कहानी संग्रह >> जब उजाला हुआ जब उजाला हुआसोमनाथ जुत्शी
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जब उजाला हुआ
जब उजाला हुआ साहित्य अकादेमी द्वारा पुरस्कृत कश्मीरी कहानी-संग्रह गाश का हिन्दी अनुवाद है। संग्रह की कहानियाँ समकालीन जीवन के महत्त्वपूर्ण मुद्दों और सार्वभौम मानव नियति के गंभीर पक्षों का निर्वहन बड़ी कुशलता से करती हैं। अपनी प्रभावपूर्ण आख्यान क्षमता, कथा-रचना एवं चरित्र-चित्रण, मानवीय स्थितियों की गहरी अंतर्दृष्टि और पाठकों को बौद्धिक एवं सौंदर्यपरक दृष्टि से आकर्षित कर पाने की अपनी शक्ति के कारण यह कृति कश्मीरी में लिखित भारतीय कथा साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण योगदान मानी गई है।
सोमनाथ जुत्शी का जन्म रघुनाथ मंदिर, हब्बा कदल, श्रीनगर में हुआ। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य और उर्दू में बी.ए.ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। वे प्रशासनिक सेवा में रहे और जम्मू कश्मीर सरकार के सचिव पद से सेवानिवृत हुए। उन्होंने 15 वर्ष की वय में ही लेखन शुरु कर दिया था। 20 वर्ष की वय में अंजुमन-ए-अरब-ज़ौक के सदस्य बने, जहाँ वे समकालीन लेखकों के निकट संपर्क में आए। 1945 में जुत्शी प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव नियुक्त हुए। 1948 में जुत्शी ने पहली कश्मीरी कहानी येली फूल गाश लिखी। वे पहली कश्मीरी पत्रिका कोंग पोश के संपादक भी रहे। उन्होंने 1949 में रेडियो नाटक और रंग नाटक लिखने शुरु किए। कश्मीरी में उनके बीस से अधिक नाटक प्रकाशित हैं। उन्होंने कई उर्दू कहानियाँ और नाटक भी लिखें हैं। उनकी कहानियों का एकमात्र संग्रह है येली फूल गाश। उन्होंने इब्सन के नाटक द वाइल्ड डक, गोगोल के इंस्पेक्टर जनरल और काफ़्का के उपन्यास द ट्रायल का कश्मीरी अनुवाद किया। इंस्पेक्टर जनरल के अनुवाद के लिए उन्हें 1976 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और येली फूल गाश के लिए 2003 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस पुस्तक के अनुवादक गौरीशंकर रैणा कश्मीरी-हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, अनुवादक और फ़िल्मकार हैं। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय से पुरस्कार प्राप्त रैणा ने इन कहानियों का सहज-सरल एवं प्रभावपूर्ण अनुवाद किया है, जिससे पाठकों को मूल का-सा आस्वाद प्राप्त होता है।
सोमनाथ जुत्शी का जन्म रघुनाथ मंदिर, हब्बा कदल, श्रीनगर में हुआ। उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य और उर्दू में बी.ए.ऑनर्स की उपाधि प्राप्त की। वे प्रशासनिक सेवा में रहे और जम्मू कश्मीर सरकार के सचिव पद से सेवानिवृत हुए। उन्होंने 15 वर्ष की वय में ही लेखन शुरु कर दिया था। 20 वर्ष की वय में अंजुमन-ए-अरब-ज़ौक के सदस्य बने, जहाँ वे समकालीन लेखकों के निकट संपर्क में आए। 1945 में जुत्शी प्रगतिशील लेखक संघ के सचिव नियुक्त हुए। 1948 में जुत्शी ने पहली कश्मीरी कहानी येली फूल गाश लिखी। वे पहली कश्मीरी पत्रिका कोंग पोश के संपादक भी रहे। उन्होंने 1949 में रेडियो नाटक और रंग नाटक लिखने शुरु किए। कश्मीरी में उनके बीस से अधिक नाटक प्रकाशित हैं। उन्होंने कई उर्दू कहानियाँ और नाटक भी लिखें हैं। उनकी कहानियों का एकमात्र संग्रह है येली फूल गाश। उन्होंने इब्सन के नाटक द वाइल्ड डक, गोगोल के इंस्पेक्टर जनरल और काफ़्का के उपन्यास द ट्रायल का कश्मीरी अनुवाद किया। इंस्पेक्टर जनरल के अनुवाद के लिए उन्हें 1976 में सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार और येली फूल गाश के लिए 2003 के साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इस पुस्तक के अनुवादक गौरीशंकर रैणा कश्मीरी-हिन्दी के प्रतिष्ठित लेखक, अनुवादक और फ़िल्मकार हैं। केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय से पुरस्कार प्राप्त रैणा ने इन कहानियों का सहज-सरल एवं प्रभावपूर्ण अनुवाद किया है, जिससे पाठकों को मूल का-सा आस्वाद प्राप्त होता है।
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