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अपनी आत्मशक्ति को पहचानें

रॉबिन शर्मा

प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :184
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8255
आईएसबीएन :9788173157325

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यह पुस्तक आपको जीवन के रोमांच, आनंद और व्यावहारिकता से परिचित कराएगी...

Apni Aatmshakti ko Pahchane - A Hindi Book - by Robin Sharma

विश्वाविख्यात मोटीवेशन गुरु एवं बेस्टसेलर लेखक रॉबिन शर्मा की यह असाधारण पुस्तक आपको जीवन के रोमांच, आनंद और व्यावहारिकता से परिचित कराएगी तथा अपने सर्वोत्तम आत्म से संपर्क स्थापित करने की सशक्त व्यावहारिक प्रक्रिया से आपकी पहचान कराएगी।

इसकी जीवन जीने की नई व सहज-सरल पद्धति से आप सीखेंगे–

* अपनी वास्तविक क्षमता को जाग्रत् करके संसार में सफलता के शिखर को कैसे छुएँ?

* अपने मन पर नियंत्रण करके अंतरात्मा का पोषण कैसे करें?

* भय को मुक्ति में और पीड़ा को विवेक में कैसे परिणत करें?

* सच्चे प्यार के साथ सुंदर संबंध बनाने के सरल उपाय।

* अपने जीवन में रहस्य, रोमांच, उमंग फिर से भरने के उपाय।

* अपने कैरियर में सफलता व जीवन में सुख-समृद्धि लाने के साधन।

रॉबिन शर्मा नेतृत्व-कौशल पर विश्व के प्रमुख विचारकों में से एक हैं। उन्होंने अनेक विश्वप्रसिद्ध बेस्टसेलर पुस्तकों ‘द मॉन्क हू सोल्ड हिज फरारी’ ‘फैमिली विज्डम फ्रॉम द मॉन्क हू सोल्ड हिज फरारी’ तथा ‘विगिन विद इन’ का लेखन किया है। वह पूरे विश्व में नेतृव-गुण विकसित करने के लिए प्रमुख संस्थानों–माइक्रोसॉफ्ट, जनरल मोटर्स, आइ.बी.एम., फैडएक्स, नॉर्टल नेटवर्क्स आदि तथा प्रतिष्ठित उद्योग संस्थानों द्वारा आग्रहपूर्वक आमंत्रित किए जाते हैं। मास्टर ऑफ लॉ करने के बाद रॉबिन शर्मा ने कुछ दिन वकालत की। वे कर्मचारियों का सर्वांगीण विकास करके अपना सर्वोत्कृष्ट देने के लिए प्रेरित करनेवाले अनेक कार्यक्रम और सेवाएँ देनेवाली सुविख्यात प्रशिक्षण कंपनी लीडरशिप इंटरनेशनल (SLI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। यह कंपनी व्यक्तियों तथा कॉरपोरेट को विशेष प्रशिक्षण देकर उन्हें व्यक्तिगत उन्नति के लिए प्रेरित करती है।

1

नई शुरुआत


हममें से हर किसी के पास–चाहे वह कोई औसत व्यक्ति हो या फिर कोई यौद्धा हो–त्रिआयामी अवसर होते हैं, जो समय-समय पर हमारी आँखों के सामने दिखाई देते रहते हैं। एक सामान्य आदमी और एक योद्धा में अंतर यह होता है कि योद्धा इस प्रकार के अवसर से वाकिफ होता है और पूरी सतर्कता से उसकी प्रतीक्षा करता है, ताकि जैसे ही अवसर सामने आए, उसे पकड़ सके।

–कार्लोस कैस्टानेडा

वन में वैसी पीड़ा मुझे कभी नहीं हुई। मेरा दाहिना हाथ जोर-जोर से काँप रहा था और मेरी सफेद कमीज खून से लथपथ हो रही थी। सोमवार की सुबह थी वह, और मेरे मन में एक ही बात आ रही थी कि मेरे मरने के लिए यह कोई अच्छा दिन नहीं है।

