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रिटायर यंग रिटायर रिच

रॉबर्ट टी. कियोसाकी

प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस प्रकाशित वर्ष : 2009
पृष्ठ :388
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7837
आईएसबीएन :9788183221450

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Retire Young Retire Rich का हिन्दी रूपान्तरण

Retire Young Retire Rich - A Hindi Book - by Robert T. Kiosaki

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

यह पुस्तक इस बारे में है कि हम किस तरह शून्य से शुरुआत कर दस साल से भी कम समय में वित्तीय रूप से स्वतंत्र हो गए।

पता लगाएँ कि आप भी यह कैसे कर सकते हैं।

अगर आप ज़िंदगी भर कड़ी मेहनत नहीं करना चाहते हैं...

तो यह पुस्तक आपके लिए है।

क्यों न जवानी में ही अमीर बनकर रिटायर हों ?

खंड – 1
आपके मस्तिष्क का लीवरेज


हमारे मस्तिष्क की शक्ति सबसे शक्तिशाली लीवरेज है। लीवरेज के साथ समस्या यह है कि यह आपके पक्ष में भी काम कर सकता है और आपके खिलाफ़ भी। अगर आप जवानी में ही अमीर बनकर रिटायर होना चाहते हैं तो आपको पहली चीज यह करनी होगी कि ख़ुद को अमीर बनाने के लिए अपने मस्तिष्क की शक्ति का प्रयोग करें। पैसे के मामले में बहुत सारे लोग अपने मस्तिष्क की शक्ति का प्रयोग ख़ुद को ग़रीब बनाने के लिए करते हैं।

जैसा अमीर डैडी ने कहा था, ‘‘अमीरों और ग़रीबों में यह फ़र्क होता है कि ग़रीब लोग अमीरों से ज़्यादा बार यह कहते हैं, ‘मैं इसका ख़र्च नहीं उठा सकता।’’ अमीर डैडी ने यह भी कहा था, ‘‘संडे स्कूल में मैंने सीखा था, ‘और शब्द सजीव बन गया।’’’ इसके बाद उन्होंने कहा था, ‘‘ग़रीब लोग ग़रीब शब्दों का प्रयोग करते हैं और ग़रीब शब्दों से लोग ग़रीब बनते हैं। आपके शब्द साकार हो जाते हैं।’’ इस खंड में हम आपको अमीर और ग़रीब शब्दों, तेज़ और धीमे शब्दों में फ़र्क़ बताएँगे। आप पाएँगे कि आप जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, उन्हें बदलने के साथ ही अपने सोचने के तरीक़े में भी बदलाव करके आप अपने आर्थिक भविष्य को कैसे बदल सकते हैं। अगर आप अपने शब्दों और विचारों को बदलकर अमीर लोगों जैसा बना लें तो जवानी में ही अमीर बनकर रिटायर होना आसान हो जाएगा।

अध्याय-1
जवानी में ही अमीर बनकर रिटायर कैसे हों


नीचे मैंने यह आपबीती बताई है कि मेरी पत्नी किम, मेरे सबसे अच्छे दोस्त लैरी और मैंने किस तरह कंगाली से शुरुआत की थी, लेकिन दस साल से कम समय में ही हम अमीर बनकर रिटायर हो गए। मैं यह कहानी उन लोगों का हौसला बढ़ाने के लिए बता रहा हूं, जिन्हें खु़द के बारे में शंका हो या जिन्हें जवानी में रिटायर होने की यात्रा शुरू करने के लिए थोड़े आत्मविश्वास की ज़रूरत हो। जब किम और मैंने शुरुआत की थी, तो हमारे पास फूटी कौड़ी भी नहीं थी, हमारा आत्मविश्वास कम था और हमारे मन में शंकाएँ भरी थीं। हम सभी के मन में शंकाएँ होती हैं। फ़र्क़ इस बात से पड़ता है कि हम उन शंकाओं का करते क्या हैं।
यात्रा शुरू होती है

दिसंबर, 1984 में किम, मेरा सबसे अच्छा दोस्त क्लार्क और मैं ब्रिटिश कोलंबिया के वैकुवर में व्हिसलर माउंटेन पर स्कीइंग कर रहे थे। बर्फ़ बहुत गहरी थी, रन बहुत लंबे थे और स्कीइंग बहुत शानदार थी, हालाँकि ठंड भी बहुत थी। रात को हम तीनों देवदार के ऊँचे पेड़ों के बीच बने एक छोटे से केबिन में बैठे थे, जो छत पर जमी बर्फ़ के कारण मुश्किल से दिख रहा था।

