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			 अतिरिक्त >> चकैया नीम चकैया नीमरवीन्द्र कालिया
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			 197 पाठक हैं  | 
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चकैया नीम पुस्तक का किंडल संस्करण
रवीन्द्र इस दौर के ऐसे रचनाकारों में से हैं जो रचना प्रक्रिया के संघर्ष में ही आगे आगे नहीं रहे, बल्कि जिन्होंने अपनी दिशा को खोजने के लिए लगातार प्रयोग किए और अपनी सीमाओं को पहचाना। रवीन्द्र की रचना लगातार संक्रमण के दौर में रही है और आज भी है, जबकि उनके अनेक समकालीन रचनाकारों में से अधिकांश या तो अपनी सीमाओं में घिर कर रह गये या फिर नितांत निष्क्रिय हो गये या अन्त में रहस्यवादी हो गये। 
कालिया के प्रसंग में यह संघर्ष यथार्थवाद की ओर मुड़ने की प्रक्रिया का संघर्ष है। इसमें कालिया न केवल विषय वस्तु के रूप विज्ञान में भी दिशा खोज रहे हैं, जिसका प्रथम फल यह हुआ है कि उनकी कहानियाँ पूर्ववर्ती लघुता को छोड़कर लम्बी होने लगी हैं।
कालिया के प्रसंग में यह संघर्ष यथार्थवाद की ओर मुड़ने की प्रक्रिया का संघर्ष है। इसमें कालिया न केवल विषय वस्तु के रूप विज्ञान में भी दिशा खोज रहे हैं, जिसका प्रथम फल यह हुआ है कि उनकी कहानियाँ पूर्ववर्ती लघुता को छोड़कर लम्बी होने लगी हैं।
						
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