व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> महिलाओं की आत्मा के लिए अमृत महिलाओं की आत्मा के लिए अमृतजैक कैनफ़ील्ड, मार्क विक्टर हैन्सन, जोनिफ़र रीड होथोर्न, मार्सी शिमॉफ़
|
4 पाठकों को प्रिय 403 पाठक हैं |
दिल को छूने और आत्मा तक पहुँचने वाली प्रेरक कहानियाँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘‘महिलाओं की ज़िंदगी भावनाओं से भरी होती है और यह
पुस्तक उन सभी भावनाओं को स्पर्श करती है। आख़िरकार, सिर्फ़ हम महिलाओं की
आत्मा के लिए अमृत उपलब्ध है ! यह पुस्तक आपके दिल को छू लेगी और आपका
मनोबल बढ़ाएगी।’’
–लीज़ा गिबन्स
प्रेम
दुनिया की सबसे अच्छी और सबसे सुंदर चीज़ों को देखा या छुआ भी नहीं जा
सकता। उन्हें दिल से ही महसूस किया जाना चाहिए।
हेलन केलर
सफ़ेद गार्डिनिया
मेरे बारहवें जन्मदिन से ही हर साल मेरे जन्मदिन पर कोई अनजान व्यक्ति
मेरे लिए मेरे घर पर एक सफ़ेद गार्डिनिया भेजता था। उसके साथ कभी भी न तो
कोई कार्ड होता था, न ही चिट्ठी। इस बारे में फूलों की दुकान पर फ़ोन कर
पूछताछ करना बेकार था, क्योंकि ख़रीदारी हमेशा नक़द में होती थी। कुछ समय
बाद मैंन उस अनजान आदमी को खोजने की कोशिश भी बंद कर दी। मैं तो बस मुलायम
गुलाबी काग़ज़ (टिशुपेपर) में लिपटे उस जादुई, सफ़ेद फूल की सुंदरता और
उसकी मादक सुगंध का आनंद लेती रही।
लेकिन मैंने यह सोचना बंद नहीं किया था कि उसे भेजने वाला कौन हो सकता है। मेरे कुछ सबसे ख़ुशनुमा पल उस व्यक्ति के दिवास्वप्न देखने में बीते, जो कि विलक्षण और उत्साह से भरपूर था, मगर इतना शर्मीला या सनकी था कि अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता था। अपनी किशोरावस्था के दिनों में मुझे यह सोच-सोचकर बड़ा मज़ा आता था कि शायद यह फूल भेजने वाला कोई लड़का है, जिसे मैं मन ही मन चाहती हूँ, या ऐसा जिसे मैं नहीं जानती, पर जो मुझे देखता रहता है।
मेरी माँ अक्सर इन कल्पनाओं में योगदान देती थीं। वे पूछती थीं कि क्या ऐसा कोई था जिसकी मैंने कोई ख़ास मदद की है, जिसके बदले में वह चुपचाप अपनी कृतज्ञता दिखा रहा है। वे मुझे उस समय की याद दिलातीं, मैं अपनी साइकिल चला रही होती थी और मेरी पड़ोसन अपनी कार में बहुत सारा सामान ख़रीदकर बच्चों के साथ आती थी। ऐसे समय में मैं हमेशा कार से सामान उतारने में उनकी मदद करती और यह भी ध्यान रखती कि बच्चे सड़क पर न भाग जाएँ। या फिर फूल भेजना वाला यह रहस्यमय व्यक्ति सड़क के पार रहने वाला वो बूढ़ा आदमी था, जिसको ठंड से बचाने के लिए मैं सर्दियों में कभी-कभी डाक से चिट्ठियाँ निकालकर देती थी।
इस गार्डिनिया के बारे में मेरी कल्पना को मेरी माँ ने यथासंभव बढ़ावा दिया। वे चाहती थीं कि उनके बच्चे रचनात्मक बनें। वे यह भी चाहती थीं कि हम महसूस करें कि सिर्फ़ वही नहीं, बल्कि सारी दुनिया हमें चाहती है।
जब में सत्रह साल की हुई, तो एक लड़के ने मेरा दिल तोड़ दिया। जिस रात उसने आख़िरी बार फ़ोन किया, उस रात मैं सोने से पहले तक ख़ूब रोई। जब मैं सुबह उठी, तो मेरे शीशे पर लाल लिपिस्टिक से एक संदेश लिखा हुआ था, ‘‘इस बात को दिल से समझो, जब अधूरे देवता जाते हैं, तब असली देवताओं का आगमन होता है।’’ मैं एमरसन के इस कथन पर काफ़ी देर सोचती रही, और माँ ने उसे जहाँ लिखा था, उसे तब तक वहाँ रहने दिया जब तक कि दिल का घाव भर नहीं गया। अंततः जिस दिन मैंने अपना शीशा साफ़ किया, मेरी माँ समझ गईं कि सब कुछ फिर से ठीक हो गया था।
