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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


मैंने कहा–अगर पता होता तो क्यों पूछता?
पर मामी ने कह दिया–रहने दो, यह बड़ों के काम की चीज है।
मेरे इस बारे में बार-बार सवाल करने पर मामी ने टीवी में एक चैनल ढूढ़ा, जिस पर एक सेक्सी सीन चल रहा था और उसकी तरफ इशारा कर दिया।
मैं बोला–इसमें यह चीज तो कहीं दिख ही नहीं रहीं...?
मामी चुप हो गई।
मैं मामी के पास दूसरी बार रात के लगभग 11 बजे फिर पहुँच गया और फिर से सेक्स सीन वाली हरकतें करने लगा।
मामी बोली–यह क्या कर रहे हो?
इस बीच मेरा कामांग भी धीरे-धीरे अपना आकार बदलने लगा।
मैंने पूछा–मामी लड़कियों का कामांग भी ऐसा ही होता है? उस दिन जबसे मेरी नजर बाथरूम में आप पर पड़ी थी तभी से मेरी उत्सुकता बढ़ गई है। जल्दी-जल्दी में जो कुछ देखा उसको लेकर कुछ सवाल हैं मेरे मन में।
उन्होंने होंठ दबा कर इन्कार में सर हिलाते हुए कहा–नहीं...।
मैं बोला–तो आप दिखाओ ना कि कैसा होता है? और यह खड़ा क्यों हो जाता है?
उन्होंने साफ मना कर दिया।
मैं बोला–आपने ना मुझे पहले यह बताया कि तकिए के नीचे रखा पान मसाले जैसा पैकेट किस काम आता है, ना अब अपना कामांग दिखाती हो। यह अलग बात है कि मैं उसकी एक झलक पहले भी देख चुका हूँ।
इस पर कुछ वो जरा खुली आवाज में बोली–लड़कियों के बाहर कुछ नहीं खड़ा होता है। हमारा तो सब काम अंदर-ही-अंदर चलता है।
मैं अपने कामांग को पैंट के ऊपर से सहलाते हुए बोला–लड़कियों की कामांग कैसी होती है?
यह सब सुन कर और मुझे कामांग सहलाते देख कर मामी बोली–देखो यह सबको नहीं दिखाया जाता है।
मैं बोला–पर मैं तो आपका कामांग देख चुका हूँ, बस केवल एक बार दोबारा ठीक से देखना चाहता हूँ।
वह बोली–हाँ, वह तो है, लेकिन एक शर्त पर दिखा सकती हूँ।
मैंने पूछा–क्या शर्त?
पहले तुम अपनी पेंट खोलो और अपना कामांग मुझे दिखाओ, उसे देखने के बाद मैं फैसला करूँगी कि मैं तुम्हें दिखा सकती हूँ कि नहीं। बोलो–मंजूर?

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