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वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से

शाम को उसने पाँच बजे ही भोजन तैयार कर रख लिया। उसके बाद विमल के आने का इंतजार करने लगी। वह चाहती थी कि शाम को भी विमल को स्टेशन पर मिल ले, लेकिन शाम को आने का समय निश्चित नहीं था। इस बीच ट्रेन के इंतजार में कहाँ रुकेगी, यह सोचकर विमल ने उसे स्टेशन आने के लिए मना कर दिया। वैसे भी उसके कार्यालय के किसी साथी की पत्नी स्टेशन आती थी, इसलिए वह अधिकतर उनके साथ ही घर आ जाया करता था। अपनी कालेज की सहेलियों के अनुभवो को सुन-सुनकर उसने पक्का मन बना रखा था कि कम-से-कम उनके झगड़ों से जो कुछ सीख पाई थी, उसका लाभ लेकर वह अपने वैवाहिक जीवन को अधिक से अधिक सुखी बनाएगी।

बार-बार खिड़की पर देखते और दरवाजे की घंटी की राह देखते-देखते उसकी उत्सुकता बढ़ रही थी। उसने विमल की पसंद का भोजन बनाया था। अभी थोड़ी देर पहले दोबारा स्नान किया था। कुछ देर पहले ही मादक सुगंध अपने शरीर के विभिन्न आवश्यक भागों पर इस तरह सावधानी से लगाई थी, कि वैसे पता न चले पर सुगंध अपना काम पूरी सफाई से कर जाये। कुल मिलाकर वह विमल के लिए हर तरह से तैयार थी।

ठीक 6 बजकर 17 मिनट पर दरवाजे की घंटी बजी। आवाज सुनते ही उसका दिल अपने शरीर से बाहर निकलने की स्थिति में आ गया। धड़कते दिल से उसने दरवाजा खोला तो हल्की मुस्कान लिए विमल बाहर खड़ा था। उसके अंदर आते ही वह विमल से लिपट गई और कुछ देर उसके आलिंगन का अप्रतिम आनन्द लेती रही। फिर अलग होकर बोली, "आप फ्रेश हो लीजिए, तब तक मैं चाय बनाती हूँ।" विमल बोला, "ठीक है।" माधवी ने चोर नजर डाली तो विमल का पैण्ट कुछ उठा हुआ लग रहा था। स्वयं उसके सलवार के अंदर नमी अपना रास्ता बनाती हुई बाहर निकलने की तैयारी करने लगी थी। विमल कपड़े बदलने और बाथरूम की ओर बढ़ा और माधवी किचन की ओर बढ़ी।

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