मैं अपनी कार में निश्चल पड़ा चारों ओर फैली निस्तब्धता को निहार रहा था। जिस ट्रक ने मुझे कुचला था, उसमें कोई नहीं था। वहाँ एकत्रित लोगों की भीड़ यह दृश्य देखकर भयभीत थी। यातायात पूरी तरह बंद हो गया था। चारों ओर निस्तब्धता थी। मुझे सुनाई दे रही थी तो बस सड़क के किनारे-किनारे लगे पेड़ों की पत्तियों के हिलने से उत्पन्न होनेवाली आवाज।

तभी मेरे बगल में खड़े लोगों में से दो लोग भागते हुए मेरे पास आए और बताया कि सहायता के लिए एंबुलेंस आ रही है। उनमें से एक ने तो भावुक होकर मेरा हाथ पकड़ लिया और प्रार्थना करने लगा, ‘‘हे भगवान्! इसकी रक्षा करो, इसे बचा लो।’’ कुछ ही विवाह में एंबुलेंस और फायर ट्रक तथा पुलिस की गाड़ियाँ सायरन बजाती हुई घटना-स्थल पर पहुँच गईं। मेरे लिए जैसे सबकुछ मंद पड़ गया था। मन के भीतर सांत्वना का एक अजीब सा भाव उभरने लगा था, क्योंकि बचाव दल व्यवस्थित ढंग से अपने कार्य में लग गया था। मैं स्वयं को इन सब चीजों का एक प्रत्यक्षदर्शी जैसा महसूस कर रहा था।

उसके बाद क्या हुआ, मुझे कुछ याद नहीं है। जब मुझे होश आया तो मैंने स्वयं को अस्पताल के एक कमरे में पाया, जो ताजे नीबू और ब्लीच की तरह की भीनी खुशबू से महक रहा था। शरीर जगह-जगह पट्टियों से ढका था और दोनों टाँगें साँचों में थीं। मेरी दोनों बाँहें चोट-खरोंच से ढक-सी गई थीं।

एक खूबसूरत युवती नर्स ने मेरा अभिवादन किया, ‘‘मि. वैलेंटाइन, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि आप सचमुच जाग गए हैं। मैं डॉक्टर को बुलाती हूँ।’’ इतना कहकर उसने मेरे बिस्तर के बगल में रखें इंटरकॉम से जल्दी-जल्दी नंबर मिलाया।

जब उसने इंटरकॉम का रिसीवर रखा तो मैंने मद्धिम सी आवाज में कहा, ‘‘मुझे ‘जैक’ नाम से बुलाइए।’’ इस गंभीर स्थिति में भी मैं सामान्य व सहज दिखने की कोशिश कर रहा था।
‘‘वैसे, मैं कहाँ हूँ?’’ मैंने पूछा।

‘‘आप लेकवीड जनरल हॉस्पितल में हैं, जैक। यह सघन चिकित्सा वार्ड है। पिछले सप्ताह आप एक बड़ी दुर्घटना का शिकार हो गए थे। सच कहूँ तो आप बहुत भाग्यशाली हैं, जो जीवित बच गए।’’
‘‘मैं?’’ मैंने मासूमियत से पूछा।

‘‘ऊँ-हूँ।’’ नर्स ने मेरे बिस्तर के पास रखे चार्ट को देखते हुए कहा। वह चेहरे पर जबरदस्ती मुसकराहट लाने की कोशिश करते हुए कह रही थी, ‘‘एक ट्रक ने आपको कुचल दिया था और आप लंबी बेहोशी में चले गए थे। जो चिकित्सा सहायक आपको उठाकर यहाँ लाए थे, उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि आप जीवित बच गए हैं। खैर, अब सबकुछ ठीक है। बस आपके ये घाव भर जाएँ और आपकी टूटी हुई टाँगें सामान्य हो जाएँ। आप बिलकुल ठीक हो जाएँगे–मैंने कहा न, आप बहुत भाग्यशाली हैं।’’

