लोगों की राय

गीता प्रेस, गोरखपुर >> श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - प्रथम एवं द्वितीय खण्ड

श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - प्रथम एवं द्वितीय खण्ड

गीताप्रेस

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :1664
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7630
आईएसबीएन :00-00-0000-0

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

390 पाठक हैं

सचित्र, हिन्दी अनुवाद सहित

वेद जिस परमतत्त्व का वर्णन करते हैं, वही श्रीमन्नारायणतत्त्व श्रीमद्रामायण में श्रीरामरूप से निरूपित है। वेदवेद्य परमपुरुषोत्तम के दशरथनन्दन श्रीराम के रूप में अवतीर्ण होने पर साक्षात् वेद ही श्रीवाल्मीकि के मुख से श्रीरामायण रूप में प्रकट हुए, ऐसी आस्तिकों की चिरकाल से मान्यता है। इसलिए श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण की वेदतुल्य प्रतिष्ठा है। यों भी महर्षि वाल्मीकि आदिकवि हैं, अतः विश्व के समस्त कवियों के गुरु हैं। उनका ‘आदिकवि’ श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण भूतल का प्रथम काव्य है। भारत के लिए तो वह परम गौरव की वस्तु है और देश की सच्ची बहुमूल्य राष्ट्रीय निधि है। इस नाते भी वह सबके लिये संग्रह, पठन, मनन एवं श्रवण करने की वस्तु है। इसका एक-एक अक्षर महापातक का नाश करने वाला है।

इस संग्रह के दो भाग :

  • श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - प्रथम खण्ड

  • श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण - द्वितीय खण्ड
  • प्रथम पृष्ठ

    अन्य पुस्तकें

    लोगों की राय

    No reviews for this book