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पिंजरे में उड़ान

निकिता लालवानी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :242
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7832
आईएसबीएन :978-0-143-06405

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महत्वाकांक्षाओं की ऊंची उड़ान और कामनाओं की गहराइयों को मापता निकिता लालवानी का चकित कर देने वाला उपन्यास...

Pinjare Mein Udan - A Hindi Book - by Nikita Lalwani

रूमी वासी की उम्र दस साल, दो महीने, तेरह दिन, दो घंटे, बयालीस मिनट और छह सैकेंड की है। जॉन केम्बल के साथ वैसे तो उसके घर से स्कूल की दूरी 0.2142 मीटर है, लेकिन पिता द्वारा जबरन झालर वाली फ्रॉक और मोटे ऊनी टाइट्स को पहनाए जाने के बाद यह कई गुना बढ़ जाती है।

जब से रूमी ने गिनती सीखी थी तब से उसकी दुनिया में संख्याएं भरी पड़ी थीं। आठ साल की उम्र में भारत की यात्रा करने पर उसे अपनी इस शक्ति का अहसास हुआ। जब वह वापस अपने घर कार्डिफ़ आई तो उसकी प्रतिभा को एक पहचान मिल गई; अब वह अपने शहर में ‘गणित की असामान्य प्रतिभा’ के रूप में जानी जाती थी। परंतु उम्र बढ़ने के साथ रूमी हर बढ़ते पल में केवल संख्याओं से बंधकर नहीं रह सकी। दोस्त की तलाश में वह अपने होमवर्क से भागने लगी और सूत्रों की जगह मेलोरी टावर्स की कहानियों ने ले ली।

परिवार की बंदिशें जिस हद तक बढ़ती गईं, उतनी ही ज़्यादा रूमी की प्यार पाने की इच्छा भी बढ़ती गई। महत्वाकांक्षाओं की ऊंची उड़ान और कामनाओं की गहराइयों को मापता निकिता लालवानी का यह चकित कर देने वाला उपन्यास किशोरावस्था के उस नाजुक पड़ाव की कहानी कहता है, जिसमें भावनाओं के साथ-साथ इतिहास, गणित और ज़ीरे के दाने भी अपना-अपना अहम किरदार निभा रहे हैं।

Gifted, Nikita Lalwani

आवरण डिज़ाइन : पूजा आहूजा

अनुवाद : मृदुला हालन

निकिता लालवानी राजस्थान के कोटा में 1973 में जन्मीं और कार्डिफ़, वेल्स में आपका लालन-पालन हुआ। आपने बीबीसी के लिए तथ्यात्मक टेलीविज़न और डॉक्यूमेंट्रीज़ का निर्देशन किया है। गिफ़्टेड आपका पहला उपन्यास है। आप लंदन में रहती हैं।

पिंजरे में उड़ान
भाग एक
1.


महेश अपने दफ़्तर में बैठा नंबर दे रहा है। बाहर एक ट्रेन डीज़ल की गंध छोड़ती तेज़ी से धड़धड़ाती गुज़रती है तो वह खिड़की की तरफ़ देखता है। शरद ऋतु का सन्नाटा किसी बीते निर्णय की तरह उसके कमरे में पसर रहा है। इंग्लैड के इस मौसम को इसी तरह अनुभव करते हुए ग्यारह साल बीत गए। इस कमरे में यह चौथा साल है। महेश सिर उठाकर ऊपर देखता है। दीवार पर चार्ट और चित्र टंगा है। दुनिया का नक़्शा एक ऐसे अटपटे कोण पर टंगा है कि नीला सागर लोहे की किताबों की अलमारी के पीछे छिपकर रह गया। शेल्फ़ पर क़तार में किताबें ठूंसी हुई हैं। किताबों के बीच दबे काग़ज़ और फ़ाइलें–नारंगी,काले, सफ़ेद और ग्रे फुलस्केप कुछ फेरबदल के साथ ठुंसे दिख रहे हैं। कमरे के बाएं कोने में सफ़ेद बोर्ड के साथ लगा गांधी जी का रेखाचित्र मानो उसे ताक रहा है। उसके अवचेतन में फंसी कोई परेशानी थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बहुत हौले से उसकी विचार श्रृंखला को गड़बड़ा रही है।

रूमी ने अपनी कॉपी में वह क्यों लिखा था ? यही सवाल थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसकी चेतना को झकझोर देता है : जैसे एक सूक्ष्म औज़ार नर्म मसूढ़े को छेद रहा हो। उसने ऐसा क्यों लिखा ?

