परिवर्तन >> निशिकान्त निशिकान्तविष्णु प्रभाकर
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इस कहानी का काल स्वतंत्रता से पहले का है और पृष्ठभूमि उस समय की सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल की है। एक तरफ स्वतंत्रता संग्राम की समस्यायें हैं तो दूसरी तरफ आर्य समाज, सामाजिक और धार्मिक परिवर्तनों की।
निशिकान्त विष्णुजी का पहला उपन्यास है। आमतौर पर साहित्यिक धारणा यही है
किसी साहित्यकार की पहली कृति अपने व्यक्तिगत जीवन-संघर्षों के अनुभवजन्य
यथार्थ का प्रामाणिक आकलन होती है। निशिकान्त का कथाक्षेत्र 1920 से 1939
तक फैला हुआ है। यह यथार्थ हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम का प्रखर
संक्रान्ति काल रहा है। इसका प्रतिबिम्ब हमारे सामाजिक और
सांस्कृतिक जीवन पर भी बड़े निर्णायक रूप में झलका है। इसी
सामाजिक और राजनीतिक संक्रमण-काल का पात्र है
‘निशिकान्त’।-वह सरकारी नौकरी छोड़कर
स्वतंत्रता-संग्राम में कूदने की प्रबल इच्छा और आकांक्षा के बावजूद अपनी
आर्थिक और पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ऐसा न कर पाने के लिए विवश है।
ऐसे ही एक युवक की इच्छा,आकांक्षा, छटपटाहट और विवशता है निशिकान्त। इस
प्रकार यह उपन्यास तत्कालीन निम्न मध्यम वर्गीय युवक के आत्मसंघर्ष की
गाथा है-पूरी समग्रता के साथ। इसीलिए कथ्य की दृष्टि से यह एक ऐसी
प्रामाणिक दस्तावेज है जो बदली हुई परिस्थितियों में भी उतनी ही सटीक और
सही दिखायी देती है।निशिकान्त विष्णु जी का संभवतः सर्वाधिक विवादास्पद
उपन्यास है। पंजाब के बी.ए.पाठ्यक्रम में लग जाने के बाद एक हिन्दू
सम्प्रदाय-विशेष ने इसके विरुद्ध एक व्यापक आन्दोलन चलाकर इसे पाठ्यक्रम
से निकलवा दिया था।
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