‘भाग्यशाली’ शब्द को मैंने स्वयं से जोड़कर कभी नहीं देखा था; लेकिन आज मैं जिन परिस्थितियों में था, उनमें मैं नर्स की इस बात का अहसास कर सकता था। मैं जीवित था, यह मेरा सौभाग्य ही था।
‘‘इस कमरे में मैं अकेला क्यों हूँ?’’ इधर-उधर दृष्टि दौड़ाते हुए मैंने लगभग चीखते हुए पूछा। ‘‘मुझे किसी के साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी।’’

‘‘आपको केवल कुछ मिनट के लिए होश आया है, जैक, इसलिए आराम से कुछ देर साँस लीजिए। शांत हो जाइए। आपके डॉक्टर अभी आने वाले हैं। वह आपके लिए बहुत चिंतित थे।’’

उस दिन जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था और डॉक्टर व नर्स अपने-अपने स्तर पर जाँच-परीक्षण करते जा रहे थे तथा मेरा हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, वैसे-वैसे मुझे अहसास होने लगा था कि मैं कितनी गंभीर व भयानक दुर्घटना का शिकार हुआ था। ट्रक के चालक की दुर्घटना-स्थल पर ही मौत हो गई थी और मेरे डॉक्टर ने मेरे बारे में भी साफ-साफ बता दिया कि मेरे दोबारा होश में आने की उम्मीद नहीं थी। ‘दुर्घटना का ऐसा मामला पहले कभी नहीं देखा,’ उसने कहा था।

लेकिन मेरे अंतर्मन को मालूम था कि यह सबकुछ एक मकसद से हुआ है। किसी कारण या मकसद के बिना कुछ भी नहीं होता और जीवन में कुछ भी दुर्घटनावश नहीं होता–मैं जानता हूँ कि आप ऐसी बातें पहले सुन चुके हैं। लेकिन मैंने स्वयं देखा है कि हमारी यह आश्चर्यजनक दुनिया बहुत व्यवस्थित और विवेकपूर्ण तरीके से चलती है और यह दुनिया सचमुच बहुत सुंदर है। यह दुनिया चाहती है कि हम शानदार जीवन जिएँ, खुश रहें और जीवन में जीत व सफलता प्राप्त करें।

मेरे अंतर्मन से एक आवाज आ रही थी, जिसका आभास पहली बार मुझे अस्पताल के कमरे में हुआ था और जो मुश्किल क्षणों में मुझे ढाढ़स बँधा रही थी–जो मुझे बता रही थी कि कोई बड़ी बात होने वाली है और आनेवाले दिनों-सप्ताहों में जिन अनुभवों से मैं गुजरने वाला हूँ, उनसे न केवल मेरे स्वयं के जीवन में एक क्रांति आवाज मुझे बता रही थी कि मेरे जीवन का सर्वोत्तम क्षण आना अभी शेष है।

मैं समझता हूँ कि हममें से बहुत से लोग अपने अंतर्मन की इस बेआवाज पुकार को सुन नहीं पाते। हम सभी के हृदय के भीतर गहराई में एक स्थान होता है, जहाँ हमारे बड़े-से-बड़े सवालों का जवाब छिपा होता है। हममें से हर कोई अपनी सच्चाई अथवा यथार्थ को जानता है, और यह भी जानता है कि जीवन को साधारण से असाधारण बनाने के लिए क्या किया जाना चाहिए। परंतु हममें से ज्यादातर लोग विशुद्ध ज्ञान के इस प्राकृतिक स्रोत से संपर्क खो बैठे हैं, क्योंकि हमारे जीवन पर अफरा-तफरी और शोरगुल का साया बना रहता है। लेकिन मैंने देखा है कि जब कभी मैं अकेला, शांत हूँ, तब अंतर्मन से सत्य की यह आवाज सुनाई देने लगती है। जैसे-जैसे मैं इस आवाज की सच्चाई व मार्गदर्शन पर अपना विश्वास बढ़ाता गया, वैसे-वैसे मेरा जीवन भी भरा-पूरा होता गया।

