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चक्रतीर्थ

अमृतलाल नागर

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :308
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8389
आईएसबीएन :0

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चक्रतीर्थ पुस्तक का किंडल संस्करण

Chakratrith a hindi Ebook by Amritlal Nagar - चक्रतीर्थ- अमृतलाल नागर



साहित्य आकादमी तथा नेहरु पुरस्कार द्वारा सम्मानित ‘अमृत और विष’ के लेखक श्री अमृतलाल नागर की एक और महान कृति कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक, असम से लेकर बेगाल तक, जहाँ भी श्रद्धालु व्यक्ति किसी व्रत, उपवास या पुराण सुनने के लिए जुटते हैं। वहाँ कथाओं के प्रसंग में अवध के सीतापुर जिले आबाद तपोवन नैमिषारण्य का नाम अवश्य ही सुना जाता है। कहते हैं वहाँ चौरासी हजार ऋषियों कते सम्मेलन में सूत जो ने लगातार बारह वर्षों तक अनेकों पुराण और महाभारत की कथायें बाँची थीं। बूढ़े-बूढ़ियों और पुण्य मात्र देने वाली इन कथाओं को पहली बार सही ऐतिहासिक चेतना से जड़ने वाला एक सांस्कृतिक उपन्यास-
उपन्यास का पहला पृष्ठ पढ़ना आरम्भ कीजिये और फिर अंतिम पृष्ठ पढ़े बिना आप उसे छोड़ नहीं सकेंगे। कुषाणों और सूनानियों की दासता से त्रस्तौर विखण्डित भारत में पुनः संगठित होकर एक सशक्त और समृद्ध देश बनने का यह प्रेरणादायक रंगारंग भारतीय छबियों से भरपूर, यह रोचक राष्ट्र-कथा पढ़कर आपको आज के भारत की समस्याओं पर गहराई ने विचार करने की स्फूर्ति मिलेगी।
यह इतिहास कथा एक भावनात्मक आन्दोलन से जुड़ी है जिसने पहली बार भारत की सभी जातियों के उत्तम विचार और संस्कार लेकर तथा ब्राह्मण और श्रमण धर्म का उचित समन्वय करके समूचे भारत को वह एकता प्रदान की जिसके सही और गलत प्रभावों से यह देश आज तक बँधा हुआ है।
पुरानी दुनिया में भारत के महात्त्वपूर्ण स्थान और विश्वव्यापी मानव संस्कृति की रसभीनी छटा छहराने वाला, भारतीय साहित्य में अपने रंग का अकेला यह उपन्यास आपके हाथों में है।



‘एकदा नैमिषारण्ये’ और ‘चक्रतीर्थ’ के कथानक एवं सामाजिक संदर्भ देश-काल की दृष्टि से लगभग एक से हैं। अमृतलाल नागर ने ‘चक्रतीर्थ’ के सृजन में जैसे कौशल का प्रदर्शन किया है। उससे हिन्दी उपन्यास की श्रीवृद्धि हुई है। वैसे भी नागर जी की सामाजिक कथाकृतियों के समानान्तर ऐतिहासिक और पौराणिक कथानकों को औपन्यासिक रूप देने में जो सफलताएँ प्राप्त हुईं; वे हिन्दी उपन्यास में विरल हैं। कहते हैं, समकालीन जीवन संदर्भों में गहराई तक जुड़ा हुआ कथाकार ही अपनी परम्परा के सूत्रों में गुथे कथा-संदर्भों पर श्रेष्ठ औपन्यासिक रचनाएँ दे सकता है। नागर जी के कथा-शिल्प में इसके प्रमाण साक्षात लक्षित किये जा सकते हैं। स्थितियों के वर्णन और कथोपकथन की बारीकियों पर उनका सम्पूर्ण अधिकार प्राचीनतम कथा-वस्तु को जीवित और प्राणवान बना देता है। नैमिषारण्य का इतिहास वे इस तरह बताते हैं—यह प्राचीनतम ऋषी स्थली है। अप्सरा उर्वशी के प्रियतम ऐलपुत्र पुरूरबक्ष ने अपनी प्रबल धनतृष्णा के कारण यहाँ के ऋषियों को एक बार बहुत सताया। तब ऋषियों ने इन्द्र से प्रार्थना की। इन्द्र ने अपने वज्र से उस धनलोभी आततायी को यहीं माप कर ऋषियों तथा अयुजाति के समस्त प्रजाजनों का परम कल्याण किया था। फिर एक बार यहीं पर ऋषी गौरमुख ने असुरों का संहार किया था। अयोध्यापति चक्रवर्ती महाराज श्री रामचन्द्र ने यहीं अश्वमेध किया; यहीं अपने पुत्रों लव और कुश से महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण सुनी। भृगुकुल भूषण महात्मा शुनक अपने ऋषियों के साथ प्रयाग से आकर यहीं बसे और उनके तथा उनके वंशजों के समय में यहां अनेक आरण्यक रचे गये। पाण्डव कुल-भूषण महाराज अधिसीम कृष्ण ने यहीं पर भागवतों का प्रथम महासत्र आयोजित किया था।

चक्रतीर्थ की सम्पूर्ण कला-योजना को उन्होंने समकालीनता के आधार दृष्टि से ऐसा रूपाकार प्रदान किया है कि उपन्यास एक बार शुरू करने पर पाठक उसे बीच में छोड़ नहीं सकता। ऐसा लगता है जैसे लेखक स्वयं उस काल विशेष का प्रत्यक्ष दर्शी है अथवा वह काल सिमट कर लेखक के अनुभव संसार में समा गया है।

इस महत्त्वपूर्ण कृति के प्रकाशन से लोकभारती गौरवान्वित हुई है। आशा है हिन्दी-संसार इस कालजयी उपन्यास का स्वागत करेगा।


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