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गजलें और शायरी >> फ़ैज़

फ़ैज़

भट्टाचार्या

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2010
पृष्ठ :220
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 8439
आईएसबीएन :9788126718887

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फ़ैज़ की शाइरी एक ऐसा संगीत है जो मालूम तो होता है रोमानी, मगर असलन् इज्तिहादी है - अपने रोमानी तेवर में भी ख़ालिसन् इन्क़िलाबी।

Faiz (Battacharya)

‘‘फ़ैज़ की शाइरी ऐसे जिन्दा इशारों का पर्याय है जो दर्द की चीख़ और कराह को कसकर अन्दर ही अन्दर दबाए और छुपाए हुए हैं, मगर जो दरअस्ल दबाए दबते हैं न छुपाए छुपते।’’

‘‘फ़ैज़ की शाइरी एक ऐसा संगीत है जो मालूम तो होता है रोमानी, मगर असलन् इज्तिहादी है - अपने रोमानी तेवर में भी ख़ालिसन् इन्क़िलाबी। यानी संघर्षों में उनका जन्म हुआ है।’’

‘फ़ैज़’ के कलाम में वह नर्मी और मिठास है जो मन को मोह लेती है। जिस गहरी समझ, भावनागत निश्चलता और कलात्मकता से प्रेमानुभूतियों को उन्होंने सामाजिक समस्याओं के साथ मिलाकर पेश किया है, वह अपने-आप में अभूतपूर्व है। उनकी नज़्में उर्दू की बेहतरीन नज़्में हैं और नज़्म की सारी विशेषताएँ और भी निखर-सँवरकर उनकी ग़ज़लों में ढल गई हैं।

‘फ़ैज़’ मानवीय मूल्यों की गरिमा के महान नायक हैं। उनकी शाइरी में मानवीय सम्बन्धों की प्रेममय सहजता उजागर हुई है, जिसका लक्ष्य हर तरह के ज़ोर-जुल्म और शोषण-व्यवस्था का उन्मूलन है। उनके दावों और अमल में, कथनी और करनी में कहीं टकराव नहीं, उनके व्यक्तित्व की यह विशिष्टता उनके काव्य की शक्ति और विशिष्टता है। भारत और पाकिस्तान के साथ-साथ विश्व-भर में उनकी असाधारण लोकप्रयिता इसका एक ज्वलन्त प्रमाण है।


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