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अजेय कर्ण

विष्णु विराट चतुर्वेदी

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :37
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8326
आईएसबीएन :0

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आई पैड संस्करण


वर्तमान जीवन के संकुल मनोंभावों के घात-प्रतिघातों की अभिव्यक्ति छोटे गीतों एवं लघुकविताओं में हुई है, तो संघर्षपूर्ण मनःस्थितियों की मिथकीय अभिव्यक्ति प्रायः लम्बी कविताओं में। पिछले दो दशकों में विचार पूर्ण लम्बी कविताओं की संख्या उपेक्षणीय नहीं है।

वेद-उपनिषद, रामायण-महाभारत तथा विविध पुराणों के प्रख्यात आख्यानों को एवं पात्रों को निमित्त बनाकर आधुनिक संकुल मनःस्थितियों को व्यक्त करने की सहज प्रवृत्ति आधुनिक कवियों में दिनोंदिन विकसित होती जा रही है। राम, युधिष्ठिर, कर्ण, पार्थ, द्रौपदी, भीष्म, अहल्या, उर्मिला आदि पात्रों को मिथकीय शिल्प प्रयुक्तियाँ भरी निराला, रामधारीसिंह दिनकर, नरेश मेहता, जगदीश गुप्त, धर्मवीर भारती आदि की दीर्घ-प्रदीर्घ अनेक कविताएँ हमारे सामने उजागर हुई हैं।

डॉ. विष्णुविराट कृत ‘‘एक रण वैचारिकी है शेष किंचित’’ नामक लम्बी कविता इस संदर्भ में विशेष उल्लेखनीय है। गुजरात के समकालीन हिन्दी रचनाओं में डॉ विष्णु विराट एक सशक्त हस्ताक्षर हैं, उपन्यास, कहानी, ललित एवं व्यंग्यपूर्ण निबन्धों के सर्जक के साथ-साथ एक सफल रंगमंचीय कवि के रूप में भी डॉ. विष्णु विराट ने यश अर्जित किया है। डॉ. विष्णु विराट कृत प्रस्तुत कविता का नायक है कुन्तीपुत्र कर्ण। अनेक प्रकार के सामाजिक विवादों एवं मानसिक संघर्षों को उजागर करने वाले एक महत्वपूर्ण काव्य नायक के रूप में कर्ण प्राचीनकाल से साहित्य में स्थान पाता रहा है।

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