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बोलने दो चीड़ को

श्रीनरेश मेहता

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :78
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8378
आईएसबीएन :0

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बोलने दो चीड़ को पुस्तक का आई पैड संस्करण



आज की कविता ने गत पाँच प्रकाशन-वर्षों में साहित्य में स्थान तथा सम्मान प्राप्त कर लिया है। प्रत्येक नयी अभिव्यक्ति को आरम्भ में विरोध सहना ही होता है, लेकिन वर्चस्व वरेण्य बनकर ही रहता है। कल तक, आज की कविता उपेक्षिता थी लेकिन आज स्वीकृता है। इसका कारण एकमात्र कारण इस काव्य की उपलब्धियाँ हैं, जो समग्र हैं। कल जब ज्वार और भी शान्त होगा तब अधिक गहराइयाँ लक्षित हो सकेंगी, व्यक्तिगत भी समष्टिगत भी। अस्तु-

अपने प्रथम संकलन ‘‘बनपाखी सुनो’’ के समय अनेक कविताएँ छोड़ देनी पड़ी थीं, उनमें से कुछ यहाँ संकलित हैं। ऐसा ऐतिहासिक कारणों से किया गया है। उस समय काव्य की स्थिति बड़ी संक्रान्तिपूर्ण थी। काफी देर बाद प्रमुख कवियों के संकलन निकलने शुरू हुए थे। स्वयं मेरा संग्रह ही बारह वर्षों के बाद निकल रहा था अतएव पुरानी कविताएँ छोड़ देनी पड़ी थीं। इस समय भी वैदिक तथा अन्य फुटकर कविताएँ नहीं जा रही हैं।

यद्यपि इस बीच अनेक बड़ी रचनाएँ लिखी गयी हैं और आशा है कि उनके शीघ्र प्रकाशित होने पर मेरे रचनाकार का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट होगा। साथ ही तभी आज की कविता की उपलब्धियों का भी व्यक्तिगत एवम् समष्टिगत परिपार्श्व तैयार हो सकेगा। फिर भी प्रस्तुत संग्रह द्वारा अधिक व्यापक परिचय मिलेगा, ऐसी आशा है।

संकलन की कविताएँ

  • चाहता मन
  • एक प्रयोग
  • दिनान्त की राजभेंट
  • विपथगा का भाव
  • हवा चली
  • ते यन्ति, ते यन्ति
  • कमल वन
  • कामना
  • एक मुक्तक
  • दर्द
  • जितने जल उतने ही संशय
  • माघ भूले
  • बोलने दो चीड़ को
  • दिन फिरे


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