आधुनिक >> द 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ द 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफचेतन भगत
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भारत के सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यासकार द्वारा आधुनिक भारत की एक और बौद्धिक हास्य विलास से भरपूर कहानी...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
सन् 2000 के अन्त में, अहमदाबाद के एक लड़के गोविंद ने एक कारोबार शुरु करने का सपना देखा। अपने मित्रों, ईश और ओमी के शौक को ध्यान में रखते हुए उन्होंने क्रिकेट की एक दुकान खोल ली। हालांकि हलचल से भरे शहर में सरलता से कुछ भी नसीब नहीं होता। अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उन्हें इन सबका सामना करना होगा - धार्मिक, राजनीति, आपदाएँ, अस्वीकृत प्रेम और इन तमाम बातों से उपर उनकी अपनी गलतियाँ। क्या वे सफल हो पायेंगे? क्या किसी व्यक्ति के सपने वास्तविक जीवन की भयावह कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं? क्या कुछ गलतियों के बावजूद हम सफल हो सकते हैं?
भारत के सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यासकार द्वारा आधुनिक भारत की एक और बौद्धिक हास्य विलास से भरपूर कहानी जिसमें चेतन भगत ने एक सम्पूर्ण पीढ़ी के विचारों और एकाकीपन को दर्शाया है।
भारत के सर्वाधिक बिकने वाले उपन्यासकार द्वारा आधुनिक भारत की एक और बौद्धिक हास्य विलास से भरपूर कहानी जिसमें चेतन भगत ने एक सम्पूर्ण पीढ़ी के विचारों और एकाकीपन को दर्शाया है।
द 3 मिस्टेक्स ऑफ माइ लाइफ
एक
भारत बनाम दक्षिणी अफ्रीका
चौथा, ओ.डी.आई, वडोदरा
17 मार्च, 2000
45 ओवर
‘तुम वहां से हिले क्यों?’ ईशान की चीख स्टेडियम में गूंजी, टी.वी. पर। मैं फर्श से उठ कर सोफे पर बैठ गया। ‘हां?’ मैंने कहा।
हम ईशान के घर पर थे–‘ईशान, ओमी और मैं। ईशान की माँ हमारे लिए चाय और खाकरा लेकर आई। सोफे पर बैठकर स्नैक्स खाने में ज्यादा मज़ा आता है। तभी मैं सोफे पर बैठ गया था।
‘तेंदुलकर गया। ओह ऐसे समय। ओमी तुम हिलना मत। कोई भी अगले पांच ओबर्स में हिलेगा नहीं।
मैंने टी.वी. की तरफ देखा। हमें जीतने के लिए 283 रन चाहिए। एक बॉल से पहले इंडिया के 256-2 रन थे 45 ओवर के बाद पांच ओवरों में 27 रन बनाने थे और हमारे पास 8 विकेट थे और तेंदुलकर खेल रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था, भारत के पक्ष में, पर तभी तेंदुलकर आउट हो गया। उससे ईशान की त्यौरियां चढ़ गई।
‘खाकरे बड़े क्रिस्पी हैं, ओमी ने कहा। ईशान ने उसे घूर कर देखा, उसकी घिघली बात पर जब कि देश का मान-सम्मान दांव पर लगा हुआ था। ओमी और मैंने अपने कप एक तरफ रख दिए और दुखी सा मुंह बनाकर बैठ गए।