मैं शैरन रैफ़र्टी, जूली हैरिस और लिएन रोपर के साथ खेलने के लिए जंगल में गई। उन्होंने मुझे सॉफ़्टबॉल खेलने दिया। शैरन ने कहा, ‘‘हम चलकर हमारे घर से सॉफ़्टबॉल और रैकिट ले आते हैं।’’ उसके घर पहुंचकर हम गेट के बाहर खड़े हो गए। शैरन ने कहा, ‘‘ज़रा मैं देख आऊं कि तुम अंदर आ सकती हो या नहीं। मेरी मम्मी अश्वेत लोगों को पसंद नहीं करतीं।’’ और सबके साथ वह अंदर चली गई। मैं बाहर प्रतीक्षा करने लगी।

भगवान का शुक्र है कि उसने आकर कहा सब ठीक है। हम अंदर गए, पॉप आईस खाई और रैकेट लिए। मिसेज़ रैफ़र्टी बग़ीचे में सन बाथ ले रही थीं। वे एकदम लाल लग रहीं थीं। हमने रैकेट लेकर जंगल में सॉफ़्टबॉल खेला।

‘अश्वेत !’ इस शब्द से उसके दिमाग में एक परिकल्पना उभरी, जैसे एक गोल चेहरे पर क्रेयॉन से भूरी मोटी रेखा खींच दी गई हो। रूमी छोटी थी तो परेशानी में ही अजीब से चित्र बनाया करती थी।

वह अपने कमरे के कोने में से झांकते गांधी जी के झुर्रीदार पर अचल चेहरे की तरफ़ देखता है। कॉलेज के दिनों में जब नए-नए विचारों का अंबार मन में भरा होता था, तब वे इसका क्या मतलब लगाते ? ट्रॉट्सकाइट्स, गांधीवादी, साम्यवादी–उन दिनों उन लोगों ने अपने लिए अनेक नाम खोज लिए थे। पान चबाते हुए, पानी के तीखे स्वाद का आनंद लेते हुए वे कितनी बहस किया करते थे कि वर्गभेद की लड़ाई क्या अहिंसा से सिद्ध हो सकती है। वे इस नाम के बारे में क्या सोचते ? रूमी की कॉपी में यह सब पढ़ने के बाद उसने रूमी से इस विषय पर जो बातचीत की, उसके बारे में उनके विचार क्या होते ?

‘‘रूमी, तुम्हें अपना स्कूल पसंद है ?’’
‘‘मुझे धौंस जमाने वाले अच्छे नहीं लगते।’’
‘‘धौंस जमाने वालों से तुम्हारा क्या मतलब ?’’

‘‘वे लोग जो मेरे साथ अच्छा सलूक नहीं करते।’’
‘‘तुम ऐसी बातों की परवाह मत करा करो। अब तुम दस साल की हो।’’
‘‘क्या?’’

‘‘तुम ऐसे रहो जैसे जंगल में शेर। जैसे जंगल बुक में शेर ख़ां।’’
‘‘डैडी। आप कहना क्या चाहते हैं ?’’
‘‘कोई तुम्हें मारे तो तुम उलटकर उसे मारो। कोई एक दफा मारे, तुम दो दफा मारो।’’

उसके मुंह से शब्द स्वतः ही निकल गए, जैसे बंदूक से निकली गोली पर उनमें एक सचाई थी। रूमी की आंखों में उभर आई चमक को देख उसने अपनी नज़रें घुमा ली। उसने सोचा तुम जितनी हैरान हो, मैं भी उतना ही हैरान हूं। पर मैं तुम्हें पीड़ित नहीं बनने दूंगा। मैं ऐसा होने नहीं दूंगा।

उसने जो दुनिया रहने के लिए चुनी है, अपनी इकलौती संतान को केंद्र में रखकर, उसके इस फ़ैसले के बारे में हैदराबाद कॉलेज के उसके मित्र क्या सोचते ? अगर सोचे तो व्हाइटफ़ुट, उसका वर्तमान मित्र, कार्डिफ़ में पीएच.डी कोर्स में उसका सहयोगी, एक मार्क्सवादी–वह इस बारे में क्या सोचेगा ?

