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सब देस पराया

गुरदयाल सिंह

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :176
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 7650
आईएसबीएन :00000

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पंजाबी उपन्यास का हिन्दी अनुवाद

Sab Desh Paraya A Hindi Ebook by Gurdyal Singh

सर्दी की रात। सरसों के तेल के दीये की मद्धिम रोशनी में ताऊ बिशना अपने भतीजे माधी को युगों पुरानी एक बात सुना रहा था।
देवताओं और असुरों ने सागर-मंथन किया तो चौदह रत्न निकले। इनमें एक अमृत कुंभ भी था। यह असुर लेकर भाग गए। देवता सहायता के लिए पहले ब्रह्मा जी के पास पहुँचे, परंतु उन्होंने विष्णु जी के पास भेज दिया। विष्णु जी सहायता के लिए मोहिनी रूप धारण कर जब असुरो के सामने आए तो असुर मंत्रमुग्ध हो बोले-हे सुंदरी जो भी निर्णय तुम करो वही हमें स्वीकार होगा। मोहनी ने कहा देखो-अमृत पर सभी का बराबर अधिकार है। सभी मिलकर पान करो। असुर मान गए।
परंतु मोहिनी पहले देवताओं को अमृत पान कराने लगी। तभी देवताओं की शक्ल का एक असुर, चोरी से उनकी पंक्ति में आकर बैठ गया-शायद उसे आभास था कि मोहिनी असुरों को धोखा देगी। जब मोहिनी उसे भी अमृत पान कराने लगी तो असुर के दायें बायें बैठे चाँद, सूरज देवताओं ने उसे पहचान लिया। वे चिल्लाकर बोले-यह तो असुर है। मोहिनी रूप विष्णु ने सुनते ही खंडे से असुर के दो टुकड़े कर दिए। परंतु अमृत पान के कारण असुर के दोनों रूप अमर हो चुके थे।
इसलिए विष्णु ने उन्हें शाप देकर आकाश में स्थित कर दिया। वही दोनों रूप आज तक राहू केतु के नाम से आकाश में स्थित हैं।


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