भीड़ ने तालियां बजाई जब तेंदुलकर क्रीज़ से बाहर हुआ। जडे़जा क्रीज़ पर आया और उसने छः रन बनाए। 46 ओवरों के बाद भारत की स्थिति 263-3 की थी। अब चार ओवरों में 21 रन और बनाने थे, सात विकेट बचे थे।
ओवर 46
‘उसने 122 बना लिए। उसने अपना काम कर दिया। कुछ ही आखिरी शॉटस रहते हैं। पर तुम इतने उतावले क्यों हो रहे हो।’ मैंने टी.वी. पर अन्तराल के दौरान कहा। मैं अपना चाय का कप उठाने लगा पर ईशान ने न उठाने का इशारा किया। हम किसी भी तकलीफ में नहीं पड़ना चाहते थे जब तक मैच का कोई फैसला नहीं हो जाता। ईशान ने किसी भी तरह हम को हिलने नहीं दिया। मैच वडोदरा में हो रहा था, अहमदाबाद से दो घंटे का रास्ता है। पर हम वहां नहीं जा सके। एक तो हमारे पास पैसे नहीं थे, दूसरे दो दिन में मेरे पत्र-व्यवहार के पेपर थे। मैंने सारा दिन मैच देखने में लगा दिया इसलिए दूसरा कारण कोई अर्थ नहीं रखता।
5.25 रन एक ओवर में चाहिए।’ मैंने कहा मैं कैल्कूलेट किए बिना नहीं रह पाया। यही कारण है कि मुझे क्रिकेट पसंद है क्योंकि इसमें मैथ्यू ज्यादा है।
‘तुम इस टीम को नहीं जानते। तेंदुलकर आऊट हो गया है। बाकी टीम उखड़ गई है। बात प्रतिशतता की नहीं। यह तो ऐसा है जैसे रानी मक्खी मर जाती है और छत्ता बिखर जाता है।’ ईशान ने कहा।
ओमी ने सिर हिलाया जैसे कि वे हमेशा करता है जब भी ईशान क्रिकेट के बारे में कोई बात करता है।
‘चलो छोड़ो, मेरा ख्याल है कि तुम जानते हो कि हम यहां मैच देखने के लिए इकट्ठे नहीं हुए। हम यहां यह फैसला करने के लिए इकट्ठे हुए हैं कि मि. ईशान अपने भविष्य में क्या करना चाहते हैं?’ मैंने कहा।
ईशान हमेशा ही इस विषय पर बात करने से कतराता है, जब से वह एन.डी.ए. से भागा है एक वर्ष पहले। उसके डैड हमेशा उस पर व्यंग्य कसते हैं कि ‘हर साल केक काट कर मनाया करो कि एक साल तुम्हारा व्यर्थ हो गया।’
आज मैं उसके लिए एक प्लान बना कर लाया था। मैं जानता था कि हम सब इकट्ठे बैठें और अपने जीवन के, भविष्य के विषय में बातचीत करें। बेशक क्रिकेट के आगे जिन्दगी दूसरे नंबर पर आती है।
‘बाद में,’ ईशान ने एक क्रीम की ऐड देखते हुए कहा।
‘‘बाद में कब ईशान?’ मेरे पास एक आइडिया है जो हम सबके लिए ठीक रहेगा। हमारे पास ज्यादा रास्ते नहीं हैं चुनने के लिए, क्या है?’
‘हम सब के लिए? मैं भी’ ओमी ने हैरानी से कहा। उस जैसे नासमझ किसी का, कहीं भी हिस्सा बनना पसंद करता है। इस बार हमें ओमी की जरूरत है।
‘हां, ओमी तुम एक अच्छे आलोचक हो पर ईश के बाद। जब?’
‘ओह, बस करो। देखो, मैच शुरू हो रहा है। ओ. के. डिनर पर बात करेंगे। चलो, आज गोपी के चलेंगे। ईश ने कहा।
‘गोपी? पेमैंट कौन करेगा?’ मैंने अपना ध्यान मैच की ओर किया, मैच शुरू हो चुका था।
पीं.पीं...पीं. कार के हार्न ने हमारी वार्ता में बाधा डाली। बाहर कार खड़ी पी.पी...कर रही थी।
‘ओह क्या मुसीबत है, मैं इस बदमाश को अभी सबक सिखाता हूं’ ईश ने खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा।
‘क्या बात है?’