लेकिन कुछ घाव ऐसे थे जिन्हें माँ नहीं भर पाईं। मेरे हाई-स्कूल ग्रेजुएशन से एक महीना पहले, मेरे पिता का अचानक दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया। मेरी भावनाएँ दुःख से विरक्ति, डर, अविश्वास तक पहुँच गईं और इस बात का गुस्सा भी था कि मेरे पिता मेरे जीवन की कुछ सबसे ख़ास घटनाओं में मेरे साथ नहीं थे। जिन कार्यक्रमों के लिए मैंने मेहनत और तैयारी की थी और जिनका मैं बड़े उत्साह से इंतज़ार कर रही थी, उनके लिए अब मेरे दिल में कोई रुचि या जोश नहीं था। मैंने तो यह तक सोच लिया था कि अब मैं कॉलेज की पढ़ाई के लिए कहीं नहीं जाऊँगी, बल्कि यहीं रहकर पढ़ूँगी। क्योंकि इससे मुझे बड़ा महफ़ूज़ लगता था।
अपने इस भारी दुःख में भी मेरी माँ यह सुनने तो तैयार नहीं थीं कि मैं इन सब चीजों से वंचित रह जाऊँ। जिस दिन पिताजी का देहांत हुआ था, उसके एक दिन पहले माँ और मैं प्रॉम ड्रेस ख़रीदने गए थे, और हमें एक बहुत ही ख़ूबसूरत ड्रेस मिली थी–लाल, सफ़ेद और नीले डॉट्स वाली ड्रेस। उसे पहनकर मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं स्कारलेट ओ हारा बन गई हूँ। लेकिन यह ड्रेस मेरे नाप की नहीं थी और जब अगले दिन पिताजी का देहांत हुआ, तो मैं उस ड्रेस के बारे में बिलकुल भूल गई।
लेकिन माँ नहीं भूलीं। प्रॉम से एक दिन पहले मुझे वह ड्रेस मिली–सोफ़े पर क़रीने से रखी हुई, काट-छाँटकर मेरे नाप की बनाई हुई। शायद मुझे नई ड्रेस की परवाह नहीं थी, पर माँ को थी।
वे इस बात का ख़ास ध्यान रखती थीं कि उनके बच्चे अपने बारे में क्या महसूस करते हैं। उन्होंने हमारे मन में एक ऐसा अनोखा एहसास भर दिया था कि हमें सारी दुनिया ही जादुई नज़र आती थी। और उन्होंने हमें मुश्किलों में भी मुस्कराना और ख़ूबसूरती का एहसास करने की क़ाबिलियत दी।
हक़ीक़त में, मेरी माँ चाहती थीं कि उनके बच्चे अपने आपको गार्डिनिया के फूल की तरह समझें–सुंदर, मज़बूत, संपूर्ण, अपने आप में एक रहस्यमय जादू समेटे हुए।
जब मैं बाइस साल की हुई, तब मेरी शादी के दस दिन बाद ही माँ का देहांत हो गया। उसी साल से मेरे पास गार्डिनिया आने बंद हो गए।
लेकिन मैंने यह सोचना बंद नहीं किया था कि उसे भेजने वाला कौन हो सकता है। मेरे कुछ सबसे ख़ुशनुमा पल उस व्यक्ति के दिवास्वप्न देखने में बीते, जो कि विलक्षण और उत्साह से भरपूर था, मगर इतना शर्मीला या सनकी था कि अपनी पहचान उजागर नहीं करना चाहता था। अपनी किशोरावस्था के दिनों में मुझे यह सोच-सोचकर बड़ा मज़ा आता था कि शायद यह फूल भेजने वाला कोई लड़का है, जिसे मैं मन ही मन चाहती हूँ, या ऐसा जिसे मैं नहीं जानती, पर जो मुझे देखता रहता है।
