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एक किशोरी की डायरी

अने फ्रांक (अनुवाद प्रभात रंजन)

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2018
पृष्ठ :267
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8046
आईएसबीएन :9789387462304

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एक किशोरी की डायरी शताब्दी की महानतम किताबों में से एक है।...

Ek Kishori ki Diary (Anne Frank)

अने फ्रांक की डायरी शताब्दी की महानतम किताबों में एक है।...अपने आपको और अपनी परिस्थितियों को उसने इन पन्नों पर इतने जीवंत रूप में अंकित किया कि इतिहास भी उसके सामने हार गया। हम बार-बार उसकी तरफ वापस आते हैं और विश्वास नहीं कर पाते कि यह सब बेल्जन के रास्ते में लिखा गया है...यदि आपने कभी अने फ्रांक की डायरी को नहीं पढ़ा है, या कई वर्षों से नहीं पढ़ा है, तो यह संस्करण खरीदिए।’’

 

नताशा वॉल्टर, ‘गार्जियन’

 

यह (डायरी) उसके विचारों, उसकी लेखक बनने की इच्छा और अपने साथ छिपे लोगों के बारे में उसकी तीखी और कभी-कभी निर्मम टिप्पणियों को दर्शाती है...वहाँ हुए झगड़ों का विवरण भी इसमें वह देती है...कोई भी संस्करण पढ़िए, अने की यह डायरी हमेशा ताजा लगती है और उतनी ही हृदयविदारक भी।

 

केरोलाईन मोरेहेड, ‘डेली टेलीग्राफ’

 

पचास साल पुरानी यह डायरी आज भी उतना ही हत्प्रभ करती है, उतनी ही यातना देती है...इस डायरी में जो है वह है उसकी जीवन के प्रति लालसा। आज भी यह हमें चुभती है।

 

‘द न्यूयॉर्क टाइम्स बुक रिव्यू’

 

प्राक्कथन

 

अने फ्रांक ने 12 जून 1942 से 1 अगस्त 1944 के दौरान एक डायरी लिखी। आरम्भ में, उसने नितान्त अपने लिए रखा। लेकिन 1944 में एक दिन, निर्वासित डच सरकार के एक प्रतिनिधि गेरिट बोल्कश्टाइन ने लन्दन से एक रेडियो प्रसारण में घोषणा की कि उन्हें उम्मीद है कि युद्ध के बाद वे जर्मन कब्जे के दौरान डच लोगों की पीड़ा के आँखों देखे विवरण जुटा सकेंगे जिन्हें सार्वजनिक भी किया जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर उन्होंने पत्रों और डायरियों का विशेष रूप से उल्लेख लिया।

इसी भाषण से प्रभावित होकर अने फ्रांक ने निश्चय किया कि युद्ध समाप्त होने पर, वह अपनी डायरी पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित करेगी। सो, वह अपनी डायरी के पुनर्लेखन और संपादन में जुट गई, पाठ को बेहतर बनाने लगी, जो हिस्से उसे पर्याप्त रुचिकर नहीं लगे उन्हें हटाकर अपनी स्मृति से अन्य हिस्से जोड़ने लगी। इसके साथ-साथ उसने अपनी मूल डायरी को लिखना भी जारी रखा। विद्वत्तापूर्ण कृति ‘द डायरी ऑफ अने फ्रांक : द क्रिटिकल एडिशन’ (1989), में अने की पहली असम्पादित डायरी को ‘संस्करण ए’ के रूप में बताया गया है, ताकि दूसरी यानी सम्पादित डायरी से उसको अलग दिखाया जा सके, जिसे ‘संस्करण बी’ के रूप में उद्धत किया गया है।

अने की डायरी में अन्तिम प्रविष्टि 1 अगस्त 1944 की दर्ज है। 4 अगस्त 1944 को, उस गुप्त आवास में रहनेवाले आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया। मीप गीस और बेप फोस्क्यूल दो सचिव थे, जो उस भवन में काम कर रहे थे, उनको अने की डायरियाँ फर्श पर बिखरी-फैली मिलीं। मीप गैस ने सुरक्षा के खयाल से उनको उठाकर मेज की दराज में रख दिया। लड़ाई यानी द्वितीय महायुद्ध के बाद जब यह बात साफ हो गई कि अने इस दुनिया में नहीं रही, तो उसने उन डायरियों को बिना पढ़े ही अने के पिता ओटो फ्रांक को सौंप दिया।