हर रात को आग के पास बैठकर हम भविष्य की अपनी योजनाओं पर बातचीत करते थे। हमारे पास उम्मीदें तो बहुत थीं, लेकिन संसाधन बहुत कम थे। किम और मेरे पास आख़िरी कुछ डॉलर बचे थे और लैरी एक नया बिज़नेस शुरू करने की प्रक्रिया में था। हर रात हमारी चर्चाएँ देर तक चलती थीं। हम हाल में पढ़ी हुई पुस्तकों और देखी गई फ़िल्मों पर बातें करते थे। हम शैक्षणिक ऑडियोटेप्स सुनते थे और फिर उनके सबक़ पर गहरा मंथन करते थे।

पहली जनवरी को हमने वही किया, जो हम हर साल करते थे। हमने नए साल के लिए लक्ष्य बनाए। लेकिन इस साल हमारा लक्ष्य-निर्धारण सत्र अलग था। लैरी सिर्फ़ नए साल के लिए लक्ष्य तय करने से कुछ ज़्यादा करना चाहता था। एक साल के लक्ष्यों के बजाय वह ऐसे लक्ष्य तय करना चाहता था, जो हमारी वास्तविकता को बदलकर हमारी ज़िंदगी ही बदल दें। उसने कहा, ‘‘हम लोग क्यों न यह योजना बनाएँ कि हम सब आर्थिक दृष्टि से किस तरह स्वतंत्र बन सकते हैं ?’’

उसके शब्द मेरे कानों में पड़े और मैंने उसकी बातें सुनीं। लेकिन मैं उसकी कही बातों को अपनी वास्तविकता में फ़िट नहीं कर पाया। मैंने इसके बारे में बातें की थीं, इसके सपने देखे थे और मैं जानता था कि किसी दिन मैं यह काम ज़रूर करूँगा। लेकिन आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र बनने का विचार मुझे हमेशा भविष्य का ही विचार लगता था, आज का नहीं... इसलिए विचार फ़िट नहीं हुआ। मैंने कहा, ‘‘आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र ?’’ जिस पल मैंने अपनी आवाज़ सुनी, उसी पल मैं जान गया कि मैं कितना कमज़ोर हो गया था। मेरी आवाज़ मेरे ही पुराने व्यक्तित्व से मेल नहीं खा रही थी।

‘‘हम इस बारे में कई बार बात कर चुके हैं,’’ लौरी बोला। ‘‘लेकिन मैं सोचता हूँ कि अब समय आ गया है कि हम बातें बंद करें, दिवास्वप्न देखना छोड़ दें और समर्पित भाव से जुट जाएँ। चलो हम इस योजना को लिख लेते हैं। लिखने के बाद हम यह जान जाएँगे कि हमें यह काम करना ही है। लिख लेने के बाद हम इस यात्रा में एक-दूसरे को सहारा देंगे।’’

पैसों की तंगी से परेशान किम और मैंने एक-दूसरे की तरफ़ देखा। आग की चमक में हमारे चेहरों पर शंका और अनिश्चितता के भाव साफ़ दिखने लगे। ‘‘विचार तो अच्छा है, लेकिन मुझे लगता है कि मैं तो बस जैसे-तैसे अगला साल गुज़ारने पर ध्यान केंद्रित करना चाहूँगा।’’ कुछ समय पहले ही मैंने नायलॉन और वेल्क्रो वॉलेट बिज़नेस छोड़ा था। जब यह बिज़नेस 1979 में चौपट हो गया था, तो मैंने पाँच साल मेहनत करके इसे दोबारा जमाया था और इसके बाद इसे छोड़कर चला आया था। मैंने इसे इसलिए छोड़ा, क्योंकि बिज़नेस बहुत ज़्यादा बदल गया था। अब हम अमेरिका में उत्पादन नहीं कर रहे थे। बढ़ती प्रतिस्पर्धा से मुक़ाबला करने के लिए हमने अपनी फ़ैक्ट्रियाँ चीन, ताईवान और कोरिया में लगा ली थीं। मैंने बिज़नेस इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि मैं यह बर्दाश्त नहीं कर पाया कि ख़ुद को अमीर बनाने के लिए बाल श्रम का इस्तेमाल करूँ। बिज़नेस मेरी जेब में पैसे भर रहा था, लेकिन यह मेरी आत्मा को कचोट रहा था। अपने बिज़नेस पार्टनर्स के साथ भी मेरी पटरी नहीं बैठ रही थी। हम एक-दूसरे से दूर हो गए और हमारे बीच हर बात पर मतभेद होने लगे। मैं बहुत कम इक्विटी के साथ वह कंपनी छोड़ आया। मैं ऐसे बिज़नेस में काम करना गवारा नहीं कर पाया, जो मेरी आत्मा को कचोटता हो और जिसमें मैं अपने पार्टनर्स के साथ बात नहीं कर सकूँ। वह बिज़नेस मैंने जिस तरह से छोड़ा, उस बात पर मुझे गर्व नहीं है। बहरहाल, मैं जानता था कि उसे छोड़ने का समय आ गया है। मैं उस बिज़नेस में आठ साल तक रहा और वहाँ मैंने बहुत कुछ सीखा। मैंने यह सीखा कि बिज़नेस कैसे बनाया जाता है, कैसे बर्बाद किया जाता और फिर दोबारा कैसे बनाया जाता है। हालाँकि उसे छोड़ते समय मेरे पास बहुत कम पैसा था, लेकिन मेरे पास बेशक़ीमता सीख और अनुभव था।

