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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से



दिशा मैदान से जुगाड़
लेखक-छुपा रुस्तम
मुम्बई शहर की एक मलिन बस्ती के पास मैं हमेशा शौच करने के लिये घर से बाहर कुछ दूरी पर बनी रेलवे लाईन पर जाता था। गरीबी के कारण अभी तक हमारे घर में शौचालय नहीं बना था हमारे घर के स्त्रियां पड़ोसी के यहाँ जाती और मर्द लोग घर से बाहर।
रेलवे लाईन के बगल में एक बड़ा सा तालाब था और उस तालाब के चारों और बड़े-बड़े पेड़ एवं पीले लम्बे झाड़ होने के कारण मुझे शौच करने में जरा सी भी लाज नहीं आती थी।
कारण यह था कि हमने जिस स्थान पर शौच करने का अड्डा बना रखा था बाहर के आते जाते लोग मुझे देख ही नहीं सकते थे। बराबर मैं वहीं जाता। उस समय मेरी शादी नहीं हुई थी। मैं भरपूर जवान तो हो गया था, पर था अभी तक कुँवारा..।
शौच करते समय हम अपने सामान को हमेशा निहारते कभी हम उसे हाथ से सहलाते तो वह लोहे की रॉड बनकर तन जाता। मन में हमेशा किसी जवान लड़की या औरत को लगाने की लालसा जगती।
मुझे क्या पता था कि मेरी रोज-रोज की हरकतों को कोई देखा करता था। मैं जिस स्थान पर शौच करता था, ठीक उसके सामने एक बड़ा सा मकान था उस मकान में रहने वालों को मैं अच्छी तरह से जानता थे कि वे लोग ऊँचे घराने के हैं और ऊँची जाति के राजपूत थे।
एक दिन मैं शौच करने के बाद ज्यों ही वहाँ से जाने लगा तो सामने खिड़की पर एक औरत नजर आई वह कुछ गुस्सा होकर मुझे अपने पास बुला रही थी। उसके चेहरे पर आये गुस्से को देखकर मैं पूरी तरह से डर गया था।
डरने का कारण भी था कि मैं उसके घर के सामने शौच करता था। उसे अच्छा नहीं लगता था कि कोई उसके घर के सामने शौच करे।

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