उस समय रात के साढ़े नौ बजे थे, जब एक अर्दली एक अन्य मरीज को मेरे कमरे में लेकर आया। इस प्रकार अब मुझे साथ मिल गया था। मुझे बहुत सांत्वना मिल रही थी। अपने नए साथी को एक झलक देखने के लिए मैंने अपना सिर ऊपर उठा दिया। एक वृद्ध व्यक्ति था वह। उम्र लगभग 75 वर्ष रही होगी। उसके बाल सफेद हो चुके थे, जो बड़े सलीके से पीछे की ओर सँवारे हुए थे। उसके चेहरे पर काले-काले से धब्बे दिखाई दे रहे थे, जिससे पता चलता था कि कई वर्षों तक वह खुली धूप में रहा था। उसका कृशकाय शरीर देखकर ही मैं समझ गया कि यह आदमी बहुत बीमार है। उसे साँस लेने में भी दिक्कत हो रही थी। मैंने यह भी गौर किया कि उसे कहीं पीड़ा हो रही थी–अर्दली जब उसे नए बिस्तर पर लिटा रहा था, तब उसने आँखें बंद कर ली थीं और वह धीरे से कराहने लगा था।

लगभग दस मिनट बाद उसने धीरे से आँखें खोलीं। मैं मंत्रमुग्ध था। उसकी नीली-नीली आँखें चमक रही थीं और उनमे एक विचित्र सी आभा प्रकट हो रही थी, जिसने मेरा रोम-रोम हिला दिया था। मैं तुरंत समझ गया कि मेरे सामने लेटा यह आदमी कोई साधारण पुरुष नहीं है। इसके पार एक गूढ़ ज्ञान है, जो भौतिकता के पीछे भाग रहे इस संसार में अत्यंत दुर्लभ है। मुझे लगने लगा कि मैं एक गुरु के सम्मुख हूँ।

‘‘गुड ईवनिंग।’’ उसने बड़े ही गंभीर और गौरवपूर्ण भाव से कहा। ‘‘लगता है, हम कुछ समय के लिए यहाँ साथ-साथ रहेंगे।’’
‘‘जी, एक शुक्रवार की रात बिताने के लिए यह कोई सबसे अच्छा स्थान तो नहीं है, या है?’’ चेहरे पर गर्मजोशी से भरी मुसकान के साथ मैंने उत्तर दिया।

‘‘मेरा नाम जैक है।’’ अभिवादन-स्वरूप अपना हाथ उठाते हुए मैंने कहा। ‘‘जैक वैलेंटाइन। एक सप्ताह पहले मैं एक गंभीर कार दुर्घटना का शिकार हो गया और अब कुछ समय तक मुझे इस बिस्तर पर पड़े रहना होगा। दिन भर मैं यहाँ अकेला रहा हूँ, अब आपका साथ पाकर मैं खुश हूँ।’’

‘‘तुमसे मिलकर मुखे भी बहुत अच्छा लगा, जैक। मेरा नाम कैल है। पिछले सात माह से मैं इसी अस्पताल में हूँ–अलग-अलग वार्डों में। पता नहीं कितनी बार मेरी जाँच हो चुकी है, इलाज हो चुका है। अब तो मुझे लगता है कि मैं यहाँ से कभी निकल ही नहीं पाऊँगा।’’ आँखें कमरे की छत पर टिकाए हुए उसने बड़े शांत भाव से कहा था। क्षण भर रुककर उसने फिर बोलना शुरू किया, ‘‘शुरू में पेट दर्द के इलाज के लिए यहाँ आया था, जिसका कारण मैं खाने-पीने में हुई कोई कमी या असावधानी समझ रहा था। छह दिन बाद चिकित्सकों ने मेरा रसायनोपचार (कीमोथेरैपी) शुरू कर दिया।’’
‘‘कैंसर?’’ यथासंभव संवेदनशीलता प्रदर्शित करते हुए मैंने पूछा।

