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			 अतिरिक्त >> कर्म का लेख कर्म का लेखअशोक प्रियदर्शी
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			 17 पाठक हैं  | 
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कर्म का लेख पुस्तक का आई पैड संस्करण...
आई पैड संस्करण
सच पूछिये तो अपनी कहानियों के अलावा मेरे पास कहने को कुछ है ही नहीं। अगर इस संग्रह की उन्नीस कहानियाँ कुछ नहीं कह पायीं तो इन कुछ पंक्तियों में मैं क्या कह लूँगा? और मुझे यह पाठकों की समझ के साथ बेइन्साफी दीखती है कि कहानियों के सम्बन्ध में कुछ कहूँ। मुझे आपकी समझ पर भरोसा है। यदि इन कहानियों में कहने लायक कुछ दीखे तो आप ही कहें।
लगभग सन्, ५८ से कहानियाँ लिख रहा हूँ, और मेरी कहानियों का यह पहला संकलन है! क्या इस संग्रह के नाम से इस स्थिति की भी कुछ व्यंजना होती है! यदि गुरुवर डॉ० दिनेश्वर प्रसाद की पहल और जयभारती प्रकाशन के स्वामी भाई जुग्गीलाल गुप्त जी का स्नेह न होता तो मेरी ये कहानियाँ अब भी असंकलित पड़ी होतीं। अब इनका असंकलित पड़ा रहना ही ठीक होता या इनका संकलित रूप में प्रकाशन ठीक हुआ, यह फैसला भी आप पर ही छोड़ता हूँ।
तो, अब मैं आपके और इस संग्रह की कहानियों के बीच से ओट हो जाऊँ; हालाँकि लेखक अपनी रचनाओं से अलग हो पाता भी कहाँ है!
इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
						
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