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कहानी संग्रह >> परख

परख

मालती जोशी

प्रकाशक : किताबघर प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7665
आईएसबीएन :978-93-80146-44

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मालती जोशी की 14 कहानियों का संग्रह...

Parakh

तुमने अपने बचपन में मुझे एक सपना दिखाया था कि तुम पढ़-लिखकर बड़े आदमी बनोगे, तुम्हारा एक बड़ा-सा बँगला होगा, बँगले में मेरा भी एक कमरा होगा, कमरे से लगी बालकनी में एक झूला पड़ा होगा, उस झूले पर बैठकर मैं तुम्हारे बच्चों को कहानियाँ सुनाऊँगी, उनके लिए स्वेटर बुनूँगी।

अब तुम बड़े आदमी बन गये हो। तुम्हारे पास बड़ा-सा बँगला भी है, घर में बाल-गोपाल भी हैं, पर मेरा सपना तो अधूरा ही रह गया न ! अभी तुमने मेरे लिए इतने ठिकाने गिनाये, पर एक बार भी न पूछा कि जिया, मेरे घर रह सकोगी? देखो, मुझसे जैसा बना, मैंने तुम्हारा बचपन सँवारा था। अब तुम मेरा बुढ़ापा सुधार रहे हो। हिसाब बराबर हो गया।

कैसी बात कर रही हो जिया! वीरेश आवेश में एकदम उठकर खड़ा हो गया।, कसम ले लो जो आज तक मैंने कभी तुमको आया समझा हो।...

(इसी संग्रह की कहानी अनिकेत से)

अनुक्रम

  • भागमान बुढ़िया
  • गीत पुराने याद न आना
  • एक प्याली चाय
  • कुत्तों से सावधान !
  • पटाक्षेप
  • अनिकेत
  • बंधक
  • छाँह
  • विषपायी
  • बहुत दूरियाँ हैं मेरे आसपास
  • जो बीत गई सो बात गई
  • राजधानी एक्सप्रेस
  • शून्य का गणित
  • अपदस्थ
  • परख


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