भाषा एवं साहित्य >> प्रगतिवाद और समानांतर साहित्य प्रगतिवाद और समानांतर साहित्यरेखा अवस्थी
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यह पुस्तक शोधग्रंथ भी है और धारदार तर्क-वितर्क से भरी एक सृजनात्मक कृति भी
यह पुस्तक शोधग्रंथ भी है और धारदार तर्क-वितर्क से भरी एक सृजनात्मक कृति भी है। इसमें प्रगतिशील आंदोलन के ऐतिहासिक विकास-क्रम, उसके दस्तावेजों, उसके रचनात्मक और समालोचनात्मक पहलुओं तथा उस दौर में प्रचरित समानांतर प्रवृत्तियों से उसके दंद्वात्मक रिश्ते की पड़ताल की गई है।
यह पुस्तक शोध, अन्वेषण, स्रोत सामग्री की छानबीन पर आधारित ऐतिहासिक विवेचना के क्षेत्र में एक नये ढंग की प्रामाणिकता के कारण हिंदी के सभी प्रमुख समालोचकों के द्वारा सराही गई है तथा पाठक समुदाय ने इसका हार्दिक स्वागत किया है। अतः अध्यापकों, शोधार्थियों तथा नई पीढ़ी के साहित्यप्रेमी पाठकों के लिए यह प्रेरणादायी पठनीय पुस्तक है।
1930 से 1950 के साहित्यिक इतिहास के मुखर आईने के रूप में यह अद्वितीय आलोचनात्मक कृति है। पारदर्शी तार्किकता और सांस्कृतिक उत्ताप से भरपूर संवेदनशील मीमांसा के अपने गुणों के कारण रेखा अवस्थी की यह पुस्तक प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूरा होने के मौके पर फिर से उपलब्ध कराई जा रही है क्योंकि पिछले दस सालों में यह पुस्तक बाजार में लाख ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलती थी।
इस तीसरे संस्करण की विशिष्टता यह है कि परिशिष्ट के अन्तर्गत कुछ नये दस्तावेज भी जोड़े गये हैं। इस पुस्तक के पांच अध्यायों में इतनी भरपूर विवेचनात्मक सामग्री है कि यह पुस्तक बीसवीं सदी के हिंदी साहित्य के पूर्वार्द्ध का इतिहास ग्रंथ बन जाने का गौरव प्राप्त कर चुकी है। सन् 2011 शमशेर, केदार, नागार्जुन, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली का जन्मशताब्दी वर्ष रहा है। इस पुस्तक में इन सभी के कृतित्त्व का मूल्यांकन तत्कालीन ऐतिहासिक संदर्भ में किया गया है।
इसके साथ ही यह पुस्तक प्रगतिशील आंदोलन के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों को तोड़ती है और दुराग्रहों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश करती है।
यह पुस्तक शोध, अन्वेषण, स्रोत सामग्री की छानबीन पर आधारित ऐतिहासिक विवेचना के क्षेत्र में एक नये ढंग की प्रामाणिकता के कारण हिंदी के सभी प्रमुख समालोचकों के द्वारा सराही गई है तथा पाठक समुदाय ने इसका हार्दिक स्वागत किया है। अतः अध्यापकों, शोधार्थियों तथा नई पीढ़ी के साहित्यप्रेमी पाठकों के लिए यह प्रेरणादायी पठनीय पुस्तक है।
1930 से 1950 के साहित्यिक इतिहास के मुखर आईने के रूप में यह अद्वितीय आलोचनात्मक कृति है। पारदर्शी तार्किकता और सांस्कृतिक उत्ताप से भरपूर संवेदनशील मीमांसा के अपने गुणों के कारण रेखा अवस्थी की यह पुस्तक प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूरा होने के मौके पर फिर से उपलब्ध कराई जा रही है क्योंकि पिछले दस सालों में यह पुस्तक बाजार में लाख ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलती थी।
इस तीसरे संस्करण की विशिष्टता यह है कि परिशिष्ट के अन्तर्गत कुछ नये दस्तावेज भी जोड़े गये हैं। इस पुस्तक के पांच अध्यायों में इतनी भरपूर विवेचनात्मक सामग्री है कि यह पुस्तक बीसवीं सदी के हिंदी साहित्य के पूर्वार्द्ध का इतिहास ग्रंथ बन जाने का गौरव प्राप्त कर चुकी है। सन् 2011 शमशेर, केदार, नागार्जुन, अज्ञेय, गोपाल सिंह नेपाली का जन्मशताब्दी वर्ष रहा है। इस पुस्तक में इन सभी के कृतित्त्व का मूल्यांकन तत्कालीन ऐतिहासिक संदर्भ में किया गया है।
इसके साथ ही यह पुस्तक प्रगतिशील आंदोलन के बारे में फैलाई गई भ्रांतियों को तोड़ती है और दुराग्रहों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश करती है।
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