काफी सोच-विचार करके ओटो फ्रांक ने अपनी बेटी की इच्छा पूरी करने और उस डायरी को प्रकाशित करने का निर्णय लिया। उन्होंने संस्करण ‘ए’ और ‘बी’ से सामग्री चुनी और उसका एक और संक्षिप्त संस्करण सम्पादित करके तैयार किया, जिसे संस्करण ‘सी’ के तैयर पर उद्धत किया गया। संसार-भर के पाठक इसी को एक किशोरी की डायरी के रूप में जानते हैं।

चुनाव करते समय ओटो फ्रांक को कई बातों का खयाल रखना पड़ा। सबसे पहले, पुस्तक के आकार-प्रकार को छोटा रखना जरूरी था, ताकि वह डच प्रकाशक की श्रृंखला के अन्तर्गत आ सके। इसके अलावा, कई ऐसे अनुच्छेदों को, जिनका संबंध अने की यौनिकता से था, हटा दिया गया। 1947 में, जिस समय इस डायरी का पहली बार प्रकाशन हुआ,यौन-भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने का चलन नहीं था, उन किताबों में तो बिल्कुल नहीं, जो नौजवानों के लिए हों। मृतक के सम्मान में, ओटो फ्रांक ने कुछ ऐसे अनुच्छेदों को भी हटा दिया, जिनमें उसकी पत्नी तथा उस गुप्त उपखंड के अन्य निवासियों के बारे में ‘खरी’ बातें लिखी गई थीं। अने फ्रांक ने जब डायरी लिखना आरम्भ किया, उस समय उसकी उम्र 13 वर्ष और जब उसे यह डायरी छोड़नी पड़ी उस समय 15 वर्ष थी, तो भी अपनी पसन्द और नापसन्द के बारे में उसने बेहिचक लिखा।

1980 में जब ओटो फ्रांक की मृत्यु हुई, तो वे अपनी बेटी की पांडुलिपि की वसीयत एम्सटर्डम स्थित नीदरलैंड स्टेट इंस्टीट्यूट फॉर वार डाक्यूमेंटेशन के नाम कर गए, क्योंकि इस डायरी की विश्वसनीयता को इसके प्रकाशन के समय से ही चुनौती दी जाती रही, इसलिए इंस्टीट्यूट फॉर वार डाक्यूमेंटेशन संस्थान ने इसके हर पहलू की जाँच के आदेश दिए। जब हर प्रकार से यह बात साबित हो गई कि यह डायरी असली है, तो इसे सम्पूर्ण रूप में और इस संबंध में किए गए विस्तृत अध्ययन के परिणामों के साथ प्रकाशित किया गया। इसके आलोचनात्मक संस्करण में केवल संस्करण ए, बी तथा सी ही नहीं हैं, उसमें फ्रांक, परिवार की पृष्ठभूमि से सम्बन्धित लेख गिरफ्तारी और निर्वासन से जुड़ी परिस्थितियों और अने की हस्तलिपि, दस्तावेज और डायरी में इस्तेमाल की गई सामग्री के बारे में भी जानकारी दी गई है।

बाजेल (स्विट्जरलैंड) में स्थित अने फ्रांक फाउंडेशन को ओटो फ्रांक के वैधानिक उत्तराधिकारी के रूप में फ्रांक की पुत्री का कॉपीराइट भी प्राप्त हुआ। इसके बाद फाउंडेशन ने तय किया कि सामान्य पाठकों के लिए इस डायरी का एक नया और विस्तृत संस्करण छापा जाए। यह नया संस्करण किसी भी प्रकार से ओटो फ्रांक द्वारा सम्पादित पहली डायरी की निष्ठा को प्रभावित नहीं करता, जो इस डायरी और इसके संदेशों को लाखों-लाख लोगों के समक्ष लेकर आया था। यह विस्तृत संस्करण को तैयार करने का काम लेखक और अनुवादक मीरयम प्रेस्लर को सौंपा गया। ओटो फ्रांक के मूल चयन को अब संस्करण ए और संस्करण बीके अनुच्छेदों से संबंधित किया गया। मीरयम प्रेस्लर के संस्करण को अने फ्रांक फाउंडेशन ने मान्य करार दिया, जिसमें लगभग 30 प्रतिशत सामग्री अधिक है और यह पाठकों को अने फ्रांक के संसार का अधिक गहरा परिचय कराती है।

