेस्ट खेल रहा था, तब वकार की गेंद से चोट खा बैठा लेकिन, सचिन ने धैर्य नहीं खोया। मेडिकल सहायता ली। फिर खड़ा हुआ और शानदार 57 रनों की पारी खेली।
• 1992 में पर्थ में टेस्ट मैच खेला जा रहा था। फरवरी की 2-3 तारीख थी। एक समय भारत का स्कोर था 135 पर 6 विकेट। फिर हो गया 159 पर 8, लेकिन सचिन डटा रहा। उस समय तेज और उछाल वाली विकेट पर सचिन ने जो शतक (114 रन) बनाया था, उसे लोग आज भी याद रखते हैं। सचिन भी इस पारी को सर्वश्रेष्ठ पारियों में से एक मानते हैं।
• 1993, 24 नवंबर। कोलकाता। हीरो कप का फाइनल मैच। दक्षिण अफ्रीका को अंतिम ओवर में छह रन बनाने थे। सचिन ने अंतिम ओवर फेंका। छह गेंदों में सिर्फ तीन रन दिए। भारत ने मैच भी जीता और हीरो कप भी।
• 1995, अक्टूबर के महीने में उसने 31.5 करोड़ का एक कांट्रैक्ट साइन किया। वर्ल्ड टेल के साथ किए गए इस कांट्रैक्ट के साथ ही वह दुनिया का सबसे रईस क्रिकेटर बन गया।
• 2 जनवरी, 1998 का वह दिन। सचिन तेंदुलकर से कप्तानी छीन ली गई। 15 माह की अवधि में उसकी कप्तानी के दौरान भारत ने 17 में से तीन टेस्ट जीते थे। इसी साल सचिन ने अपने जीवन की पहली डबल सेंचुरी प्रथम श्रेणी क्रिकेट में बनाई। फिर ऑस्ट्रेलिया के साथ बढ़िया खेल दिखाया। 2-1 से श्रृंखला भारत ने जीती।
• 30-31 जनवरी, 1999–उसकी कमर में चोट लगी थी। पाकिस्तान के खिलाफ मैच हो रहा था। चेन्नई में भारत को जीतने के लिए 271 रन बनाने थे सचिन ने बेहतरीन 136 रन बनाए। जब आउट हुआ तो सिर्फ 17 रन बनाने थे और खिलाड़ी नहीं टिक पाए और भारत 12 रनों से मैच हार गया। वरना वह श्रृंखला भी भारत ही जीतता।
• इंदौर, 31 मार्च, 2001- यह दिन सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट जीवन का ऐतिहासिक दिन है। इसी दिन कंगारुओं के खिलाफ शतक (139 रन) भी बनाया था और एकदिवसीय क्रिकेट में दस हजार रन भी पूरे किए थे। फटाफट क्रिकेट में दस हजार रन बनाने वाले वह पहले क्रिकेटर बन गए थे।
• जनवरी, 2004 में सिडनी में खेले गए टेस्ट मैच में सचिन ने लाजवाब 241 (नॉट आउट) रनों की पारी खेली। यह उनकी सर्वश्रेष्ठठ पारी है।
• मार्च, 2004 में मुलतान पाकिस्तान में 194 (नॉट आउट) रनों की पारी की भी खूब चर्चा हुई। यदि कप्तान राहुल द्रविड़ थोड़ा सा वक्त दे देते तो वह साल का दूसरा दोहरा शतक जड़ देते, पर ऐसा हो न सका। जबकि हो सकता था।
ये कुछ ऐसे हीरे हैं, जिन्होंने सचिन के मुकुट को और अधिक चमकीला भी बनाया है और भड़कीला भी। उनकी इन्हीं सब उपलब्धियों के चलते ही तो उनका कद विशाल नहीं, बहुत विशाल बन गया है। वह देखने में तो छोटू उस्ताद लगते हैं, पर हकीकत में वह छोटू हैं नहीं। बड़े हैं बहुत बड़े हैं। ऐसे में हम उन्हें श्रीमान कह रहे हैं, महामहिम कह रहे हैं, आदरणीय कह रहे हैं, जो गलत नहीं है। सत्य है परम सत्य है।
एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे ज्यादा सेंचुरी और सबसे ज्यादा रन। दस हजार रन पार करने वाले दुनिया के पहले क्रिकेटर। अब 13 हराज से ज्यादा एकदिवसीय रन बना चुके हैं, जबकि दुनिया के बाकी क्रिकेटर दस हजार रन तक ही पहुंचे हैं। टेस्ट क्रिकेट में एलन बोर्डर, स्टीर वॉ, सुनील गावस्कर और ब्रायन लारा के बाद सबसे अधिक रन और गावस्कर के साथ-साथ सबसे अधिक सेंचुरी। करीब 58 रन प्रति पारी का औसत। पिछले वर्ल्ड कप के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी और 1996 के वर्ल्ड कप में सबसे अधिक रन बनाने वाले क्रिकेटर। इतना ही नहीं गेंदबाजी में दोनों तरह के क्रिकेट में 150 से ज्यादा विकेट। ये आंकड़े सचिन के समुचे क्रिकेट कैरियर की कहानी बयां कर देते हैं।