तभी बाहर से दूसरी ट्रेन गहरे माइग्रेन की तरह कमरे की हर चीज़ को हिलाती हुई गुज़री। कमरे में आए कंपन से गांधी जी का चित्र तनिक हिल गया। चित्र के शीशे के एक हिस्से पर पड़ती सांझ की रोशनी से गांधी जी के चेहरे का एक हिस्सा छिप सा गया। अश्वेत ! उसने यह क्यों लिखा ?

शाम के 4 बज गए। आज के दिन का काम इतना ही। उसने चार पेपर्स को जांच लिया है। कमरे की रोशनी धूमिल पड़ गई है। महेश ने अपने फ़ाउंटेन पैन का ढक्कन बंद करके अपने ब्लेज़र की बाहरी जेब में ऐसे रखा कि उसका स्टील क्लिप ब्राउन पॉलिस्टर के ऊपर दिखाई दे। यह पैन शिरीन ने उसे भेंट किया था। प्रसूति के बाद उसने काम शुरू किया तो पहले कुछ महीने की तनख़्वाह से कुछ पैसे बचाकर उसने पैन ख़रीदा था। यह पैन भी रूमी की ही उम्र का है। दस साल बाद भी इस पर कोई खरोंच, कोई निशान नहीं पड़ा, छूने से अभी भी यह पहले सा रेशमी है। यह पैन ज्ञान और विद्वता का एक भड़कीला साधन है, यह सोचते हुए आज भी उसका मन अपराधबोध से भरे आह्लाद से भर उठता है। बटन बंद करके उसने उत्तर पुस्तिकाएं एक तरफ़ सरका दी। घर जाने से पहले उसने खिड़की की चिकें खोल दीं और एम.एससी. के दो शोध ग्रंथ बग़ल में दबा लिए कि घर जाकर समय मिलने पर इन्हें देख लेगा।

पांच साल पहले एक दिन रूमी ने घर आकर कहा कि मिसेज़ गोल्ड उसके माता-पिता से मिलने घर आना चाहती हैं। वह सिर्फ़ पांच साल की थी और स्कूल की पहली कक्षा में थी। मिसेज़ गोल्ड के आने के दिन शिरीन और महेश ने अपने-अपने काम जल्दी ख़त्म करके आने का फ़ैसला किया। साढ़े तीन बजे तक वे घर पहुंच गए। शिरीन भजिए तलने लगी। महेश क़मीज और टाई पहने बैठक में आकर चुप्पी साधकर बैठ गया। मिसेज़ गोल्ड रूमी का हाथ पकड़े कमरे में आई।

‘‘हम दोनों ने यहां तक का रास्ता ख़ूब आनंद से तय किया मिस्टर और मिसेज़ वासी,’’ उन्होंने रूमी को आगे करके कमरे में आते हुए कहा।
पिता की तरफ़ देख रूमी झेंपकर एकदम चुप हो गई। मिसज़े गोल्ड ने बालों की ख़ूब बहाकर उन पर लोशन स्प्रे करके गोल-गोल ऊंची नींद सी बनाई हुई थी। महेश को लगा जैसे यह बटरस्कॉच डेज़र्ट हो। वह असमंजस में था। मिसेज़ गोल्ड की गहरी मुस्कान देखकर तनाव से भर उठा।

‘‘आपकी पत्नी और आपसे क्या एक साथ बात हो सकती है ?’’ उन्होंने पूछा। शिरीन नाश्ता लाकर महेश के पास ही, हाथ गोद में रखकर बैठ गई थी। वह अभी तक ऑफ़िस के कपड़ों में ही थी। वह चौकन्नी थी। वह महेश की ओर इस भाव से देख रही थी, मानो कह रही हो कि जब भी कुछ करना हो मुझे इशारा कर देना।

‘‘आप हमसे क्या बात करना चाहती हैं,’’ महेश ने मिसेज़ गोल्ड से पूछा। उसे अपनी ही आवाज़ अजनबी लगी। ‘‘सब ठीक तो है न ?’’
‘‘न...न... ऐसे कुछ भी नहीं मिस्टर वासी। मैं आपको ऐसी ख़बर सुनाना चाहती थी, जिसे सुनकर आप दोनों गर्व से भर उठेंगे।’’
‘‘और... वह ख़बर क्या है ?’’

