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उपन्यास >> अन्नदाता

अन्नदाता

बलदेव सिंह

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :344
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7713
आईएसबीएन :978-81-263-1874

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सुप्रसिद्ध पंजाबी उपन्यासकार बलदेव सिंह का समय के यथार्थ को व्यक्त करता एक उल्लेखनीय उपन्यास...

Annadata - A Hindi Book - by Baldev Singh

‘आषाढ़ के समय गाँव में कभी मिरासी, कभी बाजीगर आ जाते थे। अन्नदाता की खैर, भाग लगे रहें। बरकत बनी रहे, का आशीर्वाद देकर जाते। गाँव के बच्चे आते। माँगने वाले आते। चुनने-बीनने वाले आते। कभी किसी को खाली नहीं लौटाया। गेहूँ से भले घर न भरता हो, खाने लायक रखकर बाकी कनक बैलगाड़ी में मंडी ले जाते थे। शाम को बेच कर ही वापस आते। तब मैं समझता देश का राजा भी मेरा क्या मुकाबला करेगा। घर घुसता तो बच्चे टाँगों से चिपट जाते। थैले छीनने को दौड़ते। साफे के कोने के साथ बाँध कर जलेबी, लड्डू, शक्करपारे आते। उनका स्वाद ही और था। चाव भी और ही था। जो खा पीकर बचता, हरकौर को ला पकड़ाते। वह ऐसे सन्दूक में सँभाल कर रखती, मानो कौरवों का खजाना हो। उड़ते फिरते थे। अब न चाव, न ही लोग वैसे हैं। और न फसलें ही वैसी रह गयीं।’– सुप्रसिद्ध पंजाबी उपन्यासकार बलदेव सिंह ने अपने इस उपन्यास ‘अन्नदाता’ में आम भारतीय किसान की इसी पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान की है। वर्णन की शैली तथा विषयवस्तु की प्रासंगिकता इसे महत्त्वपूर्ण बनाती है। पंजाबी से हिन्दी में अनुवाद करते हुए फूलचन्द मानव ने मूल भाषा का आस्वाद अक्षुण्ण रखा है। हमारे समय के यथार्थ को व्यक्त करता एक उल्लेखनीय उपन्यास।

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