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निमन्त्रण

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :120
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7958
आईएसबीएन :9789350002353

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तसलीमा नसरीन का यह उपन्यास निमन्त्रण शीला और उसके सपनों का पुरुष प्रेमी मंसूर की कहानी है।...


मैं मन-ही-मन अवाक् हो उठी। भाई के साथ मेरी इतनी घनिष्ठता है, तुलसी के साथ भी, लेकिन उन दोनों में एक ही रिश्ते में आने-जाने का रिश्ता है, यह तो मुझ पर कभी ज़ाहिर नहीं हुआ। वैसे एक ही रिक्शे में आना जाना, किसी क़िस्म के शक़ की वजह नहीं भी हो सकती है, लेकिन कल ही तो तुलसी से मेरी भेंट हुई थी। तलसी ने तो नहीं बताया कि वह मेरे भाई के साथ श्यामली की तरफ़ गयी थी। खैर, जो भी हो, भाई अगले दिन भी नहीं लौटे, उसके बाद वाले दिन भी नहीं। तुलसी भी नहीं लौटी। घर के सभी लोग यह सोच लेने को लाचार हो गये कि फरहाद और तुलसी अपने-अपने घर से भाग गये।

यह दुनिया मेरी नज़रों में दिनोंदिन नयी होती जा रही है। जिस शख्स का रूमू के साथ पाँच वर्षों से इश्क चल रहा हो, जिसने तुलसी की तरफ़ एक बार नज़रें उठा कर देखने में आग्रह नहीं दिखाया, वह तुलसी को ले उड़ा? असल में यह प्रेम-प्यार, बेहद अजीब होता है। तुलसी के माँ-बाप-भाई खामोश हो रहे। मेरे अब्बू-माँ नाते-रिश्तेदारों को बुला-बुला कर, हर रोज़ मीटिंग करते रहे। मुझे नहीं पता, इस प्रेम की समस्या का उन लोगों ने क्या समाधान निकाला।

घर में बड़े और इकलौते बेटे के लिए कैसी तो घबड़ाहट शुरू हो गयी। अब घर में चूल्हे पर खाना चढ़ाना तक ठहर गया है। ख़ाला, मामा, काका वगैरह होटल के खाना ख़रीद कर, घर में दे जाते हैं। दूर-दूर के नाते-रिश्तेदारों, यार-दोस्तों के यहाँ भी भाई का कोई सुराग नहीं मिला। माँ-अब्बू परेशान! खैर! मुझे यह सारा मामला ख़ास बुरा नहीं लग नहीं रहा है। तुलसी अगर मेरी भाभी बन गयी है, तो अच्छा ही है। मैं उसे 'भाभी' तो नहीं बुलाऊँगी, 'तुलसी' ही कहूँगी। अब्बू और माँ की प्रमुख समस्या...? तुलसी लक्ष्मी लड़की है, हम सभी जानते हैं, सूरत-शक्ल से भी सुन्दर है, मन भी भला-भला है, लेकिन जाति से हिन्दू है! हिन्दू के साथ मुसलमान की शादी कैसे हो सकती है? लेकिन मुझे नहीं लगता कि वह हिन्दू है, इसलिए रूमू या नादिरा या मुझसे कहीं से अलग है।

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