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एक से बढ़कर एक

ए. जी. कृष्णमूर्ति

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7944
आईएसबीएन :978-81-288-2794

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‘‘एक से बढ़कर एक’’ उन लोगों की कहानियाँ हैं जिनमें कुछ प्रसिद्ध हैं तो कुछ बेनाम, लेकिन ये सभी विपरीत परिस्थितियों में चुनौतियों से जूझते हुए आगे बढ़े और कुछ असाधारण प्रक्रियाओं को अपनाकर अन्ततः सफल हुए।...

Ek Se Badhkar Ek - A Hindi Book - by A. G. Krishnamurti

महत्वपूर्ण सफलता के लिए दस सामान्य सूत्र

जहाँ भाग्य एक अचानक घटने वाली घटना है वहाँ सफलता को प्राप्त करने के लिए योजना बनानी पड़ती है। सफलता पूर्वकाल में किए गए परीक्षणों में सफल हुई प्रक्रियाओं को कार्यान्वित करके ही प्राप्त की जाती है।

‘‘एक से बढ़कर एक’’ उन लोगों की कहानियाँ हैं जिनमें कुछ प्रसिद्ध हैं तो कुछ बेनाम, लेकिन ये सभी विपरीत परिस्थितियों में चुनौतियों से जूझते हुए आगे बढ़े और कुछ असाधारण प्रक्रियाओं को अपनाकर अन्ततः सफल हुए।

सपने...बड़े सपने देखें

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1. अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ बनें
2. सकारात्मक विचार रखें
3. मैं कर सकता हूँ ऐसा विश्वास रखें
4. जीवन में धन को ही सब कुछ न समझें
5. अपने सपनों को पूरा करने की कोशिश करें
6. अपनी टीम पर दांव लगायें
7. चुनौतियों का स्वागत करें
8. प्रत्येक व्यक्ति समृद्ध बने ऐसी कोशिश करें
9. मनुष्य जीनव एक ही बार मिलता है

सोचो, बड़ा सोचो...


यदि सपने देखने वाले नहीं होते तो हम एक सभ्यता के रूप में कहाँ होते? जिन्होंने उड़ने के सपने देखे, आम लोगों के लिए मोटर के सपने संजोए या जिन्होंने दुनिया को प्रकाश से जगमगाने का ख्वाब बुना। यदि राइट ब्रदर्स नहीं होते तो क्या हम हवाई जहाज पर दूसरे शहरों में अपने क्लाइन्ट से मिल पाते? हेनरी फोर्ड के न होने की स्थिति में क्या हम अपने आस-पड़ोस तक अपनी मारूतियों में घूम पाते? और हाँ, हर मॉल एवं मल्टीप्लेक्स को एडीसन की आरती रोज उतारनी चाहिए। यदि एडीसन एवं उनके बिजली के बल्ब, फोनोग्राफ एवं मोशन पिक्चर कैमरा न होते तो हम आज भी अपना मनोरंजन दीवारों पर चित्र बनाकर और स्थानीय गायक या कवि को सुनकर ही कर रहे होते। कृपया याद रखें कि अपने 1000 आविष्कारों से दुनिया को बदलने के साथ-साथ उन्होंने ‘जनरल इलैक्ट्रिक’ नामक एक विशाल व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी स्थापित किया। सौभाग्य से आपके और हमारे लिए यह दुनिया ऐसे सपने देखने वालों से भरी पड़ी है जो केवल हवाई किले नहीं बनाते बल्कि उसे वास्तविकता का जामा भी पहनाते हैं। उन्होंने केवल किया नहीं, यहाँ यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि उन सभी ने आश्वस्त किया कि जो वे करते हैं वह सच बन जाता है। ये एडीसन ही थे जिन्होंने दुनिया को प्रसिद्ध कथन दिया, ‘‘विद्वान एक प्रतिशत प्रेरणा, निन्यानवे प्रतिशत मेहनत होती है।’’ उन्हें स्कूल से ये कहकर बाहर कर दिया गया था कि उनका दिमाग सड़ा हुआ था। उनकी माँ ने उन्हें घर में ही पढ़ाया क्योंकि दुनिया की और माताओं की तरह उन्हें भी अपने बच्चे पर भरोसा था। किसी भी महान अन्वेषक की जीवनी पढ़िए, आप एक बार भी ये कहते नहीं सुन सकते कि यह मुझे भाग्य से मिला है।

मुझे राइट बंधुओं की कहानी पर वापस लौटने दीजिए।

उपयोग के बगैर कल्पनाएं कुछ भी नहीं : विल्बर एवं आरवाइल एक ऐसी दुनिया में पैदा हुए जहाँ डॉ. विन्ची जैसे कुछ वैज्ञानिक या सपने देखने वाले ही मानवीय उड़ान की कल्पना करते थे। उनके पिता द्वारा दिया गया एक खिलौना था जिसने इन बच्चों के दिमाग में उड़ने के ख्याल का बीज बोया। यह एक साधारण सा खिलौना था–मुम्बई की लाल बत्तियों पर बिकने वाले खिलौनों का पुराना प्रारूप, जिसमें एक कार्क के दोनों ओर पंख लगे होते थे जो कि रबर बैण्ड से संचालित होता था।

