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हँसने वाली लड़कियां

लक्ष्मीनारायण लाल

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2011
पृष्ठ :70
मुखपृष्ठ :
पुस्तक क्रमांक : 8467
आईएसबीएन :0

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हँसने वाली लड़कियां पुस्तक का किंडल संस्करण...

Hansne Wali Ladkiyan - A Hindi EBook By Laxminarayan Lal

किंडल संस्करण


प्रहसन के प्रारंभ में जहाँ एक ओर ड्रामा और थियेटर के कुप्रभाव से हिन्दी रंगभूमि की दुर्दशा की ओर इशारा किया है वहीं दूसरी ओर हिन्दी रंगपीठ पर रूप, रस, ग्रंथ, स्पर्श, नृत्य और गायन की जैसे वर्षा हो रही है।

इस संदर्भ में यह द्रष्टव्य है कि अपने परिवेश को उसकी सम्पूर्णता में लेकर चलना लाल के नाट्य लेखन की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। जहाँ एक ओर उन्होंने महानगर और ग्राम को जोड़ कर मध्यवर्गीय समाज के लोगों की प्रकृति के अवलोकन को प्रहसन की पूर्व-पीठिका का आधार बनाया है, वहीं दूसरी ओर प्रहसन के पूर्वरंग से उभरने वाले स्वर और संगीत की पृष्ठभूमि में देश काल वातावरण को भी अत्यंत सहजता से उभारा है। भारतीय लोक की महानगरी जीवन से परिचित करवाकर झूठे संरक्षण का प्रलोभन देकर उसके मूल से उखाड़ने के लिए भारतीय राजनीति दोषी है। उखड़ने के इसी अहसास की संवेदना बायस्कोप दिखाने वाले स्त्री-पुरुष के स्वरों में है, जिन्हें राजधानी दिल्ली में बड़े-बड़े प्रलोभन देकर कला प्रदर्शन हेतु बुलाया तो गया, परन्तु बाजारू मतलब पूरा होते ही उन्हें असहाय अवस्था में छोड़ दिया गया। यहाँ तात्पर्य हमारे ऐतिहासिक संदर्भों से भी है, जहाँ समाज को राजनीति के खिलाफ सांस्कृतिक स्तर पर अपने प्रतीकों की तलाश, प्रबुद्ध सामाजिकों द्वारा की जानी अभी शेष है। ऊपरी सतह पर ही जीवन यापन की यह प्रक्रिया जो हमें विदेशी राज व्यवस्था से विरासत में मिली है, हमें उसका प्रहसन बनाना है और सत्य का अनुसंधान करना है।
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