कहानी संग्रह >> जन्नत जन्नतखुशवंत सिंह
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खुशवंत सिंह का निस्संदेह एक यादगार लघु कथा संग्रह - हास्य-व्यंग्य पूर्ण, विचारोत्तेजक, बेबाक और मर्मस्पर्शी...
अपने इस कहानी संग्रह में हिन्दुस्तान के मशहूर लेखक ने कुछ ज्वलंत प्रश्नों को उठाया है: हम चमत्कारों में विश्वास क्यों करते हैं ? क्या जन्मकुंडली अच्छी पत्नी की गारंटी है ? क्या कामसूत्र नवविवाहितों के लिए उपयोगी गाइड है ?
मारग्रेट ब्लूम न्यूयॉर्क से अपनी आत्मा की खोज में हरिद्वार आती है। पर शीघ्र ही वह समझ जाती है कि पवित्र-पावनी के तट पर भी लालसाएँ हैं। ज्योतिषी और प्राचीन हिंदू-शास्त्रों के पंडित मदन मोहन पांडे यह जान कर सन्नाटे में आ जाते हैं कि उनकी मासूम सी दुल्हन उनकी आशा के एकदम विपरीत है। धर्मपरायण ज़ोरा सिंह, देश का गौरव, जो चार सौ बीस और अय्याश होने के लिए बदनाम है, भारत रत्न का सम्मान पाकर अपने विरोधियों का मुँह बंद कर देता है। जब कई बार चुपचाप पीर साहब की मज़ार पर जाने के बाद उसकी बहू पुत्र को जन्म देती है, तो देवीलाल ईश्वर के अन्याय को भूल जाता है। और मौत के मुँह से बचकर आया विजय लाल तय करता है कि अपने मन में करुणा चौधरी के प्रति पलती हसरतों को पूरा करेगा, उसकी यह ललक उसे खान मार्केट के पीछे फिरने वाले एक घुमक्कड़ ज्योतिषी तक ले जाती है।
अनेक वर्ष बाद लघु कथा लेखक की ओर दुबारा लौटे खुशवंत सिंह ने निस्संदेह एक यादगार संग्रह प्रस्तुत किया है - हास्य-व्यंग्य पूर्ण, विचारोत्तेजक, बेबाक और मर्मस्पर्शी भी।
मारग्रेट ब्लूम न्यूयॉर्क से अपनी आत्मा की खोज में हरिद्वार आती है। पर शीघ्र ही वह समझ जाती है कि पवित्र-पावनी के तट पर भी लालसाएँ हैं। ज्योतिषी और प्राचीन हिंदू-शास्त्रों के पंडित मदन मोहन पांडे यह जान कर सन्नाटे में आ जाते हैं कि उनकी मासूम सी दुल्हन उनकी आशा के एकदम विपरीत है। धर्मपरायण ज़ोरा सिंह, देश का गौरव, जो चार सौ बीस और अय्याश होने के लिए बदनाम है, भारत रत्न का सम्मान पाकर अपने विरोधियों का मुँह बंद कर देता है। जब कई बार चुपचाप पीर साहब की मज़ार पर जाने के बाद उसकी बहू पुत्र को जन्म देती है, तो देवीलाल ईश्वर के अन्याय को भूल जाता है। और मौत के मुँह से बचकर आया विजय लाल तय करता है कि अपने मन में करुणा चौधरी के प्रति पलती हसरतों को पूरा करेगा, उसकी यह ललक उसे खान मार्केट के पीछे फिरने वाले एक घुमक्कड़ ज्योतिषी तक ले जाती है।
अनेक वर्ष बाद लघु कथा लेखक की ओर दुबारा लौटे खुशवंत सिंह ने निस्संदेह एक यादगार संग्रह प्रस्तुत किया है - हास्य-व्यंग्य पूर्ण, विचारोत्तेजक, बेबाक और मर्मस्पर्शी भी।
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