‘क्या अमीर बाप की बिगड़ी औलाद, हर रोज़ हमारे घर के चक्कर काटता है।’ ‘
क्यों?’ मैंने पूछा।
‘विद्या के लिए। वह उसके साथ कोचिंग क्लासिस में था। विद्या ने शिकायत की थी वहां पर।’ ईश ने कहा।
पीं.पीं.पीं...कार दोबारा घर के नज़दीक आ गई थी।
‘ओह मुसीबत। मैं मैच मिस नहीं करना चाहता।’ ईश ने कहा जैसे ही उसने इंडिया को चौका लगाते देखा।
ईश ने अपना बैट उठाया। हम घर से बाहर भागे। सिल्वर ऐस्टीम ने पोल को चक्कर काटा और दोबारा चक्कर लगाने लगी। ईश कार के सामने खड़ा हो गया और लड़के को रुकने के लिए कहा।
ऐस्टीम एकदम ईश के सामने आकर रुक गई। ईश ड्राईवर के पास गया, जो एक स्मार्ट जवान लड़का था। ‘एक्सक्यूज़ मी, तुम्हारी हैडलाईट बाहर लटक रही है।’
‘सच में, लड़के ने कहा और लाईट बन्द कर दी। वह कार से बाहर निकला और सामने आया।
ईश ने उस लड़के को पीछे गर्दन से पकड़ा और जोर से उसका मुंह बोनेट पर मारा। फिर ईश ने बैट से उसकी हैड लाईट का शीशा तोड़ दिया। बल्ब बाहर लटकने लगा।
‘आप को क्या तकलीफ है,’ लड़के ने कहा, उसकी नाक से खून बह रहा था। ‘तुम मुझे बताओ, तुम्हें क्या है, तुम यहां आकर हार्न बजाते रहते हो।’ ईश ने कहा।
ईश ने उसका कालर पकड़ लिया और छः-सात थप्पड़ उसे जड़ दिए। ओमी ने बैट पकड़ा और कार की खिड़कियाँ तोड़ दी। शीशा चकनाचूर हो गया। लोग इकट्ठे हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे गली की लड़ाई देखना सबसे अधिक मनोरंजन की बात है।
लड़का पीड़ा और डर से कांप रहा था। वह अपने डैडी को क्या बतायेगा कि उसकी कार का शीशा कैसे टूटा और उसके चेहरे को क्या हुआ।
ईश के पिता ने शोर सुना और बाहर आ गए। ईश ने लड़के को बुरी तरह से अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था। लड़का सांस लेने के लिए छटपटा रहा था।
‘उसे छोड़ दो।’ ईश के पिता ने कहा।
ईश ने उसे और ज़ोर से जकड़ लिया।
‘मैंने तुम्हें कहा उसे छोड़ दो, ’ईश के पिता चिल्लाए, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ ‘यह पिछले हफ्ते से विद्या को तंग कर रहा है, ‘ईश ने कहा। उसने लड़के को ज़ोर से टांग मारी और छोड़ दिया। लड़का घुटनों के बल बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगा। ईश के टांग मारने से उसके नाक से और खून बहने लगा और चेहरा खून से भर गया।
‘और जो तुम कर रहे हो क्या वो ठीक है?’ ईश के पिता ने कहा।
‘मैं उसे सबक सिखा रहा हूं। ईश ने कहा और विंड-स्क्रीन में फंसा अपना बैट निकाला।
‘अच्छा, वैरी गुड, और तुम अपने सबक कब सीखोगे?’ ईश के पिता ने ईश को कहा।
ईश वहां से चला गया।
‘अब तुम जाओ’ ईश के पिता ने लड़के को कहा जो हाथ जो़ड़े खड़ा था। जब उसने देखा कि उसकी क्षमा की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा तो वह अपनी कार की तरफ मुड़ा।
ईश के पिता अपने पड़ोसियों की ओर मुड़े। ‘पूरे एक वर्ष से घर पर बैठा हुआ है। अपने ही देश की सेना से भाग आया है और अब दूसरों को सबक सिखाना चाहता है। वह और उसके लोफर दोस्त सारा दिन घर पर धमा-चौकड़ी मचाए रखते हैं।
