| अतिरिक्त >> गीता पार्टी कामरेड गीता पार्टी कामरेडयशपाल
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गीता पार्टी कामरेड पुस्तक का आई पैड संस्करण...
आई पैड संस्करण
किसी भी समय के चित्र में उस समय की बात होगी ही। बन्दर के चित्र में पूंछ न हो और हाथी के चित्र में सूड़ न हो तो वह चित्र कैसा? ऐसे ही आज के संघर्षकाल के चित्र में संघर्ष की बात होगी और इस संघर्ष के पात्र भी उसमें होंगे। यहां तक शायद किसी आलोचक को आपत्ति न हो। आपत्ति होती है आलोचक को प्रचार की गन्ध आने पर।
प्रश्न है, बन्दर को बन्दर, हाथी को हाथी और गधे को गधा कहना प्रचार है या नहीं? बन्दर के लिये यह कहना कि वह चंचल और धूर्त होता है, हाथी के लिए कहना कि भारी और विशाल होता है और गधे को बेसमझ कहना प्रचार है या नहीं?
कुछ लोग इसे प्रचार कहेंगे परन्तु यदि वास्तविक बात न कही जाय तो क्या बन्दर, हाथी और गधे का वास्तविक परिचय या वर्णन हो सकेगा? जिन लोगों की कहानी लेखक लिखता है, उनके विचारों और व्यवहार का वर्णन करना उनका वास्तविक परिचय है, प्रचार नहीं। इसके बिना चित्र पूरा न होगा और चित्र भी यथा-सम्भव एकांगी न हो तभी अच्छा है वर्णन और चित्रण यदि प्रचार है तो संसार का सम्पूर्ण साहित्य ही प्रचार है और आज का लेखक उससे कैसे बच सकता है।
पक्षपात की सफाई दे सकना कठिन है। अपने चारों ओर कुछ हमें ठीक और अच्छा जंचता है, और कुछ गलत और बुरा। जो हमें ठीक जंचता है, उसे ठीक या अच्छा कैसे न कहा जाय! जो गलत जंचता है, उसे गलत या बुरा कैसे न कहा जाय! न कहा जाय तो ठीक का अनुमोदन और गलत के सुधार का प्रयत्न कैसे हो!
परिस्थितियों के इन सभी संघर्षों की एक झलक ‘पार्टी कामरेड’ में है द्वेष की भावना नहीं। जैसा बन पड़ा वैसा दर्पण है। देखिये तो और न देखिये तो...और देख कर जैसा जंचे!
इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
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