सामाजिक >> भूख भूखमहाश्वेता देवी
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बाँग्ला से अनुवादित महाश्वेता देवी का प्रख्यात उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्रख्यात बाँग्ला लेखिका महाश्वेता देवी ने अन्याय के घृणित रूपों और उसके विरुद्ध चल रहे जन-संघर्ष की दहकती कथा इस उपन्यास मे पाठकों के समक्ष रखी है।
विकास और समानता के दावों के घटाटोप के नीचे असंतोष सुलगता रहता है। राजसत्ता आँख मूँदे रहती है और स्थिरता एवं शान्ति का दावा करती रहती है। जब तक असंतोष को क्रोध का रास्ता नहीं मिलता, तब तक ‘सब कुछ ठीकठाक है’ का भ्रम बना रहता है। छोटे-छोटे संघर्ष चलते रहते हैं और अभिजन यथास्थिति के मुगालते में डूबे रहते हैं। ‘भूख’ इसी कथ्य को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है।
विकास और समानता के दावों के घटाटोप के नीचे असंतोष सुलगता रहता है। राजसत्ता आँख मूँदे रहती है और स्थिरता एवं शान्ति का दावा करती रहती है। जब तक असंतोष को क्रोध का रास्ता नहीं मिलता, तब तक ‘सब कुछ ठीकठाक है’ का भ्रम बना रहता है। छोटे-छोटे संघर्ष चलते रहते हैं और अभिजन यथास्थिति के मुगालते में डूबे रहते हैं। ‘भूख’ इसी कथ्य को आधार बनाकर लिखा गया उपन्यास है।
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