ईश ने अपने पिता को गहरी दृष्टि से देखा और घर के अंदर चला गया।
‘अब तुम क्या करने जा रहे हो?’ ईश के पिता चिल्लाए।
‘मैच देखने, क्या कोई कसर रह गई है मुझे लताड़ने की। ईश ने कहा।
‘जब तुमने अपनी सारी जिन्दगी ही बर्बाद कर दी है तो एक दिन से क्या फर्क पड़ता है।’ ईश के पिता ने कहा। पड़ोसियों ने भी उनकी हां में हां मिलाने के लिए सिर हिलाया।
पिछले पांच ओवर हमने मिस कर दिए। इंडिया जीत गई और ईश ज़्यादा अप-सैट नहीं हुआ।
‘हां, हां, हां ईशान खुशी से उछला। ‘आज गोपी के यहां मेरी तरफ से खाना रहा’ ईश ने कहा। मैं मूर्खों को पसंद करता हूं।
असल में ईशान मूर्ख नहीं है। कम से कम ओमी जितना नहीं। दोनों पढ़ाई में लगे रहते हैं खास कर मैथ्स में और मैं और मैथ्स में बहुत अच्छा हूं। यह लेबल मेरे ऊपर चिपका हुआ है। केवल यही लेबल। मैं तीनों में सबसे गरीब हूं। बेशक मैं एक दिन सबसे धनी बन जाऊंगा। फिर भी ईशान और ओमी भी ज्यादा अमीर नहीं है। ईशान के पिता टेलीफोन एक्सचेंज में हैं और बेशक उसके घर काफी फोन हैं पर उनकी तनख्वाह ठीक ठीक ही है। ओमी के पिता स्वामी भक्ति मंदिर में पुजारी हैं, जो असल में ओमी की ननिहाल वालों का है। और वो इसके लिए ज्यादा तनख्वाह भी नहीं देते। पर फिर भी वह मेरे और मेरी मां के मुकाबले काफी अच्छे हैं, आर्थिक रूप से।
मेरी मां गुजराती स्नैक्स बनाने का काम करती है और मैं कुछ ट्यूशंस पढ़ाता हूं। इसी से हमारी गुजर होती है।
‘हम जीत गए, हम जीत गए 3-1 सीरीज़ से’ ओमी ने दोहराया जो उसने टी.वी स्क्रीन पर देखा। उसके लिए ऐसी मौलिक बात करना बहुत बड़ी बात थी। कुछ लोग कहते हैं कि ओमी पैदाइशी मूर्ख है, और कुछ कहते हैं कि छठी कक्षा में उसके सिर में कार्क-बाल लगने से उसके दिमाग पर असर पड़ा, तब से वह मूर्खतापूर्ण बातें करने लगा। मुझे कारण नहीं पता पर मैं इतना जानता हूं कि उसके लिए पुजारी बन जाना ही सबसे अच्छा है। उसके आगे कोई अच्छा कैरियर नहीं है। मुश्किल से उसने ब्लस-टू किया, वो भी दो बार मैथ्स में कम्पार्टमैंट आने के बाद। मेरा आइडिया अच्छा था पर वो पुजारी बनना नहीं चाहता।
मैंने खाकरा खाया। मेरी मां ईशान की मां से अच्छा बनाती है। हम इस काम में प्रोफैशनल हैं।
‘मैं घर जाकर कपड़े बदल कर आता हूं और फिर हम गोपी के चलेंगे, ओ. के?’ मैंने कहा जबकि ईशान और ओमी अभी भी खुशी से नाच रहे थे। भारतीय जीत के बाद नाचना हमने परंपरा बना ली थी जब हम ग्यारह वर्ष के थे जो तेरह तक चलती रही और अब हम 21 वर्ष के हैं और बच्चों की तरह नाच रहे हैं। ओ. के. हम जीत गए, किसी ने तो जीतना ही था। मैथेमैटिकल टर्म में इसकी संभावना थी।
मैं घर आ गया।
पुराने शहर की तंग गलियां शाम की भीड़ से भरी हुई मेरे और ईशान के घर का फासला आधा कि. मी. था। मेरी दुनिया में सभी चीज़ों का फासला इतना ही है। मैं नाना पार्क से गुज़रा। भारत के जीत जाने की खुशी में बच्चे वहां क्रिकेट खेल रहे थे। मैं भी अपने स्कूल-टाईम में मैं यहां रोज़ खेलता था।’ अब हम कभी-कभी यहां आते हैं पर अधिकतर भी घर के साथ बने हुए ग्राउंड में ही बैठते हैं।
