उपन्यास >> मैं क्यों नहीं मैं क्यों नहींपारु मदन नाईक
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एक अत्यन्त भावप्रवण उपन्यास
मैं क्यों नहीं? उपन्यास एक बहुत त्रासद सामाजिक विडम्बना को केन्द्र में रखकर लिखा गया है। पारू मदन नाईक ने भारतीय समाज में उन व्यक्तियों की व्यथा-कथा को रेखांकित किया है जो न स्त्री हैं न पुरुष। जो हिजड़ा कहकर सम्बोधित किए जाते हैं जिनके लिए न परिवार सदय होता है न समाज उदार। हृष्ट-पुष्ट होने के बावजूद जिनके श्रम का कोई मूल्य नहीं आँका जाता। जाने कैसी-कैसी मुसीबतें झेलते हुए हिजड़ा समुदाय के लोग अपना जीवन-यापन करते हैं। इस उपन्यास में इसी समुदाय के भावनात्मक पुनर्वास का उपक्रम है।
उपन्यास नाज़ के माध्यम से आकार लेता है। नाज़ एक स्थान पर कहती है, हमें, आपको, इस प्रकृति को ईश्वर ने ही बनाया है। हमें किसी दानव ने तो नहीं बनाया। लेकिन लोगों को इस बात का स्मरण नहीं रहता। क्या बताऊँ सर, किसी डॉक्टर के पास जाना पड़े तो ठीक ट्रीटमेंट भी नसीब नहीं होता। सहानुभूति से पेश आने वाला, आप जैसा कोई, मुश्किल से ही मिलता है। शिक्षा पाना तो दूर, ऐसा जबरदस्त मखौल उड़ाया जाता है कि पूछिए मत!
अत्यन्त भावप्रवण उपन्यास। मराठी से अनुवाद करते समय सुनीता परांजपे ने भाषा-प्रवाह का विशेष ध्यान रखा है।
उपन्यास नाज़ के माध्यम से आकार लेता है। नाज़ एक स्थान पर कहती है, हमें, आपको, इस प्रकृति को ईश्वर ने ही बनाया है। हमें किसी दानव ने तो नहीं बनाया। लेकिन लोगों को इस बात का स्मरण नहीं रहता। क्या बताऊँ सर, किसी डॉक्टर के पास जाना पड़े तो ठीक ट्रीटमेंट भी नसीब नहीं होता। सहानुभूति से पेश आने वाला, आप जैसा कोई, मुश्किल से ही मिलता है। शिक्षा पाना तो दूर, ऐसा जबरदस्त मखौल उड़ाया जाता है कि पूछिए मत!
अत्यन्त भावप्रवण उपन्यास। मराठी से अनुवाद करते समय सुनीता परांजपे ने भाषा-प्रवाह का विशेष ध्यान रखा है।
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