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अपनी डफली अपना राग

मोहन सिंह

प्रकाशक : साहित्य एकेडमी प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :116
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7779
आईएसबीएन :978-81-260-2435

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तीन रंगमंचीय डोगरी नाटकों का हिन्दी अनुवाद...

Apni Dafli Apna Rag - A Hindi Book - by Mohan Singh

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

 

मोहन सिंह आधुनिक डोगरी नाटककारों में एक प्रसिद्ध नाम है। इनके नाटक डोगरी भाषा में अपना विशेष स्थान रखते हैं। उन्हें डोगरी नुक्कड़ नाटकों का जन्मदाता कहा जाता है। सत्त जमा सत्त उनके चौगह नुक्कड़ नाटकरों का संग्रह है। उनकी कलम की धार खूब तीखी है। डोगरी के प्रगतिवादी लेखकों में उनका अपना स्थान है। न केवल नाटककार अपितु आलोचक और कवि के रूप में भी मोहन सिंह एक चर्चित नाम है।

प्रस्तुत पुस्तक उनके तीन रंगमंचीय नाटकों का संग्रह है। तीनों नाटक भिन्न-भिन्न विषय वस्तु को लेकर लिखे गए हैं। नाटकों का यह संग्रह साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत है। उनके नाटक विभिन्न मंचों पर अनेक बार मंचित हो चुके हैं और दर्शकों ने इनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है। अपनी डफली अपना राग राजनयिकों के क्रियाकलापों पर तीखा व्यंग्य है। ‘नमीं आवाज़’ भी शोषकों और शोषितों के बीच संघर्ष को उजागर करता है जबकि तीसरा नाटक ‘ज़रा सोचो तो...’ गृह-कलह से होने वाले दुष्परिणामों की ओर इंगित करता है।

हिन्दी में इस संग्रह के नाटकों का अनुवाद प्रकाश प्रेमी द्वारा किया गया है। प्रकाश प्रेमी डोगरी के जाने-माने साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत कवि हैं। उनके प्रथम मौलिक डोगरी महाकाव्य बेद्दन धरती दी पर उन्हें यह पुरस्कार दिया गया है। वे हिन्दी, संस्कृत, डोगरी, पंजाबी, उर्दू और गोजरी भाषाओं के अच्छे जानकार हैं।

 

अपनी डफली अपना राग

 

पात्र

 

1. एक
2. दूसरा
3. तीसरा
4. चौथा
5. प्रश्नकर्ता
6. नेता
7. जोगी
8. बदमाश एक
9. बदमाश दो
10. नर्तक एक
11. नर्तक दो
12. गायन मण्डली के गायक—चार
13. ढोलक वाला
14. ढोल वाला (ढोलची)
15. बांसुरी वादक
16. हारमोनियमवाला
17. तबला वादक

(कुल पात्र बीस)

(बीस पात्र मंच पर आते हैं जिन में दो ढोलची, एक हारमोनियम वाला और एक बांसुरी वाकद है। एक नेता, एक योगी, दो बदमाश, दो नर्तक और चार साधारण डोगरा वेश-भूषा में। चार गायक, एक प्रश्नकर्ता। बदमाशों और नर्तकों के वस्त्र भी साधारण हैं। (पात्रों की संख्या घटाई-बढ़ाई जा सकती है।) सभी पात्र गाते बजाते मंच पर आते हैं।)

गीत : ‘‘अपनी डफली अपना राग’’—(इसी पंक्ति को गाते-गाते मंच के दर्म्यान, अगले भाग में आकर खड़े हो जाते हैं और फिर हाथ जोड़कर वन्दना करते हैं।)

वन्दना :

 

लाज राखियो, मोरी लाज राखियो,
मोरी लाज राखियो रे दर्शकों।
कर बद्ध हो विनती करें हम
गुण-दोष बताइयो रे दर्शकों !
डोगरे हैं, हम डुग्गर के बासी,
डुग्गर की शान निराली है।
रूप-लावण्य धन्य है इसका
जनता सब भोली-भाली है।
भोली जनता को ठगते आए,
उनके ही बनाए मुखिया सब,
दुखियों के दुख की सुध न ली,
दुखिया हैं रहते दुखिया सब।
बांट लो दुखियों के दुख भी कुछ
उनकी खुशियों में भी हँस लो।
लाज राखियो, मोरी लाज...।

 

फिर नृत्य करते-करते मंच की एक ओर चल देते हैं। चार पात्र जो साधारण डोगरा वेश-भूषा में हैं, ढोल के ताल पर डुग्गर का परम्परागत नृत्य करते-करते खेतों में हल चलाने और बीज बोने की ‘‘माइम’’ करते हैं। दो बैल बन जाते हैं, एक किसान बन जाता है और चौथा मेंढ बान्धने लगता है। तदन्तर गोडाई-निराई की ‘‘माइम’’ करने लगते हैं फिर धान रोपने की माइम करते हैं और फिर गायन मंडली के पात्र उनसे प्रश्न करने लगते हैं।

प्रश्नकर्ता : (वाद्य बन्द करवाकर) अरे भाई, कौन हो तुम ? क्या करते हो ? कहां रहते हो ? कैसे जीते हो ? अता-पता, ठौर-ठिकाना कुछ तो होगा तुम्हारा भाई।

चारों : सब कुछ है भाई, सभी कुछ है।
एक : हम किसान हैं।
दूसरा : खेत जोतते हैं।
तीसरा : फसल लगाते हैं।
चौथा : अपने लिए भी, दूसरों के लिए भी।

एक : और रहते हैं यहां भारत में।
दूसरा : जी लेते हैं प्रेम-भाव से।
तीसरा : यह अपना अता-पता है, और यही ठौर-ठिकाना।
चौथा : इस प्यारे भारत को छोड़कर, कहीं न जाना, कहीं न जाना।
चारों : हिल-मिल कर जी लेते हैं, प्रेम-प्याले पी लेते हैं।

प्रश्नकर्ता : तुम धन्य हो भाई...। यदि तुम सचमुच किसान हो तब आप हमारे लिए भागवान हो। पर यार एक बात तो बतलाओ। गीत तुम्हें आता है कोई तब गाकर हमें सुनाओ।
चारों : गीत–हां–लो सुनो (चारों गीत गाते हैं। वादक वाद्य बजाते हैं और गायक मंडली टेक देती है।)

गीत :

 

महनत करे किसान
महनत खूब करे
हल चलाता,
‘दोहर’ चलाता
और करे ‘‘कदोआन’’1
महनत खूब करे...
करे गोड़ाई और निराई,
खेतों में खपाए जान
महनत खूब करे...
मधुर है इसकी महनत का फल
खाए जगत-जहान
महनत खेब करे...
महनत करे किसान
महनत खूब करे...

 

प्रश्नकर्ता : वाह ! भाई वाह ! वाह् भई वाह। आनन्द आ गया गीत सुनकर। परन्तु एक बात तो बतलाओ यार हर समय तुम यही कुछ तो नहीं करते रहते हो ? कभी-कभार आपस में चार भाई मिलकर हंसी-मज़ाक भी तो करते ही होगे ?

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1. रोपाई से पूर्व सिंचित खेत में हल चलाने की प्रक्रिया।

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