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निशाचर
निशाचर
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2018 |
पृष्ठ :159
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 7980
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आईएसबीएन :9789387462786 |
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भीष्म साहनी ने बतौर कथाकार जो रास्ता चुना, उसके आधार पर अगर उन्हें पथ-प्रवर्तक कहा जाए तो वह गलत इसलिए होगा कि उसका अनुकरण हर किसी के लिए लिहाज नहीं है। वह रास्ता स्वयं सहजता का है, और उस पर चलने की हर सचेत कोशिश अपको न सिर्फ असहज, बल्कि अमौलिक भी कर देगी। वह सहजता जीवन के स्वभाव से आती है जिसे आप अपने परिवेश के बीचो-बीच रहते हुए अजित भी नहीं करते, सिर्फ स्वीकार करते हैं। यथार्थ के प्रति यह स्वीकृति अभाव ही द्रष्टा को यथार्थ के सम्पूर्ण तक ले जाता है। यह आश्चर्यजनक है कि प्रगतिशील विचारधारा में प्रशिक्षित भीष्म जी ने अपने कथाकार को कभी इस स्वीकृति-भाव से वंचित नहीं किया।
अपनी हर कथा-रचना की तरह इस संग्रह की कहानियों में भी भीष्म जी ने दृष्टि की उस विराटता का परिचय दिया है। वर्ष 1983 में प्रकाशित इस संग्रह में उनकी प्रसिद्ध कहानियों में से एक ‘चाचा मंगलसेन’ भी है। साथ ही ‘जहूर बख्श’, ‘सरदारनी’ और ‘सलमा आपा’ सहित कुल चौदह कहानियों से सम्पन्न यह पुस्तक सम्बन्धों के बनते-बिगड़ते रूपों और उनके मध्य अकुंठ खडी मानवीय जिजीविषा के अनेक आत्मीय और करुण चित्र हमें देती है। ये कहानियाँ गहरे संघर्ष के बाबजूद पलायन नहीं करने की जिद को भी रेखांकित करती हैं और वीभत्स के सम्मुख खड़े सौन्दर्य को भी।
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