बचपन में उन्हें अपने माता-पिता का पूरा योगदान एवं प्रोत्साहन मिला और उन्होंने जो चाहा वो किया चाहे वो लिखना हो या फिर मशीनी पार्ट-पुर्जों में लगे रहना। बाद में जब लोगों ने बचपन को कष्टदायक बचपन के रूप में दिखाना चाहा तो अक्सर विस्वर कहा करते थे कि यद्यपि उनके पास उतना पैसा नहीं था परन्तु उनके माता-पिता का सहयोग एवं प्रोत्साहन सदा उनके साथ रहा और यही वे चीजें जो उनकी सफलता के लिए जरूरी थीं।

यद्यपि उन्होंने मानवीय उड़ान का स्वप्न बुना, साथ ही उन्होंने अपने स्वप्न के आर्थिक पहलू पर ध्यान दिया। उनके साइकिल के व्यवसाय ने उनके बिलों का भुगतान किया और उनके पास जो कुछ भी था वो सारा उन्होंने अपने स्वप्न को साकार करने की चाह के पीछे लगा दिया।

टाइम में लिखे अपने एक लेख में बिल गेट्स ने अपने बारे में लिखा है, ‘‘लियोनार्डो डा विन्ची की विद्वता ने उड़ने वाली मशीन की कल्पना की, लेकिन इन दो अमेरिकी साइकिल मिस्त्रियों ने इसका क्रमबद्ध विज्ञानी प्रयोग किया।’’ यद्यपि ऐसी कल्पनाएं करने के लिए जिसे दुनिया ने कभी सोचा भी न हो प्रतिभा की आवश्यकता तो होती ही है, इसके लिए सुपर ह्यूमन की तरह दृढ़ता की भी जरूरत होती है ताकि सपने में जान फूंकी जा सके।

राइट बंधु बड़ा सपना देखने वालों का श्रेष्ठ उदाहरण हैं जिन्होंने न केवल इतना बड़ा सपना देखा कि सदा के लिए दुनिया बदल डाली बल्कि वे तब तक बारम्बार प्रयास करते रहे जब तक वे जमीन से काफी ऊँचाई तक नियंत्रणपूर्ण ढंग से उड़े नहीं।

राइट बंधुओं की तरह हेनरी फोर्ड इसलिए महान नहीं हुए कि उन्होंने दुनिया को एक नया रास्ता दिखाया बल्कि इस व्यक्ति ने दुनिया को बदलने वाली चीज से पूरी मानवजाति को सभ्य बनाया। फोर्ड ने भी राइट बंधुओं की तरह इस बात को समझा कि सपना होना ही काफी नहीं बल्कि इसको पूरा करने के लिए पैसे की भी जरूरत होती है। सो उन्होंने पैसा इकट्ठा कर अपनी कंपनी शुरू की। करीब 86,000 डॉलर खर्च करने के बाद जब वे एक भी बेचने योग्य कार न बना पाए तो निवेशकों के पहले समूह ने अपना पैसा वापस ले लिया। तब उन्होंने रेसट्रैक के लिए एक कार बनाई जिसके प्रदर्शन ने उन्हें अपनी कपंनी के 6000 शेयर 10 डॉलर शेयर के हिसाब से बेचने में मददगार साबित हुआ। मगर यह नई कंपनी भी कुछ दिनों बाद डूब गई। उन्होंने तीसरी बार फिर से कार उत्पादन का प्रयास शुरू कर दिया। इस बार वे सफल हुए। कार की अच्छी बिक्री हुई। मगर यह कार उत्पादन नहीं था जिससे उन्होंने दुनिया बदल डाली। यह असेम्बलिंग के तर्ज पर उत्पादन का प्रयोग था जिसके काफी दूरगामी प्रभाव हुए।

यही नहीं, मध्यम वर्ग के रूप में एक नए सामाजिक वर्ग के प्रादुर्भाव का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। उन्होंने अपने यहां काम करने वालों की निम्नतम मजदूरी दोगुनी कर दी एवं उनके काम के घंटे कम कर दिए–यह एक ऐसा कदम था जिसने पूरे व्यवसायिक जगत को सकते में डाल दिया। ‘द वॉल स्ट्रीट जनरल’ ने इसे आर्थिक जुर्म’ की संज्ञा दी जो कि उस समय यह समझ नहीं पाया कि फोर्ड ने कारों की उत्पादक लागत कम कर दी थी ताकि वे अपने यहां काम करने वालों को ज्यादा मजदूरी देकर खुश रखने के साथ-साथ कार खरीदने के लिए पर्याप्त धन भी मुहैया करा सके।

किसी भी चीज का केवल उत्पादन ही काफी नहीं है। कार खरीदने वाले ग्राहक बनाने के अलावा उन्हें यह भी सुनिश्चित करना था कि उन कारों को चलाने लायक रास्ते हों और लम्बे सफर के लिए ईंधन की सुलभता हो। उस समय के ज्यादातर रास्ते घोड़ों के चलने के लिहाज से बने थे और अब फोर्ड को ऐसी सड़कों की आवश्यकता थी जिन पर उनकी निर्मित कारें दौड़ सकें। जिन सुविधाओं को आज हम बड़ी सहजता से प्राप्त करते हैं उनके लिए फोर्ड ने अकेले दम पर कैम्पेन शुरू किया ताकि सरकार ये सुविधाएं दे और उनकी कारों की बिक्री आसान हो। फलस्वरूप 16 साल का एक ग्रामीण किशोर, जो 8 मील पैदल चलकर पहले अपनी कर्मस्थली जाता था।

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