एक टैनिस-बॉल मेरे पैरों से टकराई। लगभग 12 वर्ष का एक सुंदर सा लड़का मेरे पास आया भागता-भागता। मैंने गेंद उठाकर उसे दे दी। नाना पार्क में ही मैं ईशान और ओमी से पहली बार मिला था, पंद्रह वर्ष पहले। जब हमारी मित्रता हुई तब ऐसी कोई विशेष घटना नहीं घटी थी। शायद हम छः-छः वर्ष के हमउम्र थे, जो ग्राउंड में मिले और इकट्ठे खेलना आरंभ कर दिया।’
जैसे कि सभी पड़ोसी-बच्चे होते हैं, हम बलरामपुर म्यूनिसिपल स्कूल में जाने लगे, जो नाना पार्क से लगभग 100 मीटर दूर था। केवल मैं ही पढ़ता था, ईशान और ओमी जब भी मौका मिलता पार्क में चले जाते। तंग गली में हम तीनों की साईकिलें एक दूसरे के आगे चलने की कोशिश में रहती। मुझे काज़ी रेस्तरां के कुछ अंदर को होना पड़ता क्योंकि उन दोनों को रास्ता देने के लिए। रेस्तरां का छोटा सा कमरा खाने की खुशबू से भरा होता। खानसामा रात का खाना तैयार कर रहा था, आम दिनों से बड़ी पार्टी भारत की जीत की खुशी में।
चौथा, ओ.डी.आई, वडोदरा
17 मार्च, 2000
45 ओवर
‘तुम वहां से हिले क्यों?’ ईशान की चीख स्टेडियम में गूंजी, टी.वी. पर। मैं फर्श से उठ कर सोफे पर बैठ गया। ‘हां?’ मैंने कहा।
हम ईशान के घर पर थे–‘ईशान, ओमी और मैं। ईशान की माँ हमारे लिए चाय और खाकरा लेकर आई। सोफे पर बैठकर स्नैक्स खाने में ज्यादा मज़ा आता है। तभी मैं सोफे पर बैठ गया था।
‘तेंदुलकर गया। ओह ऐसे समय। ओमी तुम हिलना मत। कोई भी अगले पांच ओबर्स में हिलेगा नहीं।
मैंने टी.वी. की तरफ देखा। हमें जीतने के लिए 283 रन चाहिए। एक बॉल से पहले इंडिया के 256-2 रन थे 45 ओवर के बाद पांच ओवरों में 27 रन बनाने थे और हमारे पास 8 विकेट थे और तेंदुलकर खेल रहा था। सब कुछ ठीक चल रहा था, भारत के पक्ष में, पर तभी तेंदुलकर आउट हो गया। उससे ईशान की त्यौरियां चढ़ गई।
‘खाकरे बड़े क्रिस्पी हैं, ओमी ने कहा। ईशान ने उसे घूर कर देखा, उसकी घिघली बात पर जब कि देश का मान-सम्मान दांव पर लगा हुआ था। ओमी और मैंने अपने कप एक तरफ रख दिए और दुखी सा मुंह बनाकर बैठ गए।
भीड़ ने तालियां बजाई जब तेंदुलकर क्रीज़ से बाहर हुआ। जडे़जा क्रीज़ पर आया और उसने छः रन बनाए। 46 ओवरों के बाद भारत की स्थिति 263-3 की थी। अब चार ओवरों में 21 रन और बनाने थे, सात विकेट बचे थे।
ओवर 46
‘उसने 122 बना लिए। उसने अपना काम कर दिया। कुछ ही आखिरी शॉटस रहते हैं। पर तुम इतने उतावले क्यों हो रहे हो।’ मैंने टी.वी. पर अन्तराल के दौरान कहा। मैं अपना चाय का कप उठाने लगा पर ईशान ने न उठाने का इशारा किया। हम किसी भी तकलीफ में नहीं पड़ना चाहते थे जब तक मैच का कोई फैसला नहीं हो जाता। ईशान ने किसी भी तरह हम को हिलने नहीं दिया। मैच वडोदरा में हो रहा था, अहमदाबाद से दो घंटे का रास्ता है। पर हम वहां नहीं जा सके। एक तो हमारे पास पैसे नहीं थे, दूसरे दो दिन में मेरे पत्र-व्यवहार के पेपर थे। मैंने सारा दिन मैच देखने में लगा दिया इसलिए दूसरा कारण कोई अर्थ नहीं रखता।