मेरी माँ अक्सर इन कल्पनाओं में योगदान देती थीं। वे पूछती थीं कि क्या ऐसा कोई था जिसकी मैंने कोई ख़ास मदद की है, जिसके बदले में वह चुपचाप अपनी कृतज्ञता दिखा रहा है। वे मुझे उस समय की याद दिलातीं, मैं अपनी साइकिल चला रही होती थी और मेरी पड़ोसन अपनी कार में बहुत सारा सामान ख़रीदकर बच्चों के साथ आती थी। ऐसे समय में मैं हमेशा कार से सामान उतारने में उनकी मदद करती और यह भी ध्यान रखती कि बच्चे सड़क पर न भाग जाएँ। या फिर फूल भेजना वाला यह रहस्यमय व्यक्ति सड़क के पार रहने वाला वो बूढ़ा आदमी था, जिसको ठंड से बचाने के लिए मैं सर्दियों में कभी-कभी डाक से चिट्ठियाँ निकालकर देती थी।
इस गार्डिनिया के बारे में मेरी कल्पना को मेरी माँ ने यथासंभव बढ़ावा दिया। वे चाहती थीं कि उनके बच्चे रचनात्मक बनें। वे यह भी चाहती थीं कि हम महसूस करें कि सिर्फ़ वही नहीं, बल्कि सारी दुनिया हमें चाहती है।
जब में सत्रह साल की हुई, तो एक लड़के ने मेरा दिल तोड़ दिया। जिस रात उसने आख़िरी बार फ़ोन किया, उस रात मैं सोने से पहले तक ख़ूब रोई। जब मैं सुबह उठी, तो मेरे शीशे पर लाल लिपिस्टिक से एक संदेश लिखा हुआ था, ‘‘इस बात को दिल से समझो, जब अधूरे देवता जाते हैं, तब असली देवताओं का आगमन होता है।’’ मैं एमरसन के इस कथन पर काफ़ी देर सोचती रही, और माँ ने उसे जहाँ लिखा था, उसे तब तक वहाँ रहने दिया जब तक कि दिल का घाव भर नहीं गया। अंततः जिस दिन मैंने अपना शीशा साफ़ किया, मेरी माँ समझ गईं कि सब कुछ फिर से ठीक हो गया था।
लेकिन कुछ घाव ऐसे थे जिन्हें माँ नहीं भर पाईं। मेरे हाई-स्कूल ग्रेजुएशन से एक महीना पहले, मेरे पिता का अचानक दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया। मेरी भावनाएँ दुःख से विरक्ति, डर, अविश्वास तक पहुँच गईं और इस बात का गुस्सा भी था कि मेरे पिता मेरे जीवन की कुछ सबसे ख़ास घटनाओं में मेरे साथ नहीं थे। जिन कार्यक्रमों के लिए मैंने मेहनत और तैयारी की थी और जिनका मैं बड़े उत्साह से इंतज़ार कर रही थी, उनके लिए अब मेरे दिल में कोई रुचि या जोश नहीं था। मैंने तो यह तक सोच लिया था कि अब मैं कॉलेज की पढ़ाई के लिए कहीं नहीं जाऊँगी, बल्कि यहीं रहकर पढ़ूँगी। क्योंकि इससे मुझे बड़ा महफ़ूज़ लगता था।
अपने इस भारी दुःख में भी मेरी माँ यह सुनने तो तैयार नहीं थीं कि मैं इन सब चीजों से वंचित रह जाऊँ। जिस दिन पिताजी का देहांत हुआ था, उसके एक दिन पहले माँ और मैं प्रॉम ड्रेस ख़रीदने गए थे, और हमें एक बहुत ही ख़ूबसूरत ड्रेस मिली थी–लाल, सफ़ेद और नीले डॉट्स वाली ड्रेस। उसे पहनकर मुझे ऐसा लगा था जैसे मैं स्कारलेट ओ हारा बन गई हूँ। लेकिन यह ड्रेस मेरे नाप की नहीं थी और जब अगले दिन पिताजी का देहांत हुआ, तो मैं उस ड्रेस के बारे में बिलकुल भूल गई।
लेकिन माँ नहीं भूलीं। प्रॉम से एक दिन पहले मुझे वह ड्रेस मिली–सोफ़े पर क़रीने से रखी हुई, काट-छाँटकर मेरे नाप की बनाई हुई। शायद मुझे नई ड्रेस की परवाह नहीं थी, पर माँ को थी।
वे इस बात का ख़ास ध्यान रखती थीं कि उनके बच्चे अपने बारे में क्या महसूस करते हैं। उन्होंने हमारे मन में एक ऐसा अनोखा एहसास भर दिया था कि हमें सारी दुनिया ही जादुई नज़र आती थी। और उन्होंने हमें मुश्किलों में भी मुस्कराना और ख़ूबसूरती का एहसास करने की क़ाबिलियत दी।
हक़ीक़त में, मेरी माँ चाहती थीं कि उनके बच्चे अपने आपको गार्डिनिया के फूल की तरह समझें–सुंदर, मज़बूत, संपूर्ण, अपने आप में एक रहस्यमय जादू समेटे हुए।