लैरी ने कहा, ‘‘छोड़ो भी, तुम कमज़ोर बन रहे हो। आओ, एक साल के आसान लक्ष्य तय करने के बजाय हम बड़े लक्ष्य तय करते हैं। आओ, हम कई सालों का एक बड़ा लक्ष्य तय करें। आओ, हम स्वतंत्रता का लक्ष्य तय करें।’’

‘‘लेकिन हमारे पास ज़्यादा पैसे नहीं हैं,’’ मैंने कहा और किम की तरफ़ देखा, जिसके चेहरे पर भी मेरी ही तरह चिंता झलक रही थी। ‘‘तुम जानते हो, हम दोबारा शुरुआत कर रहे हैं। हम तो सिर्फ अगले छह महीने या शायद एक साल बस जैसे-तैसे काट लेना चाहते हैं। जब हम इस वक़्त आर्थिक दृष्टि से सिर्फ़ ज़िंदा रहने के बारे में सोच रहे हैं, तो फिर वित्तीय स्वतंत्रता के बारे में सोच भी कैसे सकते हैं ?’’ एक बार फिर मुझे अपने कम़जोर शब्दों से झटका लगा। मेरा आत्मविश्वास सचमुच कमज़ोर था। मेरी ऊर्जा वाक़ई कम थी।
‘‘यह तो अच्छी बात है। इसे एक नई शुरुआत मान लो।’’ लैरी अब पीछे ही पड़ गया था। वह रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

मैंने प्रतिरोध किया, ‘‘लेकिन जब हमारे पास पैसा ही नहीं है, तो फिर हम जल्दी रिटायर कैसे हो सकते हैं ?’’ मुझे एहसास था कि मेरे मुँह से निकलने वाले शब्द लगातार कमज़ोर होते जा रहे थे। मैं भीतर से कमज़ोर महसूस कर रहा था। मैं ख़ुद को समर्पित नहीं करना चाहता था। मैं तो बस कुछ समय के लिए आर्थिक दृष्टि से बचे रहना चाहता था और भविष्य के बारे में नहीं सोचना चाहता था।

‘‘मैंने यह नहीं कहा है कि हम एक साल में रिटायर होने वाले हैं,’’ लैरी बोला, जो अब मेरी ढीली-ढीली प्रतिक्रिया से चिढ़ने लगा था। ‘‘मैं तो सिर्फ यह कह रहा हूँ कि हम इसी वक़्त रिटायर होने की योजना बना लें। आओ, लक्ष्य लिख लेते हैं, योजना बना लेते हैं और फिर उस पर ध्यान केंद्रित करते हैं। ज़्यादातर लोग रिटायर होने के बारे में तब तक नहीं सोचते हैं, जब तक कि बहुत देर नहीं हो जाती है... या वे रिटायरमेंट की योजना पैंसठ साल की उम्र में बनाते हैं। मैं तो ऐसा नहीं करना चाहता। मैं इससे बेहतर योजना चाहता हूँ। मैं सिर्फ़ आजीविका चलाने के लिए ज़िंदगी भर काम नहीं करना चाहता। मैं अमीर बनना चाहता हूँ। मैं जवानी में ही दुनिया की सैर करना चाहता हूँ, ताकि इसका पूरा आनंद ले सकूँ।’’

जब मैंने लैरी के मुँह से यह लक्ष्य तय करने के लाभ सुने, तो मैंने अपने भीतर एक फुसफुसाहट भी सुनी, जो मुझे बता रही थी कि जवानी में आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होने और जल्दी रिटायर होने का लक्ष्य बनाना अयथार्थवादी क्यों है। यह तो एक तरह से असंभव लग रहा था।

