अतिरिक्त >> डूबते मस्तूल डूबते मस्तूलश्रीनरेश मेहता
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डूबते मस्तूल पुस्कत का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
चार विद्यार्थी गुरुकुल से विद्याध्ययन समाप्त कर अपने-अपने घर वापस जा रहे थे। विश्राम के लिए वे एक निर्जन वन में ठहरे। भोजन की तैयारी के लिए चारों ने काम बाँट लिया-एक ने स्थान साफ करने का, दूसरे ने जंगल से लकड़ियाँ बटोर लाने का और शेष दो ने निकटवर्ती ग्राम से सामग्री लाने का भार सम्हाला।
स्थान बुहारते विद्यार्थी को किसी जीव की एक हड्डी मिली। उसने अपनी विद्या परीक्षार्थ मंत्र द्वारा उस जीव की सारी हड्डियाँ उस स्थान पर एकत्र कर डालीं। लकड़ियाँ लेकर जब दूसरा विद्यार्थी लौटा तो हड्डियों का ढेर देखकर उसे आश्चर्य हुआ। जब प्रथम विद्यार्थी ने अपने मंत्रबल का प्रभाव दूसरे को बतलाया तो उस मेधावी ने कहा–मैं चाहूँ तो इन अस्थियों को आकार प्रदान कर सकता हूँ–और दूसरे की मंत्र–शक्ति ने उन अस्थियों को रूप दे दिया।
शेष दोनों विद्यार्थी जब हाट करके लौटे तो इन दोनों की मंत्र-शक्तियों को देखकर उनका अपना स्वत्व जागा। तीसरा बोला–मैं चाहूँ तो इस आकार को मांस-मज्जा प्रदान कर सकता हूँ–और-देखते-देखते वह अस्थि ढेर एक सिंह का शव बन गया। चौथे ने अपनी विद्या के घमण्ड में कहा–बस? मैं इस मृतक को प्राण प्रदान कर सकता हूँ–और वह मृतक सिंह मंत्रबल के प्रभाव से जी उठा।
और कथा कहती है कि अंत में वह सिंह उन चारों ‘मेधावियों’ को खा गया।
यह तो हुई कथा, इस से आप तात्पर्य क्या निकालेंगे इससे मुझे प्रयोजन नहीं। मैंने कथा कही, निष्कर्ष आप निकालें।
एक शब्द भाषा के बारे में कह दूँ कि उत्तरार्द्ध में ‘सप्तमी’ के प्रयोग किये गये हैं। संस्कृतप्रियता के कारण नहीं बल्कि बोलियों में सप्तमी, नाम-धातु आदि होते हैं और हिन्दी में अनेक प्रभावों के कारण यह प्रक्रिया लुप्त-सी हो गयी है। अवधी में जैसे–अवधेस के द्वारे सकारे गयी—या मालवों में, ‘शनीवारे राते’ आदि के रूप मिलते हैं इसलिए हिन्दी, बोलियों के अधिक निकट इसी प्रकार के प्रयोगों द्वारा जा सकती है। यह न माना जाए कि चौंका देने के लिए ऐसा कुछ किया गया है
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