जब मैं बाइस साल की हुई, तब मेरी शादी के दस दिन बाद ही माँ का देहांत हो गया। उसी साल से मेरे पास गार्डिनिया आने बंद हो गए।
मार्शा एरोन्स
दिल से निकले शब्द
क़ब्रों पर बहाए गए पश्चाताप के आँसू अनकहे शब्दों और उन कर्मों के लिए
होते हैं जो बाक़ी रह गए।
हेरियट बीचर स्टो
ज़्यादातर लोग उन ‘‘तीन नन्हे से
शब्दों’’ को सुनना चाहते हैं। कभी-कभी, वे उन्हें ऐन
वक़्त पर ही सुन पाते हैं।
कॉनी से मेरी मुलाक़ात उस दिन हुई, जिस दिन उसे अस्पताल के उस वॉर्ड में भर्ती किया गया जहाँ मैं एक स्वयंसेविका के रूप में काम करती थी। जब उसे स्ट्रैचर से अस्पताल के पलंग पर लिटाया जा रहा था, तब उसका पति बिल घबराया सा पास ही खड़ा हुआ था। हालाँकि कॉनी कैंसर के साथ अपने संघर्ष के आख़िरी पड़ाव पर थी, फिर भी वह चुस्त और हँसमुख थी। हमने उसे वहाँ व्यवस्थित किया। मैंने उसके नाम के साथ उन सब चीज़ों की सूची बनाई जो उसे अस्पताल से मिलेंगी, और फिर उससे पूछा कि उसे और क्या चाहिए।
‘‘ओ हाँ,’’ वो बोली, ‘‘क्या तुम मुझे बताओगी कि इस टीवी को कैसे चलाया जाता है ? मुझे टीवी सीरियल बहुत पसंद हैं और मैं नहीं चाहती कि मुझसे कोई भी सीरियल छूट जाए।’’ कॉनी बहुत रोमांटिक थी। उसे सीरियल, रूमानी उपन्यासी और अच्छी प्रेम कहानियों वाली फ़िल्में बहुत पसंद थीं। जैसे-जैसे हमारी जान-पहचान बढ़ती गई, उसने मुझे बताया कि किसी ऐसे व्यक्ति के साथी शादी कर 32 साल बिताना कितना कुंठित कर देने वाला होता है जो अक्सर उसे ‘बेवकूफ़ औरत’ कहकर बुलाए।
‘‘मैं जानती हूँ कि बिल मुझसे बहुत प्यार करता है,’’ उसने कहा, ‘‘लेकिन आज तक उसने यह बात मुझसे कही नहीं, न ही कभी मेरे लिए कोई कार्ड भेजे।’’ उसने एक ठंडी आह भरी और खिड़की के बाहर अहाते में लगे पेड़ों को देखने लगी। ‘‘मैं उसके मुँह से ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ,’ सुनने के लिए कुछ भी दे सकती हूँ, लेकिन यह उसकी फ़ितरत ही नहीं है।’’
बिल रोज़ कॉनी से मिलने आता था। शुरू-शुरू में तो वह उसके पलंग के पास बैठा रहता, जबकि वह अपने सीरियल देखती रहती। कुछ दिनों बाद जब वह ज़्यादा सोने लगी, तो वो उसके कमरे के बाहर बरामदे में चहलक़दमी करता रहता। जल्दी ही, जब उसका टीवी देखना बंद हो गाय और वह बहुत कम समय तक जागी हुई अवस्था में रहने लगी, तब मैं बिल के साथ अपना ख़ाली समय बिताने लगी।
बातों-बातों में उसने बताया कि वह एक बढ़ई था और उसे मछली पकड़ने जाना कितना पसंद था। उसके और कॉनी के कोई संतान नहीं थी, लेकिन वे ख़ूब घूमते-फिरते थे और सेवानिवृत्त जीवन का आनंद उठाते थे, जब तक कॉनी बीमार नहीं पड़ गई थी। बिल ने इस हक़ीक़त के बारे में कभी कोई भावना व्यक्त नहीं की कि उसकी पत्नी मर रही थी।
एक दिन, कैफ़ेटेरिया में कॉफ़ी पीते समय मैंने महिलाओं के विषय पर बातचीत उठाई और उसे बताया कि किस तरह हम लोगों को जीवन में रोमांस और प्यार की ज़रूरत होती है, किस तरह हम लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले कार्ड और प्रेम-पत्र बहुत पसंद आते हैं।
‘‘क्या तुम कॉनी को बताते हो कि तुम उससे प्यार करते हो ?’’ मैंने पूछा (हालाँकि मुझे उसका जवाब मालूम था), उसने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मैं कोई पागल हूँ।
