कविता संग्रह >> धूप से रूठी चाँदनी धूप से रूठी चाँदनीसुधा ओम ढींगरा
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आदमियो की भीड़ में इंसान की तलाश करती सुधा ओम ढींगरा की मुक्त छंद में कविताएँ...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
बर्फीली सर्दी का पहला दिन हो या दूसरा, अथवा परदेश की धूप, डॉ सुधा ओम ढींगरा के आँगन में बदलाव, बिखराव, और अलगाव के विकृत अंधकार में रात भर दीप बाँटे जाते हैं। इन्होंने कविता और नारी के गुमशुदा विचार तलाश किये हैं जिनके सपनों के द्वार पूर्णता की ओर खुलते हैं। कभी कभी राजनैतिक रूह को भी नज़रों से ओझल नहीं होने दिया गया है। व्यथित हृदय लेकर ईश्वर से साक्षात्कार होकर उन्होने दो बड़े प्रश्न उठाये हैं, असमान्यता क्यूँ? और रिश्तों में बगावत क्यूँ?
डॉ सुधा ओम ढींगरा की शायरी में ज्यादातर प्रकृति से सीख दी जाती हैं। फूल, माली, चाँद, चाँदनी, बर्फ, धूप, छाँव, बरसात, माँ की ममता, पतझड़, इनके बड़े प्यारे कोमल उदाहरण हैं। इनकी स्मृतियों की रूह में मिलन अच्छा लगता हैं। माँ की याद में देश परदेश की तुलना का दृश्य बड़ा ही अनूठा है। वह अनकही बात जो केवल सुधा जी ने ही कही है, जागृति का पैगाम है....
वे कविता में कहती हैं कि मैं ऐसा समाज निर्मित करूँगी, जहाँ औरत सिर्फ़ माँ, बेटी, बहन, पत्नी, प्रेमिका ही नहीं, एक इंसान, सिर्फ़ इंसान हो। सुधा जी का यह संदेश अगर मष्तिष्क के पार हो गया तो जरूर एक दिन धूप अपनी रूठी चाँदनी को मना लेगी।...
डॉ सुधा ओम ढींगरा की शायरी में ज्यादातर प्रकृति से सीख दी जाती हैं। फूल, माली, चाँद, चाँदनी, बर्फ, धूप, छाँव, बरसात, माँ की ममता, पतझड़, इनके बड़े प्यारे कोमल उदाहरण हैं। इनकी स्मृतियों की रूह में मिलन अच्छा लगता हैं। माँ की याद में देश परदेश की तुलना का दृश्य बड़ा ही अनूठा है। वह अनकही बात जो केवल सुधा जी ने ही कही है, जागृति का पैगाम है....
वे कविता में कहती हैं कि मैं ऐसा समाज निर्मित करूँगी, जहाँ औरत सिर्फ़ माँ, बेटी, बहन, पत्नी, प्रेमिका ही नहीं, एक इंसान, सिर्फ़ इंसान हो। सुधा जी का यह संदेश अगर मष्तिष्क के पार हो गया तो जरूर एक दिन धूप अपनी रूठी चाँदनी को मना लेगी।...
तुम
अकारण रो पड़े
हमें तो
टूटा सा दिल
अपना याद आया
तुम्हें क्या याद आया...?
तुम
अकारण रो पड़े...
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में,
हमें तो
बचपन
अपना याद आया
तुम्हें क्या याद आया...?
अकारण रो पड़े
हमें तो
टूटा सा दिल
अपना याद आया
तुम्हें क्या याद आया...?
तुम
अकारण रो पड़े...
बारिश में भीगते
शरीरों की भीड़ में,
हमें तो
बचपन
अपना याद आया
तुम्हें क्या याद आया...?
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