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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


चतुर चाची
प्रेषक : सहगल
वह हमको बेटा कहती थी। अपना कोई लड़का न होने के कारण उनका प्यार हमारे पर अधिक था। मेरी माता जी के पास अक्सर जाकर बैठा करती थी। उनके पास अपनी कोई सन्तान नहीं थी इसलिए पड़ोसियों के बच्चों को बेहद प्यार करती थी। अन्य बच्चों की उपेक्षा उनका ध्यान हमारी ओर बहुत अधिक रहता था।
मेरी उम्र उस समय सिर्फ सत्रह साल की थी। रेखा अभी उभर रही थी। वैसे, अब मैं जवानी की ओर कदम रख रहा था। किशोरवस्था के सभी परिवर्तन मुझमें होते जा रहे थे। जब कभी चाची जी प्यार से मेरे सर पर हाथ फेरती तो पूरा बदन सिहरन से भर आया करता। हमें पहले की अपेक्षा उनके स्पर्श में काफी सुख मिलता और अनायास मेरी आखें उनके ब्लाउज के ऊपर थम जाती। मैं किशोरवस्था की कमजोरी का शिकार होने लग गया था। वैसे मैं अभी कोरा, था। अब हमें चाची के पास रह कर उसको देखने में बड़ा लुत्फ आता था।
वे उम्र में मेरी मां से छोटी श्री। उनकी उम्र पैतीस के आसपास थी.. शरीर से तगड़ी थी। चाचा की अपेक्षा उनका शरीर तगड़ा था अब मैं प्रायः उनके घर में जाया करता चाची प्यार से हमसे बातें करती।
अच्छी-अच्छी चीजें बनाकर खिलाती। इस बीच जब कभी हमारे बदन पर प्रेम दर्शाते हाथ को फेरती तो पूरा बदन सिहर जाता औऱ उसमें 'गजब की मिठास का अनुभव होता यह परिवर्तन मेरे उम्र का था। इस बीच चाचा जी को ऑफिस के काम से दो हफ्ते के लए बाहर जाना हुआ। चाची ने मेरी मां से कहा कि रात को हमको उनके साथ सोने के भेज दिया करें अकेली हूँ न घर पर।
रात को उनके अकेले घर में असुरक्षित महसूस करने की बात माँ को समझ में आई। फिर हम लोगों के बीच रिश्ते की घनिष्ठता तो थी ही।
इसलिए मां ने समझाते हुए कहा तुम आज रात से कुछ दिनों के लिए चाची के यहां जाकर सोना। क्योंकि चाचा बाहर गये हैं। मैं खुशी-खुशी उनके घर सोने को तैयार हो गया। हमें चाची के पास रहने में एक अजीब से आत्मिक सुख की अनुभूति होती थी। बड़ा ही अच्छा लगता था चाची के पास रहने में। मेरी आंख अक्सर अपने आप चाची के ब्लाउज की मादकता पर जा रूकती। पता नहीं क्यों उन उभारों को देखने में हमें बड़ा मजा आता।। मैं इस समाचार से बेहद खुश हुआ कि चाची के पास रात भर सोना भी होगा। सयानेपन के परिवर्तन से मुझमें सेक्स थोड़ा-थोड़ा पैदा हो गया था। चाची ही नहीं और भी आस पड़ोस की औरतों और लड़कियों के बदन की ताक-झाँक में मन लगने लगा था। यह सब मेरे किशोरपन का परिवर्तन ही था। चाचा जी को छोड़ने मैं स्टेशन गया। वहां से शाम छः बजे घर वापस आया तो चाची मेरे घर में मौजूद थी। हमको देखते ही पूछा गाड़ी ठीक समय से थी।

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