5.25 रन एक ओवर में चाहिए।’ मैंने कहा मैं कैल्कूलेट किए बिना नहीं रह पाया। यही कारण है कि मुझे क्रिकेट पसंद है क्योंकि इसमें मैथ्यू ज्यादा है।
‘तुम इस टीम को नहीं जानते। तेंदुलकर आऊट हो गया है। बाकी टीम उखड़ गई है। बात प्रतिशतता की नहीं। यह तो ऐसा है जैसे रानी मक्खी मर जाती है और छत्ता बिखर जाता है।’ ईशान ने कहा।
ओमी ने सिर हिलाया जैसे कि वे हमेशा करता है जब भी ईशान क्रिकेट के बारे में कोई बात करता है।
‘चलो छोड़ो, मेरा ख्याल है कि तुम जानते हो कि हम यहां मैच देखने के लिए इकट्ठे नहीं हुए। हम यहां यह फैसला करने के लिए इकट्ठे हुए हैं कि मि. ईशान अपने भविष्य में क्या करना चाहते हैं?’ मैंने कहा।
ईशान हमेशा ही इस विषय पर बात करने से कतराता है, जब से वह एन.डी.ए. से भागा है एक वर्ष पहले। उसके डैड हमेशा उस पर व्यंग्य कसते हैं कि ‘हर साल केक काट कर मनाया करो कि एक साल तुम्हारा व्यर्थ हो गया।’
आज मैं उसके लिए एक प्लान बना कर लाया था। मैं जानता था कि हम सब इकट्ठे बैठें और अपने जीवन के, भविष्य के विषय में बातचीत करें। बेशक क्रिकेट के आगे जिन्दगी दूसरे नंबर पर आती है।
‘बाद में,’ ईशान ने एक क्रीम की ऐड देखते हुए कहा।
‘‘बाद में कब ईशान?’ मेरे पास एक आइडिया है जो हम सबके लिए ठीक रहेगा। हमारे पास ज्यादा रास्ते नहीं हैं चुनने के लिए, क्या है?’
‘हम सब के लिए? मैं भी’ ओमी ने हैरानी से कहा। उस जैसे नासमझ किसी का, कहीं भी हिस्सा बनना पसंद करता है। इस बार हमें ओमी की जरूरत है।
‘हां, ओमी तुम एक अच्छे आलोचक हो पर ईश के बाद। जब?’
‘ओह, बस करो। देखो, मैच शुरू हो रहा है। ओ. के. डिनर पर बात करेंगे। चलो, आज गोपी के चलेंगे। ईश ने कहा।
‘गोपी? पेमैंट कौन करेगा?’ मैंने अपना ध्यान मैच की ओर किया, मैच शुरू हो चुका था।
पीं.पीं...पीं. कार के हार्न ने हमारी वार्ता में बाधा डाली। बाहर कार खड़ी पी.पी...कर रही थी।
‘ओह क्या मुसीबत है, मैं इस बदमाश को अभी सबक सिखाता हूं’ ईश ने खिड़की से बाहर झांकते हुए कहा।
‘क्या बात है?’
‘क्या अमीर बाप की बिगड़ी औलाद, हर रोज़ हमारे घर के चक्कर काटता है।’ ‘
क्यों?’ मैंने पूछा।
‘विद्या के लिए। वह उसके साथ कोचिंग क्लासिस में था। विद्या ने शिकायत की थी वहां पर।’ ईश ने कहा।
पीं.पीं.पीं...कार दोबारा घर के नज़दीक आ गई थी।
‘ओह मुसीबत। मैं मैच मिस नहीं करना चाहता।’ ईश ने कहा जैसे ही उसने इंडिया को चौका लगाते देखा।
ईश ने अपना बैट उठाया। हम घर से बाहर भागे। सिल्वर ऐस्टीम ने पोल को चक्कर काटा और दोबारा चक्कर लगाने लगी। ईश कार के सामने खड़ा हो गया और लड़के को रुकने के लिए कहा।
ऐस्टीम एकदम ईश के सामने आकर रुक गई। ईश ड्राईवर के पास गया, जो एक स्मार्ट जवान लड़का था। ‘एक्सक्यूज़ मी, तुम्हारी हैडलाईट बाहर लटक रही है।’
‘सच में, लड़के ने कहा और लाईट बन्द कर दी। वह कार से बाहर निकला और सामने आया।
ईश ने उस लड़के को पीछे गर्दन से पकड़ा और जोर से उसका मुंह बोनेट पर मारा। फिर ईश ने बैट से उसकी हैड लाईट का शीशा तोड़ दिया। बल्ब बाहर लटकने लगा।
