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श्रंगार-विलास >> वयस्क किस्से

वयस्क किस्से

मस्तराम मस्त

प्रकाशक : श्रंगार पब्लिशर्स प्रकाशित वर्ष : 1990
पृष्ठ :132
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 774
आईएसबीएन :

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मस्तराम के मस्त कर देने वाले किस्से


मैं लजाता शरमाता हुआ बोला—आण्टी आपको इस तरह देखा तो मैं ऊपर से नीचे तक सनसना उठा और मुझे अजीब सा होने लगा। वह पलंग पर बैठ गई।
मुझसे बोली—सुरेश तुम रोज शौच करते समय तुम अपनी नूनी को हाथ से सहलाते रहते हो।
मैं बोला—मुझे ऐसा करने में बहुत अच्छा लगता है।
आण्टी हंस कर बोली—तुझे अच्छा लगता है।
हां....हां आण्टी मुझे बहुत अच्छा लगता है। इतने में उन्होंने मेरी लुंगी में हाथ डालकर तमतमाये हुए और नूनी से बने नूने को पकड़ लिया और उसे लुंगी से बाहर निकालते हुये देखी। फिर कहा, सुरेश! तुम्हारा नूनू तो कब से फड़फड़ा रहा है! आण्टी जब मेरे नूनू को अपने कोमल हाथ से सहलाने लगी तो अपनी उत्तेजना पर काबू करने के लिए मैं उसके पपीतों को पकड़कर मसलने लगा। अब तो आण्टी का बदन भी सिहरने लगा। उन्होंने मुझे पलंग पर बैठने के लिए कहा। मैं जब बैठने लगा तो वह बोली—इससे भी बढ़िया रहेगा कि तुम आराम से लेट जाओ। मेरे लेटते ही वह लुंगी की गाँठ खोल कर बड़े मजे से नूने को हाथ की मुठ्ठी से पकड़ कर हौले-हौले नीचे-उपर करने लगी, अब तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं पानी बिन मछली की तरह तड़पने लगा। अपनी उत्तेजना को संभालने के लिए मैं बार-बार उसके बड़े-बड़े पपीतों को पकड़ ज़ोर से दाबने लगता।
वह बोली—तुमने किसी की मछली तो देखी नहीं तब लड़कियों को कैसा लगता है इसका भी तुमको कुछ पता नहीं होगा?
उसकी इस बात पर मैं उत्तेजित हो उठा।
आण्टी बोली—इससे पहले किसी लड़की को आज तक नंगे देखा है कि नहीं? बिलकुल सच सच बताओ..।
मैं पहले तो लजाया पर जब यह बताया कि हाँ, आण्टी देखा है अपने एक चचेरे भाई वाली भाभी को जो विरार में रहते हैं। एक रात मैं उनके घर में रुका था। उस रात जब मैंने भाई को भाभी के ऊपर चढ़े देखा तब भी मेरी नूनी उसी समय फनफना उठी थी।

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