‘‘मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है,’’ उसने कहा, ‘‘वो जानती है कि मैं उससे प्यार करता हूँ।’’
कॉनी से मेरी मुलाक़ात उस दिन हुई, जिस दिन उसे अस्पताल के उस वॉर्ड में भर्ती किया गया जहाँ मैं एक स्वयंसेविका के रूप में काम करती थी। जब उसे स्ट्रैचर से अस्पताल के पलंग पर लिटाया जा रहा था, तब उसका पति बिल घबराया सा पास ही खड़ा हुआ था। हालाँकि कॉनी कैंसर के साथ अपने संघर्ष के आख़िरी पड़ाव पर थी, फिर भी वह चुस्त और हँसमुख थी। हमने उसे वहाँ व्यवस्थित किया। मैंने उसके नाम के साथ उन सब चीज़ों की सूची बनाई जो उसे अस्पताल से मिलेंगी, और फिर उससे पूछा कि उसे और क्या चाहिए।
‘‘ओ हाँ,’’ वो बोली, ‘‘क्या तुम मुझे बताओगी कि इस टीवी को कैसे चलाया जाता है ? मुझे टीवी सीरियल बहुत पसंद हैं और मैं नहीं चाहती कि मुझसे कोई भी सीरियल छूट जाए।’’ कॉनी बहुत रोमांटिक थी। उसे सीरियल, रूमानी उपन्यासी और अच्छी प्रेम कहानियों वाली फ़िल्में बहुत पसंद थीं। जैसे-जैसे हमारी जान-पहचान बढ़ती गई, उसने मुझे बताया कि किसी ऐसे व्यक्ति के साथी शादी कर 32 साल बिताना कितना कुंठित कर देने वाला होता है जो अक्सर उसे ‘बेवकूफ़ औरत’ कहकर बुलाए।
‘‘मैं जानती हूँ कि बिल मुझसे बहुत प्यार करता है,’’ उसने कहा, ‘‘लेकिन आज तक उसने यह बात मुझसे कही नहीं, न ही कभी मेरे लिए कोई कार्ड भेजे।’’ उसने एक ठंडी आह भरी और खिड़की के बाहर अहाते में लगे पेड़ों को देखने लगी। ‘‘मैं उसके मुँह से ‘मैं तुमसे प्यार करता हूँ,’ सुनने के लिए कुछ भी दे सकती हूँ, लेकिन यह उसकी फ़ितरत ही नहीं है।’’
बिल रोज़ कॉनी से मिलने आता था। शुरू-शुरू में तो वह उसके पलंग के पास बैठा रहता, जबकि वह अपने सीरियल देखती रहती। कुछ दिनों बाद जब वह ज़्यादा सोने लगी, तो वो उसके कमरे के बाहर बरामदे में चहलक़दमी करता रहता। जल्दी ही, जब उसका टीवी देखना बंद हो गाय और वह बहुत कम समय तक जागी हुई अवस्था में रहने लगी, तब मैं बिल के साथ अपना ख़ाली समय बिताने लगी।
बातों-बातों में उसने बताया कि वह एक बढ़ई था और उसे मछली पकड़ने जाना कितना पसंद था। उसके और कॉनी के कोई संतान नहीं थी, लेकिन वे ख़ूब घूमते-फिरते थे और सेवानिवृत्त जीवन का आनंद उठाते थे, जब तक कॉनी बीमार नहीं पड़ गई थी। बिल ने इस हक़ीक़त के बारे में कभी कोई भावना व्यक्त नहीं की कि उसकी पत्नी मर रही थी।
एक दिन, कैफ़ेटेरिया में कॉफ़ी पीते समय मैंने महिलाओं के विषय पर बातचीत उठाई और उसे बताया कि किस तरह हम लोगों को जीवन में रोमांस और प्यार की ज़रूरत होती है, किस तरह हम लोगों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले कार्ड और प्रेम-पत्र बहुत पसंद आते हैं।
‘‘क्या तुम कॉनी को बताते हो कि तुम उससे प्यार करते हो ?’’ मैंने पूछा (हालाँकि मुझे उसका जवाब मालूम था), उसने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मैं कोई पागल हूँ।
‘‘मुझे कहने की ज़रूरत नहीं है,’’ उसने कहा, ‘‘वो जानती है कि मैं उससे प्यार करता हूँ।’’
|
अन्य पुस्तकें
लोगों की राय
No reviews for this book