सिनेमा एवं मनोरंजन >> हिट फिल्मी कव्वालियाँ हिट फिल्मी कव्वालियाँगंगा प्रसाद शर्मा (संकलन एवं संपादन)
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हिन्दी फिल्मों की 95 हिट कव्वालियों और मुजरों के बोल..
एक जमाने में कव्वाली फिल्मों का जरूरी हिस्सा हुआ करती थी। फिल्मी गीतों का आधार ज्यादातर क्लासिकल होता था, इसलिए उनमें तड़क-भड़क नहीं हुआ करती थी। जो क्लासिकल की मीठी चटनी के साथ चटकदार तीखा स्वाद भी लेना चाहते थे उन्हें कव्वाली का तालियां और ढोलकी-तबले की थाप तेज थिरकन से सराबोर कर देती थी। इसके बाद कव्वाली में कॉप्टीशन के प्रयोग ने एक नया ताजगी दी फिल्मों को। कव्वाली क्योंकि सूफी परंपरा के साथ जुड़ी रही है, इसलिए इसके बोलों ने दुनियावी प्रेम को अपना माध्यम बनाकर पाक मुहब्बत का अलौकिकता का भी संस्पर्श किया। यही कव्वाली की खूबसूरती रही है।
आज नए माहौल में, कव्वाली के संदर्भ में कुछ नए प्रयोग भी किए गए हैं, जिन्हें नई जेनेरेशन ने दिल से स्वीकारा है।
यही हाल पुराने दौर की फिल्मों में मुजरों का रहा है। रजवाड़ों और नवाबों पर लिखी गई कहानियों का तो ये प्रमुख अंग थे ही, तवायफों पर बनी फिल्में इन्हीं की वजह से काफी मशहूर हुईं। ‘साहेब, बीवी और गुलाम’, ‘पाकीजा’ तथा ‘उमराव जान’ जैसी फिल्मों को कौन भुला सकता है। इन मुजरों के माध्यम से या तो आशिकी मुखर हुई है या फिर दर्द। ये दोनों ही भाव दिल की गहराइयों को छूते हैं।
कव्वाली और मुजरों का यह संकलन आपको पसंद आएगा। हम यही उम्मीद करते हैं। हमारी भूलों को नज़रअंदाज करते हुए आप अपनी बात से हमें वाक़िफ कराएंगे, हम यह भी चाहते हैं।
आज नए माहौल में, कव्वाली के संदर्भ में कुछ नए प्रयोग भी किए गए हैं, जिन्हें नई जेनेरेशन ने दिल से स्वीकारा है।
यही हाल पुराने दौर की फिल्मों में मुजरों का रहा है। रजवाड़ों और नवाबों पर लिखी गई कहानियों का तो ये प्रमुख अंग थे ही, तवायफों पर बनी फिल्में इन्हीं की वजह से काफी मशहूर हुईं। ‘साहेब, बीवी और गुलाम’, ‘पाकीजा’ तथा ‘उमराव जान’ जैसी फिल्मों को कौन भुला सकता है। इन मुजरों के माध्यम से या तो आशिकी मुखर हुई है या फिर दर्द। ये दोनों ही भाव दिल की गहराइयों को छूते हैं।
कव्वाली और मुजरों का यह संकलन आपको पसंद आएगा। हम यही उम्मीद करते हैं। हमारी भूलों को नज़रअंदाज करते हुए आप अपनी बात से हमें वाक़िफ कराएंगे, हम यह भी चाहते हैं।
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