सन् 1998 में डायरी के पूर्व में अज्ञात पाँच और पृष्ठ प्रकाश में आए। अब, अने फ्रांक फाउंडेशन की अनुमति से 8 फरवरी, 1944 की तिथि का एक लम्बा परिच्छेद इस तिथि की पहले से मौजूद टीप के साथ जोड़ दिया गया है। 20 जून, 1942 की तिथि की अपेक्षाकृत एक छोटी वैकल्पिक टीप को इसमें जगह नहीं दी गई है, क्योंकि उसका एक अधिक विस्तृत संस्करण डायरी में पहले से मौजूद है। इसके अलावा, नई खोजों को ध्यान में रखते हुए 7 नवम्बर, 1942 की एक टीप को 30 अक्टूबर, 1943 की तिथि से संलग्न कर दिया गया है। अधिक सूचना के लिए, पाठक परिवर्द्धित आलोचनात्मक संस्करण को देख सकते हैं।

संस्करण बी तैयार करते हुए अने ने उस पुस्तक में आनेवाले लोगों के छद्म नाम रख दिए थे। शुरू में वह स्वयं को भी आने आउलिस के रूप में रखना चाहती थी, और बाद में अने रॉबिन के रूप में। ओटो फ्रांक ने अपने परिवार के सदस्यों के नाम तो वास्तविक कर दिए, बाकी लोगों के मामले में उन्होंने अने की इच्छाओं का पूरा खयाल रखा। समय बीतने के साथ, गुप्त ठिकानों में रहनेवाले परिवारों की मदद करने वाले लोगों के नाम सामान्य ज्ञान का हिस्सा हो गए। इस संस्करण में मददगारों को उनकी वास्तविक पहचान के साथ रखा गया है, जो इसके समुचित हकदार भी हैं। अन्य लोगों को आलोचनात्मक संस्करण में दिए गए छद्म नामों से ही सन्दर्भित किया गया है। वार डाक्यूमेंटेशन इंस्टीट्यूट ने मनमाने तरीके से उन लोगों के नामों के आद्याक्षर तय कर दिए जो अज्ञेय ही बने रहना चाहते हैं।
उस गुप्त ठिकाने (उपखंड) में छिपे अन्य लोगों के वास्तविक नाम ये हैं :
फॉन पेल्स परिवार (ओस्नाब्रुक, जर्मनी से)
ऑगस्त फॉन पेल्स (जन्म – 9 सितम्बर 1900)
हर्मन फॉन पेल्स (जन्म – 31 मार्च 1898)
पीटर फॉन पेल्स (जन्म – 8 नवम्बर 1926)

अने की पांडुलिपि में इन्हें पेत्रोनेल्ला, हांस और अल्फ्रेड फॉन डॉन और पुस्तक में पेत्रोनेल्ला, हर्मन और पीटर फॉन डॉन बताया गया है। फ्रित्स प्फेफर (जन्म – 30 अप्रैल 1889, जियसेन, जर्मनी) अने ने अपनी पांडुलिपि और पुस्तक दोनों ही स्थानों पर उन्हें अल्बेर्ट डूसल कहकर याद किया गया है।

पाठकों को यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि इस संस्करण का ज्यादातर भाग अने की डायरी के संस्करण बी पर आधारित है, जो उसने तब लिखा जब उसकी उम्र 15 वर्ष थी। यदा-कदा, अने पीछे लौटकर पहले की लिखी अपनी किसी उक्ति के हवाले भी देती है। इस संस्करण में वे टिप्पणियाँ विशेष रूप से चिह्नित की गई हैं। स्वाभाविक तौर पर, अने की वर्तनी और भाषा सम्बन्धी गलतियों को भी सुधारा गया है। पाठ को उसी तरह रहने दिया गया है जैसे उसने लिखा था, कारण यह है कि किसी ऐतिहासिक दस्तावेज में संपादन या स्पष्टीकरण सम्बन्धी कोई भी प्रयास अनुचित की कहा जाएगा।

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