‘आप को क्या तकलीफ है,’ लड़के ने कहा, उसकी नाक से खून बह रहा था। ‘तुम मुझे बताओ, तुम्हें क्या है, तुम यहां आकर हार्न बजाते रहते हो।’ ईश ने कहा।
ईश ने उसका कालर पकड़ लिया और छः-सात थप्पड़ उसे जड़ दिए। ओमी ने बैट पकड़ा और कार की खिड़कियाँ तोड़ दी। शीशा चकनाचूर हो गया। लोग इकट्ठे हो गए। ऐसा लग रहा था जैसे गली की लड़ाई देखना सबसे अधिक मनोरंजन की बात है।
लड़का पीड़ा और डर से कांप रहा था। वह अपने डैडी को क्या बतायेगा कि उसकी कार का शीशा कैसे टूटा और उसके चेहरे को क्या हुआ।
ईश के पिता ने शोर सुना और बाहर आ गए। ईश ने लड़के को बुरी तरह से अपनी बाँहों में जकड़ा हुआ था। लड़का सांस लेने के लिए छटपटा रहा था।
‘उसे छोड़ दो।’ ईश के पिता ने कहा।
ईश ने उसे और ज़ोर से जकड़ लिया।
‘मैंने तुम्हें कहा उसे छोड़ दो, ’ईश के पिता चिल्लाए, ‘यह सब क्या हो रहा है?’ ‘यह पिछले हफ्ते से विद्या को तंग कर रहा है, ‘ईश ने कहा। उसने लड़के को ज़ोर से टांग मारी और छोड़ दिया। लड़का घुटनों के बल बैठ गया और ज़ोर ज़ोर से सांस लेने लगा। ईश के टांग मारने से उसके नाक से और खून बहने लगा और चेहरा खून से भर गया।
‘और जो तुम कर रहे हो क्या वो ठीक है?’ ईश के पिता ने कहा।
‘मैं उसे सबक सिखा रहा हूं। ईश ने कहा और विंड-स्क्रीन में फंसा अपना बैट निकाला।
‘अच्छा, वैरी गुड, और तुम अपने सबक कब सीखोगे?’ ईश के पिता ने ईश को कहा।
ईश वहां से चला गया।
‘अब तुम जाओ’ ईश के पिता ने लड़के को कहा जो हाथ जो़ड़े खड़ा था। जब उसने देखा कि उसकी क्षमा की ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा तो वह अपनी कार की तरफ मुड़ा।
ईश के पिता अपने पड़ोसियों की ओर मुड़े। ‘पूरे एक वर्ष से घर पर बैठा हुआ है। अपने ही देश की सेना से भाग आया है और अब दूसरों को सबक सिखाना चाहता है। वह और उसके लोफर दोस्त सारा दिन घर पर धमा-चौकड़ी मचाए रखते हैं।
ईश ने अपने पिता को गहरी दृष्टि से देखा और घर के अंदर चला गया।
‘अब तुम क्या करने जा रहे हो?’ ईश के पिता चिल्लाए।
‘मैच देखने, क्या कोई कसर रह गई है मुझे लताड़ने की। ईश ने कहा।
‘जब तुमने अपनी सारी जिन्दगी ही बर्बाद कर दी है तो एक दिन से क्या फर्क पड़ता है।’ ईश के पिता ने कहा। पड़ोसियों ने भी उनकी हां में हां मिलाने के लिए सिर हिलाया।
पिछले पांच ओवर हमने मिस कर दिए। इंडिया जीत गई और ईश ज़्यादा अप-सैट नहीं हुआ।
‘हां, हां, हां ईशान खुशी से उछला। ‘आज गोपी के यहां मेरी तरफ से खाना रहा’ ईश ने कहा। मैं मूर्खों को पसंद करता हूं।
असल में ईशान मूर्ख नहीं है। कम से कम ओमी जितना नहीं। दोनों पढ़ाई में लगे रहते हैं खास कर मैथ्स में और मैं और मैथ्स में बहुत अच्छा हूं। यह लेबल मेरे ऊपर चिपका हुआ है। केवल यही लेबल। मैं तीनों में सबसे गरीब हूं। बेशक मैं एक दिन सबसे धनी बन जाऊंगा। फिर भी ईशान और ओमी भी ज्यादा अमीर नहीं है। ईशान के पिता टेलीफोन एक्सचेंज में हैं और बेशक उसके घर काफी फोन हैं पर उनकी तनख्वाह ठीक ठीक ही है। ओमी के पिता स्वामी भक्ति मंदिर में पुजारी हैं, जो असल में ओमी की ननिहाल वालों का है। और वो इसके लिए ज्यादा तनख्वाह भी नहीं देते। पर फिर भी वह मेरे और मेरी मां के मुकाबले काफी अच्छे हैं, आर्थिक रूप से।