‘‘रूमी प्रतिभाशाली बच्ची है।’’ आनंदातिरेक से मुंह ऊपर को उठाते हुए मिसेज़ गोल्ड ने कहा।
महेश ने शिरीन की तरफ़ देखा। वह निचले होंठ का सूखा हिस्सा चबा रही थी। तनाव के क्षणों में वह ऐसे ही करती थी। उसने रूमी की तरफ़ देखा। ज़मीन पर नज़रे झुकाए वह इस इंतज़ार में थी कि महेश इन शब्दों का अर्थ बताए। उसने दोबारा मिसेज़ गोल्ड की तरफ़ देखा। उनकी दंत पंक्ति चमक रही थी, ‘‘आप कहना चाहती हैं कि रूमी क्लास में अच्छा काम कर रही है ?’’

‘‘इससे भी बहुत ज़्यादा मिस्टर वासी,’’ मिसेज़ गोल्ड ने कहा। ‘‘मेरे कहने का मतलब है कि यह विशेष है। सबसे अलग। प्रतिभापूर्ण।’’
सुनकर रूमी बेचैन हो गई। नाक कुरेदती, पैरों से किक करते हुए, वह पहले मां फिर पिता की तरफ़ देखने लगी। कमरे में छा गई चुप्पी से वह अस्थिर सी हो उठी। महेश ने ध्यान दिया कि रूमी के घुटने पर, कॉर्डरॉय ड्रैस के किनारे के नीचे और सफ़ेद मोज़े के ऊपर खरोंच पड़ी है। शिरीन ने बेटी की तरफ़ झटके से देखा। महेश ने मुस्कुराकर मिसेज़ गोल्ड की तरफ़ देखा। उसे पता था कि वह जो कहेगा रूमी उसका एक-एक शब्द पूरे ध्यान से सुन रही होगी। उसने मुलायम आवाज़ में कहा।

‘‘मैं और मेरी पत्नी रूमिका की पढ़ाई के बारे में पूरी तरह गंभीर हैं। हमें ख़ुशी है कि उसकी मेहनत सफल रही और वह कक्षा में अच्छा कार्य कर रही है। मैं स्वयं एक शिक्षक...’’
उसे बीच में टोकते हुए मिसेज़ गोल्ड ने सिर हिलाया। ‘‘मैं आपकी क़द्र करती हूं। मैं एक ऐसी प्रतिभा के विषय में कह रही हूं जो कभी किसी ख़ास में ही देखी जाती है। रूमी एक प्रतिभाशाली गणितज्ञ है।’’

वहां एक दफा फिर चुप्पी छा गई। रूमी सोफे की मखमल को घिसती अपनी टांगें हिलाने लगी। महेश ने ध्यान दिया कि वह चार दफा टांगे हिलाकर रोकती है... फिर चार... इसी तरह। उसने देखा कि रूमी कोहनी को जांघ पर रख, हाथ की मुट्ठी बांध, उस पर अपना गोलमटोल गाल टिकाए हुए थी। वह अभी भी फ़र्श की तरफ़ देख रही थी।
‘‘मैं स्वयं एक गणितज्ञ हूं। आपसे यह जानकर कि वह इस विषय में ख़ूब होशियार है, मुझे ख़ुशी हुई। मुझे इस विषय में महारत हासिल है, इसलिए मैं इस पर विशेष ध्यान देता हूं’’, चेहरे पर सौम्यता के साथ महेश ने कहा।

‘‘समरफ़ील्ड में हम सबका ख़्याल है कि रूमी की प्रतिभा को विकसित करना चाहिए,’’ मिसेज़ गोल्ड ने कहा। उन्होंने आगे झुककर स्कर्ट को खींचकर ठीक किया। इससे उसमें पड़ी प्लेट कपड़े में छिप गई। कहकर वे ऐसे चुप हो गईं जैसे बहुत गंभीर व अप्रिय बात कहने वाली हों। रूमी भी सुनने के लिए आगे झुक गई। उसने अपनी हिलती टांगों को ज़ोर देकर रोक लिया। उधर शिरीन भी भौंहों को ऊपर करके सुनने की उम्मीद में आगे झुक आई।

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