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चाणक्य
चाणक्य
प्रकाशक :
राजकमल प्रकाशन |
प्रकाशित वर्ष : 2015 |
पृष्ठ :128
मुखपृष्ठ :
पेपरबैक
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पुस्तक क्रमांक : 8204
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आईएसबीएन :9788126716760 |
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चाणक्य के चरित्र को अपनी समग्रता में चित्रित करता, सुविख्यात उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा का एक ऐतिहासिक उपन्यास...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
चाणक्य सुविख्यात उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा की अंतिम कृति है, जिसमें उन्होंने मगध-साम्राज्य के पतन का विस्तृत चित्रण किया है। मगध-सम्राट महापद्म नंद और उसके पुत्रों द्वारा प्रजा पर जो अत्याचार किये जा रहे थे, राज्यसभा में आचार्य विष्णुगुप्त ने उनकी कड़ी आलोचना की; फलस्वरूप नंद के हाथों उन्हें अपमानित होना पड़ा। विष्णुगुप्त का यही अपमान अंततः उस महाभियान का आरंभ सिद्ध हुआ, जिससे एक ओर तो आचार्य विष्णुगुप्त ‘चाणक्य’ के नाम से प्रख्यात हुए और दूसरी ओर मगध-साम्राज्य को चंद्रगुप्त जैसा वास्तविक उत्तराधिकारी प्राप्त हुआ।
भगवती बाबू ने इस उपन्यास में इसी ऐतिहासिक कथा की पर्तें उघाड़ी हैं। लेकिन क्रम में उनकी दृष्टि एक पतनोन्मुखी राज्य-व्यवस्था के वैभव-विलास और उसकी उन विकृतियों का भी उद्घाटन करती है जो उसे मूल्य-स्तर पर खोखला बनाती हैं और काल-व्यवधान से परे आज भी उसी तरह प्रासंगिक हैं।
इस उपन्यास की प्रमुख विशेषता यह भी है कि चाणक्य यहाँ पहली बार अपनी समग्रता में चित्रित हुए हैं। उनके कठोर और अभेद्य व्यक्तित्व के भीतर भगवती बाबू ने नवनीत-खंड की भी तलाश की है। अपने महान जीवन-संघर्ष में स्वाभिमानी, संकल्पशील, दूरद्रष्टा और अप्रतिम कूटनीतिज्ञ के साथ-साथ वे एक सुहृद् प्रेमी और सद् गृहस्थ के रूप में भी हमारे सामने आते हैं। निश्चय ही, ‘चित्रलेखा’ और ‘युवराज चूण्डा’ जैसे ऐतिहासिक उपन्यासों के क्रम में लेखक की यह अंतिम स्मरणीय कृति है।
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