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देखना एक दिन

श्रीनरेश मेहता

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :100
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8428
आईएसबीएन :0

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देखना एक दिन पुस्तक का आई पैड संस्करण

Dekhna Ek Din - A Hindi Ebook By Naresh Mehta

आई पैड संस्करण


‘उत्सवा’, ‘अरण्या’ आदि काव्य-संकलनों तथा ‘महाप्रस्थान’, ‘प्रवाद-पर्व’ आदि प्रबन्ध-काव्यों की भूमिकाओं में तथा अन्यत्र भी काव्य सम्बन्धी अपनी मान्यताओं की विस्तार से चर्चा करता रहा हूँ। वस्तुतः मेरे कवि की यही आधारभूत सृजनात्मक भूमि और मानसिकता है। इधर के काव्य-संकलनों–‘आखिर समुद्र से तात्पर्य’, ‘पिछले दिनों नंगे पैरों’ या यह संकलन ‘देखना, एक दिन’ यदि पूर्व संकलनों से अलग लगते हैं, जो कि कुछ तो लगते ही हैं, तो यह स्वरूपगत या बानकगत ही ज्यादा होगा। मैं किसी उर्ध्व से नीचे आकर अब धरती से ज्यादा निकट हुआ हूँ या लग रहा हूँ, ऐसा मानना वास्तविक न होगा। वैसे इस भ्रम का कारण ‘अरण्या’ संग्रह की ‘अरण्यानी से वापसी’ नामक कविता से हो सकता है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैं पूर्व संकलनों के समय धरती पर नहीं था अथवा इधर के संकलनों में मैंने अपनी आधारभूत उर्ध्वता खोयी है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सृजनात्मक मात्र के लिए इन दोनों सम्पुट स्थितियों का होना अनिवार्यता है; हाँ, प्रश्न केवल प्राथमिकता का ही हुआ करता है। यह ठीक है कि ऐसी प्राथमिकता के कारण कुछ अन्तर अवश्य दिखने लगता है परन्तु उसे सर्वथा यथार्थ नहीं माना जाना चाहिए। निश्चित ही इधर के इन संकलनों की प्राथमिकता पूर्व संकलनों से भिन्न है परन्तु तात्त्विक काव्य-मानसिकता, जीवन दृष्टि आद्यन्त एक ही है। वैसे यह भी सच है कि इस प्रकार की प्राथमिकता के कारण कुछ तो अन्तर, गुणात्मक न भी सही लेकिन स्वरूपगत ही, आ तो जाता ही है, और कई बार लोगों की प्रियता-अप्रियता का यही कारण बन जाया करता है। चलिए, यह भी सही।
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