छोटे कद के इस क्रिकेटर के नाम के साथ इंटरनेशनल क्रिकेट के बड़े-बड़े कीर्तिमान जुड़े हैं। उनके खेलने की आक्रामक शैली उन्हें अपने साथ के सभी क्रिकेटरों से अलग साबित करती है। वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा 375 और 400 रन की पारियां खेलकर अपने दृढ़ निश्चय और संकल्पपूर्ण खेल का उदाहरण तो रख सकते हैं लेकिन क्रिकेट के एक महत्वपूर्ण पक्ष ‘निरंतरता’ में वह सचिन से पिछड़ जाते हैं। देखने में लारा के कुछ टेस्ट रेकॉर्ड सचिन से बेहतर लगते हैं, मसलन उनकी डबल व हाफ सेंचुरी सचिन से सधिक हैं और सचिन ने एक पारी में अभी तक 300 का आंकड़ा भी पार नहीं किया है। यहां यह स्पष्ट कर देना जरूरी होगा कि आंकड़े हमेशा सही तस्वीर नहीं रखते। यदि ऐसा हो तो रन मशीन के रूप में विवियन रिचर्ड्स को बेजोड़ न कहा जाता, जबकि उनके कैरियर के आंकड़ों से उनकी उतनी महानता जाहिर नहीं होती। इसी तरह एक समय टेस्ट क्रिकेट में सबसे अधिक विकेट लेने वाले रहे कर्टनी वॉल्श अपने पूरे कैरियर में बल्लेबाजों के लिए वह खौफ पैदा नहीं कर पाए जो उनसे कहीं कम विकेट लेने वाले गेंदबाजों ने पैदा किया।
देखा जाए तो ब्रायन लारा की फ्लॉप पारियों की संख्या सचिन से कहीं अधिक है। लारा कभी तो श्रीलंका दौरे तैजी ताबड़तोड़ पारियां खेलकर अपने आसपास किसी को भी टिकने नहीं देते, तो कभी उनकी खराब फॉर्म उनका पीछा नहीं छोड़ती। वहीं सचिन का यदि पिछले साल का टेस्ट प्रदर्शन अपवाद स्वरूप लिया जाए तो वह करीब-करीब हर श्रृंखला में एक न एक यादगार पारी जरूर खेलते रहे। दूसरे, लारा केवल टेस्ट क्रिकेट के महान खिलाड़ी बनकर रह गए जबकि सचिन दोनों ही तरह के क्रिकेट में बेजोड़ साबित हुए। तीसरे, सचिन की नौ सेंचुरियों के सहारे भारत जीता जबकि उनके मुकाबले लारा की सात सेंचुरी में ही उनकी टीम जीती।
हाल के वर्षों में उनकी यह कहकर आलोचना की जाती रही कि वह ‘मैच विनर’ नहीं रह गए हैं। यहां हम आपको याद दिला दें कि इंग्लैंड के खिलाफ लीड्स में उनकी 193 रन की पारी, नागपुर में जिम्बाब्वे के खिलाफ 176, इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई में 165 और इसी स्थान पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 155 रन की नॉट आउट पारी तथा एक अन्य मैच में इसी टीम के खिलाफ उनकी 126 रन की पारियों पर भारतीय टीम जीती। लखनऊ में श्रीलंका के खिलाफ 142 रन की पारी हो या दिल्ली में जिम्बाब्वे के खिलाफ 122 रन की पारी या फिर पोर्ट ऑफ स्पेन टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ 117 रन और कोलम्बो में श्रीलंका के खिलाफ 104 रन की नॉट आउट पारियां इन सबमें भारतीय टीम जीती। वन डे में पांच साल पहले शारजाह में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ लगातार दो सेंचुरी लगाकर उन्होंने करीब-करीब अकेले दम पर भारत को टूर्नामेंट जिताया। मुंबई में वर्ल्ड कप में आस्ट्रेलिया के खिलाफ उनकी 90 रन की पारी, जिम्बाब्वे के खिलाफ बेनोनी में 104 रन की पारी और पाकिस्तान के खिलाफ पिछले वर्ल्ड कप में 98 रन की पारी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में उनकी प्रतिभा का जीता जागता दस्तावेज बन गई। यहां यह भी स्पष्ट करना जरूरी है कि सचिन न जाने कितने ही मौकों पर अकेले दम पर भारतीय पारी का बोझ ढोते रहे और अपनी टीम को जीत के बेहद करीब पहुंचाया। लेकिन बाकी बल्लेबाजों का योगदान इन मैचों में लगभग नगण्य ही रहा, जिससे जीती हुई बाजी हाथ से निकलती रही।
चेन्नई में पाकिस्तान के खिलाफ सचिन की सेंचुरी के बाद भारतीय जीत की औपचारिकता ही पूरी होनी बाकी थी, लेकिन बाकी के बल्लेबाजों से केवल 17 रन नहीं बन पाए। इसी तरह पिछले दिनों रावलपिंडी दूसरे वन डे मैच में उन्होंने शानदार सेंचुरी बनाकर टीम के स्कोर को 300 के पार पहुंचाया लेकिन यहां भी अन्य बल्लेबाजों से अपेक्षित सहयोग न मिलने से भारत जीत नहीं सका। वैसे तो क्रिकेट का हर स्ट्रोक उनके पास है, लेकिन स्ट्रेट ड्राइव उनकी मुख्य ताकत है। इस एक शॉट से उन्होंने वसीम अकरम से लेकर शोएब अख्तर तक और ब्रेट ली से लेकर एलन डोनाल्ड तक की एक नहीं चलने दी।
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