जीवनी/आत्मकथा >> एक और नीमसार एक और नीमसारऋचा नागर ऋचा सिंह
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संगतिन आत्ममन्थन और आन्दोलन
Ek Aur Neemsaar by Richa Nagar & Richa Singh
एक और नीमसार : ‘संगतिन आत्ममन्थन और आन्दोलन’ उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में सक्रिय पाँच हज़ार दलित और ग़रीब महिलाओं, मज़दूरों और किसानों के संगठन - संगतिन किसान मज़दूर संगठन - के जीवन्त आन्दोलन का दल्तावेज़ है। संगठनात्मक सफ़र के कड़वे-मीठे सचों से भरी इस किताब में संगतिन के तमाम साथियों का कथन और आत्ममन्थन तो है ही साथ में उनके रोजमर्रा के संघर्षों की कहानियाँ और उनके सपनों की कविता भी है।
मुल्कों की सरहदों और रात-दिन के फ़ासलों को मिटाकर ऋचा सिंह की संयुक्त लेखनी ने 2004 से 2011 तक के इस सफ़रनामे को कुछ इस तरह पेश किया है कि इसमें डायरी और नाटक, शोध और उपन्यास, कविता और सामाजिक विश्लेषण के रस आपस में घुल-मिलकर पाठक को बाँध लेते हैं।
इस पुस्तक में जहाँ एक ओर हाशिये पर जी रहे लोगों का एक ऐतिहासिक आन्दोलन बनता हुआ दीखता है वहीं उन्हीं साथियों के बीच मौजूद भावनात्मक और वैचारिक दीवारों और खाइयों को लेकर हो रही जद्दोजहद भी दीखती है। इसी तरह जहाँ एक ओर सरकारी नीतियों और रोज़-दर-रोज़ के मुद्दों को लेकर गाँवों में चलने वाले सत्ता, वर्ग, जाति और लिंग के संघर्ष उजागर होते हैं, वहीं गाँवों और ज़िले की हदों के भीतर हो रही घटनाओं का राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर चल रही प्रक्रियाओं से गहरा रिश्ता और सरोकार भी दीखता है।
मुल्कों की सरहदों और रात-दिन के फ़ासलों को मिटाकर ऋचा सिंह की संयुक्त लेखनी ने 2004 से 2011 तक के इस सफ़रनामे को कुछ इस तरह पेश किया है कि इसमें डायरी और नाटक, शोध और उपन्यास, कविता और सामाजिक विश्लेषण के रस आपस में घुल-मिलकर पाठक को बाँध लेते हैं।
इस पुस्तक में जहाँ एक ओर हाशिये पर जी रहे लोगों का एक ऐतिहासिक आन्दोलन बनता हुआ दीखता है वहीं उन्हीं साथियों के बीच मौजूद भावनात्मक और वैचारिक दीवारों और खाइयों को लेकर हो रही जद्दोजहद भी दीखती है। इसी तरह जहाँ एक ओर सरकारी नीतियों और रोज़-दर-रोज़ के मुद्दों को लेकर गाँवों में चलने वाले सत्ता, वर्ग, जाति और लिंग के संघर्ष उजागर होते हैं, वहीं गाँवों और ज़िले की हदों के भीतर हो रही घटनाओं का राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर चल रही प्रक्रियाओं से गहरा रिश्ता और सरोकार भी दीखता है।
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