मेरी मां गुजराती स्नैक्स बनाने का काम करती है और मैं कुछ ट्यूशंस पढ़ाता हूं। इसी से हमारी गुजर होती है।
‘हम जीत गए, हम जीत गए 3-1 सीरीज़ से’ ओमी ने दोहराया जो उसने टी.वी स्क्रीन पर देखा। उसके लिए ऐसी मौलिक बात करना बहुत बड़ी बात थी। कुछ लोग कहते हैं कि ओमी पैदाइशी मूर्ख है, और कुछ कहते हैं कि छठी कक्षा में उसके सिर में कार्क-बाल लगने से उसके दिमाग पर असर पड़ा, तब से वह मूर्खतापूर्ण बातें करने लगा। मुझे कारण नहीं पता पर मैं इतना जानता हूं कि उसके लिए पुजारी बन जाना ही सबसे अच्छा है। उसके आगे कोई अच्छा कैरियर नहीं है। मुश्किल से उसने ब्लस-टू किया, वो भी दो बार मैथ्स में कम्पार्टमैंट आने के बाद। मेरा आइडिया अच्छा था पर वो पुजारी बनना नहीं चाहता।
मैंने खाकरा खाया। मेरी मां ईशान की मां से अच्छा बनाती है। हम इस काम में प्रोफैशनल हैं।
‘मैं घर जाकर कपड़े बदल कर आता हूं और फिर हम गोपी के चलेंगे, ओ. के?’ मैंने कहा जबकि ईशान और ओमी अभी भी खुशी से नाच रहे थे। भारतीय जीत के बाद नाचना हमने परंपरा बना ली थी जब हम ग्यारह वर्ष के थे जो तेरह तक चलती रही और अब हम 21 वर्ष के हैं और बच्चों की तरह नाच रहे हैं। ओ. के. हम जीत गए, किसी ने तो जीतना ही था। मैथेमैटिकल टर्म में इसकी संभावना थी।
मैं घर आ गया।
पुराने शहर की तंग गलियां शाम की भीड़ से भरी हुई मेरे और ईशान के घर का फासला आधा कि. मी. था। मेरी दुनिया में सभी चीज़ों का फासला इतना ही है। मैं नाना पार्क से गुज़रा। भारत के जीत जाने की खुशी में बच्चे वहां क्रिकेट खेल रहे थे। मैं भी अपने स्कूल-टाईम में मैं यहां रोज़ खेलता था।’ अब हम कभी-कभी यहां आते हैं पर अधिकतर भी घर के साथ बने हुए ग्राउंड में ही बैठते हैं।
एक टैनिस-बॉल मेरे पैरों से टकराई। लगभग 12 वर्ष का एक सुंदर सा लड़का मेरे पास आया भागता-भागता। मैंने गेंद उठाकर उसे दे दी। नाना पार्क में ही मैं ईशान और ओमी से पहली बार मिला था, पंद्रह वर्ष पहले। जब हमारी मित्रता हुई तब ऐसी कोई विशेष घटना नहीं घटी थी। शायद हम छः-छः वर्ष के हमउम्र थे, जो ग्राउंड में मिले और इकट्ठे खेलना आरंभ कर दिया।’
जैसे कि सभी पड़ोसी-बच्चे होते हैं, हम बलरामपुर म्यूनिसिपल स्कूल में जाने लगे, जो नाना पार्क से लगभग 100 मीटर दूर था। केवल मैं ही पढ़ता था, ईशान और ओमी जब भी मौका मिलता पार्क में चले जाते। तंग गली में हम तीनों की साईकिलें एक दूसरे के आगे चलने की कोशिश में रहती। मुझे काज़ी रेस्तरां के कुछ अंदर को होना पड़ता क्योंकि उन दोनों को रास्ता देने के लिए। रेस्तरां का छोटा सा कमरा खाने की खुशबू से भरा होता। खानसामा रात का खाना तैयार कर रहा था, आम दिनों से बड़ी पार्टी भारत की जीत की खुशी में।
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