लैरी लगातार बोलता रहा। शायद उसे इस बात की परवाह ही नहीं थी कि किम या मैं उसकी बात सुन रहे हैं या नहीं। इसलिए मैंने उसके शब्दों पर से ध्यान हटा लिया और उसकी कही बातों पर विचार करने लगा। मैंने ख़ुद से कहा, ‘‘जल्दी रिटायर होने का लक्ष्य तय करना अच्छा विचार है...फिर मैं इससे क्यों जूझ रहा हूँ ? अच्छे विचार से जूझना तो मेरी फ़ितरत नहीं है।’’

अचानक मुझे अपने अमीर डैडी की बातें याद आ गईं, ‘‘तुम्हारी सबसे बड़ी चुनौती तुम्हारी आत्म-शंका और आलस है। तुम्हारी आत्म-शंका और आलस ही यह परिभाषित और सीमित करते हैं कि तुम कौन हो। अगर तुम अपने वर्तमान स्वरूप को बदलना चाहते हो, तो तुम्हें अपनी आत्म-शंका और आलस से जूझना होगा। तुम्हारी आत्म-शंका और आलस ने ही तुम्हें छोटा बना रखा है। तुम्हारी आत्म-शंका और आलस ही तुम्हें अपनी मनचाही ज़िंदगी नहीं पाने दे रहे हैं।’’ मुझे याद है कि अमीर डैडी ने इस मुद्दे को प्रभावशाली बनाने के लिए आगे कहा था, ‘‘तुम्हारे रास्ते में कोई भी नहीं है। सिर्फ तुम हो और तुम्हारी आत्म-शंकाएँ हैं। ऐसे ही बने रहना आसान है। परिवर्तन नहीं करना आसान है। ज़्यादातर लोग ज़िंदगी भर वैसे ही बने रहने का चुनाव करते हैं। जब तुम अपनी आत्म-शंका और आलस से जूझोगे, तभी अपनी स्वतंत्रता का द्वार खोज पाओगे।’’

अमीर डैडी ने मुझसे ये बातें उस समय कही थीं, जब मैं हवाई द्वीप छोड़कर इस यात्रा पर आने वाला था। वे जानते थे कि मैं शायद हमेशा के लिए हवाई छोड़कर जा रहा था। वे जानते थे कि मैं अपना घर छोड़ रहा था, जहाँ मैं बहुत आरामदेह महसूस करता था। वे जानते थे कि मैं सुरक्षा की किसी गारंटी के बिना दुनिया में क़दम रखने का जोखिम ले रहा था। अमीर डैडी के साथ मेरी बातचीत के एक महीने बाद मैं बर्फ़ से ढँके इस पहाड़ पर बैठा था, जहाँ मेरा सबसे अच्छा दोस्त मुझसे वही बातें कह रहा था, लेकिन मैं कमज़ोर, असुरक्षित और बेचैन महसूस कर रहा था। मैं जानता था कि यह आगे बढ़ने या फिर हार मानकर घर लौट जाने का समय था। मुझे एहसास था कि मैं पहाड़ों पर इस कमज़ोरी के पल से जूझने के लिए ही आया था। एक बार फिर यह निर्णय का समय था। यह चुनाव करने का समय था। मैं अपनी आत्म-शंका और आलस के सामने हार मान सकता था या फिर मैं ख़ुद के बारे में अपनी धारणाएँ बदल सकता था। यह आगे बढ़ने या पीछे हटने का समय था।

जब मैंने लैरी के बोलने पर दोबारा ध्यान दिया, तो उस समय वह स्वतंत्रता के बारे में बोल रहा था। मुझे एहसास हुआ कि वह दरअसल स्वतंत्रता के बारे में नहीं बोल रहा था। उस पल मुझे यह एहसास हुआ कि अपनी आत्म-शंका और आलस से जूझना ही मेरे लिए सबसे महत्त्वपूर्ण था। अगर मैं इनसे नहीं जूझूँगा, तो मेरी ज़िंदगी पिछड़ने लगेगी।
‘‘ठीक है ! चलो, हम यह काम कर देते हैं,’’ मैंने कहा। ‘‘चलो, हम आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र होने का लक्ष्य तय कर लेते हैं।’’

यह 1985 का न्यू ईयर्स डे था। 1994 में किम और मैं आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र थे। लैरी द्वारा स्थापित कंपनी 1996 में इंक. मैग्ज़ीन की सबसे तेज़ी से विकास कर रही कंपनियों में से एक थी। लैरी 1998 में 46 साल की उम्र में रिटायर हो गया। उसने अपनी कंपनी बेचकर एक साल की छुट्टी मनाई।

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