कविता संग्रह >> यह युग रावण है यह युग रावण हैसुदर्शन प्रियदर्शिनी
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एक प्रवासी मन का साँस्कृतिक बोध कविताओं के रूप में...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
अंतर्पष्ठ से
कवयित्री ने अपने नये कविता-संग्रह का नाम `यह युग रावण है` रखा है। उसने उसके दो शब्दों में लिखा है कि रावण युग आदि काल से चल रहा है और उसकी यह यात्रा अभी जारी है। इसने अपने कई मुखों से अलग-अलग साम्राज्य बनाया हुआ है और हम सभी मनसा-वाचा-कर्मणा इसे बढ़ा रहे हैं। हम कभी सोचते हैं कि शायद रावण युग समाप्त हो जायेगा, परन्तु वामन के तीन लोकों की तरह इसे अपनी परिधि का विस्तार कर लिया है और अब आज के धनवन्तरियों से इसका उपचार सम्भव नहीं है।...
कवयित्री की यह विशेषता रही है कि वह अपनी काव्य-सृष्टि में राम, सीता, जगदम्बा, काली, वामन, प्रह्लाद, कैकेयी, रावण, मन्दोदरी आदि हिन्दू मिथक पात्रों का प्रयोग करती है और कविताओं को अर्थवान बनाती है। यह एक प्रवासी मन का सांस्कृतिक बोध है जो कई कविताओं में दिखाई देता है। इस प्रकार ये भारतीय पुरा-प्रतीक की कवयित्री की विदेशी अनुभूतियों को और भी सटीक एवं सार्थक बनाती हैं और भारतीय पाठक उन्हें सरलता से हृदयंग कर लेता है।
इस संग्रह की छोटी-छोटी कविताएँ भी लघुकाय होने पर भी जीवन के मार्मिक सन्दर्भों और विसंगतियों को बड़ी सहजता के साथ अभिव्यक्त करती हैं जो इस परम्परागत सत्य को सिद्ध करती हैं कि लघुता में भी गम्भीर घाव करने की क्षमता होती है। कवयित्री ने इस शैली को अपनाया है और इसमें सिद्धहस्तता प्राप्त की है। इस प्रकार यह कविता-संग्रह निश्छल सम्वेदनाओं की अभिव्यक्त तथा काव्य शैली के कारण कविता के पाठकों के मन में सम्मानपूर्ण स्थान बनाएगा। हिन्दी प्रवासी साहित्य में सुदर्शन प्रियदर्शिनी अपनी पहचान बना चुकी हैं और मुझे इस काव्य संग्रह से आशा है कि उनकी यह पहचान और भी पुष्ट और स्थायी होगी।
कवयित्री की यह विशेषता रही है कि वह अपनी काव्य-सृष्टि में राम, सीता, जगदम्बा, काली, वामन, प्रह्लाद, कैकेयी, रावण, मन्दोदरी आदि हिन्दू मिथक पात्रों का प्रयोग करती है और कविताओं को अर्थवान बनाती है। यह एक प्रवासी मन का सांस्कृतिक बोध है जो कई कविताओं में दिखाई देता है। इस प्रकार ये भारतीय पुरा-प्रतीक की कवयित्री की विदेशी अनुभूतियों को और भी सटीक एवं सार्थक बनाती हैं और भारतीय पाठक उन्हें सरलता से हृदयंग कर लेता है।
इस संग्रह की छोटी-छोटी कविताएँ भी लघुकाय होने पर भी जीवन के मार्मिक सन्दर्भों और विसंगतियों को बड़ी सहजता के साथ अभिव्यक्त करती हैं जो इस परम्परागत सत्य को सिद्ध करती हैं कि लघुता में भी गम्भीर घाव करने की क्षमता होती है। कवयित्री ने इस शैली को अपनाया है और इसमें सिद्धहस्तता प्राप्त की है। इस प्रकार यह कविता-संग्रह निश्छल सम्वेदनाओं की अभिव्यक्त तथा काव्य शैली के कारण कविता के पाठकों के मन में सम्मानपूर्ण स्थान बनाएगा। हिन्दी प्रवासी साहित्य में सुदर्शन प्रियदर्शिनी अपनी पहचान बना चुकी हैं और मुझे इस काव्य संग्रह से आशा है कि उनकी यह पहचान और भी पुष्ट और स्थायी होगी।
कमल किशोर गोयनका
(पुस्तक की भूमिका से)
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