‘‘हाँ। जब चिकित्सकों को इसका पता चला, तब तक यह मेरे पूरे शरीर में फैल चुका था। फेफड़ों, आँत और अब तो सिर तक भी फैल गया है।’’ अपना दाहिना हाथ बालों पर फेरते हुए उसने बताया। सोचने की मुद्रा में उसने आगे बोलना शुरू किया, ‘‘दूसरे बहुत से लोगों की अपेक्षा मैंने एक शानदार जीवन जिया है। बहुत गरीबों में मेरी माँ ने मुझे पाला था–सच, बहुत अच्छी महिला थीं वह।’’
‘‘मेरी माँ की तरह’’ मैं बीच में बोल पड़ा।

‘‘मैं रोज अपनी माँ के बारे सोचता हूँ।’’ कैल ने आगे कहा, ‘‘सहृदय व संवेदनशील होने के साथ-साथ वह फौलाद की तरह मजबूत भी थीं। जितना विश्वास वह मुझ पर करती थीं, उतना विश्वास मुझ पर अब तक किसी ने नहीं किया होगा। वह हमेशा मुझे बड़े-बड़े सपने सँजोने और ऊँचे-ऊँचे लक्ष्य के लिए प्रोत्साहित करती थीं। उनका प्रेम निस्स्वार्थ था और यही सच्चा प्रेम होता है, जैक। मुझे विक्टर ह्मूगो (Victor Hugo) के ये शब्द याद आते हैं, ‘जीवन की सबसे बड़ी खुशी इस विश्वास से आती है कि कोई मुझे प्यार करता है।’ और मुझे उस असाधारण महिला के प्रेम का अहसास हुआ था। मैं अपनी कहानी तुम्हें बता रहा हूँ, तुम्हें कोई आपत्ति तो नहीं?’’
‘‘नहीं, बिलकुल नहीं।’’ मैंने झट से उत्तर दिया। ‘‘मेरी दिलचस्पी बढ़ रही है।’’

‘‘अच्छा, तो मेरा बचपन साधारण किंतु खुशियों से भरा रहा था। गरमियों के दिन स्वीमिंग पूल में तैराकी का आनंद लेते हुए तथा सर्दियों में दहकती आग के पास बैठकर कहानियाँ सुनते हुए और अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ते हुए मैंने बचपन बिताया है। मेरी माँ ने ही मेरे मन में पुस्तकों के प्रति लगाव पैदा किया था।’’

‘‘मुझे भी पुस्तकों से लगाव है।’’ मैं बोल पड़ा।
‘‘स्कूल जाना तो मुझे उतना अच्छा नहीं लगता था, लेकिन अपनी पुस्तकें मैं बहुत सँभालकर रखता था।’’
‘‘महान् विचारक जुदाह इब्न-तिब्बोन ने कहा था–‘पुस्तकों को अपना साथी बना लो। (तब देखो) तुम्हारी अलमारियाँ और केस तुम्हारे लिए सुखदायी बाग-बगीचे की तरह हो जाएँगे।’ मैं बहुत कुछ ऐसा ही था।’’

‘‘खूब कहा, कैल।’’
उसने आगे कहा, ‘‘स्कूल जाना तो मुझे उबाऊ लगता था, लेकिन पुस्तकें मेरे लिए प्रेरणा और आनंद का स्रोत थीं। माँ की यह बात मुझे हमेशा याद रहेगी कि किसी पुस्तक में पढ़ी गई एक ही बात तुम्हारा पूरा जीवन बदलकर रख सकती है। लेकिन जैसा वह कहा करती थीं कि हमें पहले से कुछ पता नहीं होता कि वह बात किस पुस्तक में है, जो हमारे जीवन को रूपांतरित करके उसे प्रबोध की ओर ले जाने की संभाव्यता रखती है। वह कहती थीं कि तुम्हारा काम है उस पुस्तक की खोज करना और जब वह पुस्तक मिल जाए तो उसमें लिखी बात को अपने जीवन में उतारना, ताकि तुम अपने जीवन को सार्थक रूपांतरण की ओर ले जा सको। जैक, चूँकि तुम्हें भी पढ़ने का शौक है, इसलिए अब मैं तुम्हें अध्ययन की एक और शक्ति के बारे में बताऊँगा।’’
‘‘बिलकुल बताइए।’’

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