लेख-निबंध >> दलित वैचारिकी की दिशाएं दलित वैचारिकी की दिशाएंबद्री नारायण
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दलित वैचारिकी की दिशाएं...
Dalit Vaichariki Ki Dishayen by Badri Narayan
हिन्दी में दलितों की छोटी-छोटी किताबें लिखने की शुरुआत अछूतानन्द ने की थी। चंद्रिका प्रसाद जिज्ञासु, पेरियार ललई सिंह इत्यादि ने ऐसी ही किताबें लिखकर, अपने संतों, गुरुओं एवं समाज सुधारकों के वैचारिक साहित्य का अनुवाद कर छापकर उन्हें दलितों के लोकप्रिय ज्ञान में तब्दील करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। इन्हीं के माध्यम से हिन्दी क्षेत्र के दलित वर्गों में आम्बेडकर, पेरियार, फुले, शाहू जी महाराज के विचार लोकप्रिय हुए एवं हो रहे हैं। दलितों के इन्हीं साहित्य में आज आपको कांशीराम द्वारा लिखित ‘चमचा युग’ भी बिकता मिल जायेगा, जिसने उत्तर भारतीय राजनीति का पूरा पाठ ही सबवर्ट कर दिया। विचार दृष्टि से कांग्रेस कमजोर हुई और बी. एस. पी. आगे बढ़ी।
हम फुटपाथ पर बिकने वाली दलितों की इन फुटपाथी, चैप बुक्स, छोटी किताबें, जिन्हें दलित लोकप्रिय पुस्तिकाएं कहते हैं, में से विशेष वैचारिक सामग्री का चयन कर यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। विश्वास है, शोधार्थियों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं राजनीतिक समूहों के लिए यह महत्त्वपूर्ण हो सकेगा। साथ में हम हिन्दी के दो महत्त्वपूर्ण आलोचकों द्वारा इन पाठों की मीमांसा भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
सीमांत पर बसे समुदायों के ज्ञान के विमर्श को फैलाने एवं उसे जनतंत्रीकृत करने की दिशा में जनजातीय साहित्य की दिशा में हमें बढ़ना ही होगा। प्रसिद्ध युवा कवि एवं जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति के प्रमुख अध्येता नवल शुक्ल का आलेख इसी प्रतीकात्मकता को प्रदर्शित करने के लिए यहाँ दिया जा रहा है।
हम फुटपाथ पर बिकने वाली दलितों की इन फुटपाथी, चैप बुक्स, छोटी किताबें, जिन्हें दलित लोकप्रिय पुस्तिकाएं कहते हैं, में से विशेष वैचारिक सामग्री का चयन कर यहाँ प्रकाशित कर रहे हैं। विश्वास है, शोधार्थियों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं राजनीतिक समूहों के लिए यह महत्त्वपूर्ण हो सकेगा। साथ में हम हिन्दी के दो महत्त्वपूर्ण आलोचकों द्वारा इन पाठों की मीमांसा भी प्रस्तुत कर रहे हैं।
सीमांत पर बसे समुदायों के ज्ञान के विमर्श को फैलाने एवं उसे जनतंत्रीकृत करने की दिशा में जनजातीय साहित्य की दिशा में हमें बढ़ना ही होगा। प्रसिद्ध युवा कवि एवं जनजातीय साहित्य एवं संस्कृति के प्रमुख अध्येता नवल शुक्ल का आलेख इसी प्रतीकात्मकता को प्रदर्शित करने के लिए यहाँ दिया जा रहा है।
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