श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से वयस्क किस्सेमस्तराम मस्त
|
0 |
मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से
भाभी की उँगलियाँ उसे पकड़ कर आठ दस बार नीचे ऊपर करने के बाद एकदम रुकीं और
इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाऊँ, उन्होंने अपना मुंह नीचे कर सामान को लॉलीपाप
की तरह मुँह में गपक लिया। उसके बाद तो वह उसे बच्चों के समान चूसने लगी।
भइया कुछ देर के लिए सकते में आ गये। फिर जब उन्हें फिर से होश आया तो वे भी
अपने हाथों से जोर-जोर से उभार और कली को सहलाने लगे।
समझ में नहीं आ रहा था कि कौन अधिक उत्तेजित था? भाभी, भइया या मैं?
भइया का सामान तो पहले से पूरा फूल कर बड़ा हो चुका था। इसके कारण कभी वो भाभी
के मुँह में आधा से अधिक चला जाता और फिर एक फुदक कर वापस निकल आता। मुंह से ही
इस तरह अन्दर बाहर होने से भइया की हालत गंभीर हो गई और वो मस्ती में आकर ऐंठने
लगे। वे दोनों पल भर में आपस में गुथ गये।
भइया का मुँह भाभी की कली के पास चला गया और ऐसा लग रहा था कि दूसरी तरफ भाभी
ने भइया का सामान अब भी अपने मुँह में चूसा हुआ था। मेरी तरफ भाभी की कली और
भइया का मुँह था। दूसरी तरफ भाभी, भइया पर क्या कहर ढा रही थी यह मुझे दिखना
बंद हो गया था। मुझे तो भइया की लपलपाती जीभ और भाभी की रह-रह कर काँप उठने
वाली टाँगे, जाँघे और पेट का निचला हिस्सा दिख रहा था। इन दोनों को इस तरह करते
देख कर मैं तो बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गया था।
इन लोगों को देखते-देखते मेरा हाथ अचानक अपने सामान पर इतनी तेजी से चलने लगा
कि मैं खुद ऊपर से नीचे तक एकदम से गनगना उठा। कुछ देर तक भइया का सिर और भाभी
की तड़पती टाँगे दिखती रहीं। भइया अपना सिर उठाते कभी-कभी उनकी लपलपाती जीभ
मुझे दिखती। अचानक भाभी को झचके लगने लगे और उन्होंने अपनी जाँघों से भइया का
सिर पकड़ लिया कि वो हिल ही न पाये। ये चल ही रहा था कि भइया की पीठ भी लहराने
लगी। मैं इस सबका मतलब ठीक से समझने की कोशिश कर ही रहा था। दोनों एकदम निश्चल
होकर कुछ समय ऐसे ही पड़े रहे। थोड़ी देर पहले ऐसा लग रहा था कि दोनों एक दूसरे
को चबाकर निगल जायेंगे, पर अब एकदम रुक कर पत्थर की तरह हो गये थे।
कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहने के बाद भाभी उठकर बैठी और उसने घूम कर अपना मुँह
हमारी तरफ कर लिया। भइया पीठ के बल लेटे और भाभी उसके पेठ पर मजे से नंगी बैठी
हुई थी। उसके बाल खुल कर दोनों ओर लहरा रहे थे। भाभी के मुँह पर कुछ ऐसे भाव थे
जैसे बिल्ली अभी-अभी चूहा मार कर आयी हो। वह भइया के पेट पर बैठी रही और उसने
आगे बढ़कर भइया की छाती पर उंगलियाँ फिराने लगी।
अचानक भइया ने उठ कर भाभी को पीछे झुकाते हुए उसके होठों पर अपने होठ लगा दिये।
फिर दोनों अंग्रेजी फिल्मों की तरह एक दूसरे को चूमने लगे। भइया ने होठ चूसते
से एक मिनट रुक कर कहा—रानी आज तो तुम ऊपर ही रहो।
रोज तो हम मैं ही ऊपर रहता हूँ, पर आज खेल बदल देते हैं, मैं नीचे और तुम ऊपर।
इस पर भाभी बोली, आप भी क्या बात करते हैं, औरत थोड़ी ऊपर रहती है, ऊपर तो मर्द
ही रहता है। ऐसे कुछ नहीं हो पायेगा। इस पर मैं कुछ अचरज में आ गया और मन ही मन
सोचने लगा कि इस बात का क्या मतलब है?
भइया बोले—जान देखो आज की तुम्हारी हालत देखकर मुझे लग रहा है कि खेल की बागडोर
तुम्हारे हाथ में ही रहनी चाहिए। इससे तुम ज्यादा मेहनत कर पाओगी और इस खेल में
ज्यादा मेहनत, मतलब ज्यादा मजा।
|