कहानी संग्रह >> सम्पूर्ण कहानियाँ (सुभद्रा कुमारी चौहान) सम्पूर्ण कहानियाँ (सुभद्रा कुमारी चौहान)मधु शर्मा (संपादक)
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हिन्दी की जानी-मानी साहित्यकार डॉ. मधु शर्मा द्वारा सुभद्रा जी की सम्पूर्ण कहानियों का संपादन
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
‘बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी’ इस अमर कविता की रचनाकार सुभद्रा कुमारी चौहान (1904-48) हिन्दी की प्रमुख कवयित्री के रूप में विख्यात हैं और उनका नाम महादेवी वर्मा के साथ लिया जाता है। लेकिन उनका स्थान हिन्दी की कथा-लेखिकाओँ में भी अग्रणी है। उन्हें उनके कविता-संग्रह ‘मुकुल’ पर उस ज़माने का सर्वोच्च ‘सेकसरिया पुरस्कार’ प्रदान किया गया, तो उनके कहानी-संग्रह ‘सीधे-सादे चित्र’ पर भी उन्हें इसी पुरस्कार से नवाज़ा गया।
सुभद्रा जी ने आदर्शवादी और यथार्थवादी, दोनों तरह की कहानियाँ लिखीं, जिनमें ‘गौरी’, ‘एकादशी’, ‘भग्नावशेष’, ‘किस्मत’, ‘होली’, ‘रूपा’, ‘दृष्टिकोण’ आदि शैली-शिल्प की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ मानी जा सकती हैं। ये कहानियाँ पाठक की संवेदना पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, कि सालों इनकी स्मृति मन पर छाई रहती है।
आलोचक और संपादक डॉ. मधु शर्मा हिन्दी की जानी-मानी साहित्यकार हैं। उन्होंने सुभद्रा जी की सम्पूर्ण कहानियों का संपादन इस तरह तैयार किया है कि पाठकों का रुचि-बोध सीढ़ी-दर-सीढ़ी कहानियों के साथ एकाकार हो सके।
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 1904 में इलाहाबाद में हुआ। वे नौ साल की छोटी उम्र से ही कविता लिखने लगी थीं। आठवीं कक्षा पास करने के बाद उनका विवाह सुशिक्षित और विद्वान युवक लक्ष्मण सिंह चौहान से हो गया। उस समय लक्ष्मण सिंह जी बी. ए. पास कर चुके थे। विवाह के बाद भी दोनों ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। किंतु उसी दौरान महात्मा गांधी ने आज़ादी के आंदोलन में ‘असहयोग’ का नारा दिया। फलस्वरूप दोनों ने पढ़ाई छोड़ दी और जी-जान से आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। आज़ादी की अलख जगाने के साथ-साथ दोनों साहित्य-सेवा भी करते रहे। कवयित्री और कथाकार सुभद्रा कुमारी चौहान जी के व्यक्तित्व की विशेषता यह थी कि वे साहित्य और राजनीति, दोनों ही मोर्चों पर सतत सक्रिय रहीं और दोनों में ही अपनी छाप छोड़ी। अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्या और मध्य भारत विधान सभा की एम. एल. ए. भी वे रहीं।
सुभद्रा जी का निधन 1948 के वसंत में कार-दुर्घटना में हुआ।
सुभद्रा जी ने आदर्शवादी और यथार्थवादी, दोनों तरह की कहानियाँ लिखीं, जिनमें ‘गौरी’, ‘एकादशी’, ‘भग्नावशेष’, ‘किस्मत’, ‘होली’, ‘रूपा’, ‘दृष्टिकोण’ आदि शैली-शिल्प की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ मानी जा सकती हैं। ये कहानियाँ पाठक की संवेदना पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ती हैं, कि सालों इनकी स्मृति मन पर छाई रहती है।
आलोचक और संपादक डॉ. मधु शर्मा हिन्दी की जानी-मानी साहित्यकार हैं। उन्होंने सुभद्रा जी की सम्पूर्ण कहानियों का संपादन इस तरह तैयार किया है कि पाठकों का रुचि-बोध सीढ़ी-दर-सीढ़ी कहानियों के साथ एकाकार हो सके।
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 1904 में इलाहाबाद में हुआ। वे नौ साल की छोटी उम्र से ही कविता लिखने लगी थीं। आठवीं कक्षा पास करने के बाद उनका विवाह सुशिक्षित और विद्वान युवक लक्ष्मण सिंह चौहान से हो गया। उस समय लक्ष्मण सिंह जी बी. ए. पास कर चुके थे। विवाह के बाद भी दोनों ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। किंतु उसी दौरान महात्मा गांधी ने आज़ादी के आंदोलन में ‘असहयोग’ का नारा दिया। फलस्वरूप दोनों ने पढ़ाई छोड़ दी और जी-जान से आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। आज़ादी की अलख जगाने के साथ-साथ दोनों साहित्य-सेवा भी करते रहे। कवयित्री और कथाकार सुभद्रा कुमारी चौहान जी के व्यक्तित्व की विशेषता यह थी कि वे साहित्य और राजनीति, दोनों ही मोर्चों पर सतत सक्रिय रहीं और दोनों में ही अपनी छाप छोड़ी। अखिल भारतीय कांग्रेस की सदस्या और मध्य भारत विधान सभा की एम. एल. ए. भी वे रहीं।
सुभद्रा जी का निधन 1948 के वसंत में कार-दुर्घटना में हुआ।
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