अतिरिक्त >> काव्य का वैष्णव व्यक्तित्व काव्य का वैष्णव व्यक्तित्वश्रीनरेश मेहता
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काव्य का वैष्णव व्यक्तित्व पुस्तक का किंडल संस्करण...
किंडल संस्करण
यह ग्रन्थ न धर्म का है, न दर्शन का। मेरा प्रयोजन काव्य के सम्बन्ध में कुछ चर्चा का रहा इसलिए काव्य के माध्यम से धर्म और दर्शन भी चर्चित हुए हैं। जहाँ तुलनात्मक धर्मदृष्टियों के प्रसंग आये हैं उनमें किसी भी धर्म की अवमानना करना मेरा उद्देश्य नहीं रहा क्योंकि अध्ययन आक्षेप नहीं होता। काव्य के बारे में निष्णात चर्चा कर सकने का भी मैं अपने को अधिकारी नहीं मानता। ऐसे महत्त्वपूर्ण कार्य तो आधिकारिक समीक्षक विद्वान और विचारक ही किया करते हैं और निश्चय ही मैं वैसा कुछ भी नहीं हूँ। गत तीस-पैंतीस वर्षों से काव्य में कुछ लिखते-पढ़ते रहने के कारण धर्म, परम्परा, संस्कार आदि के बारे में कुछ प्रश्न मन में उठते रहे लेकिन इन मूलभूत बातों के सन्दर्भ में अपनी अपात्रता तथा परिपार्श्वगत दबावों के कारण इनके बारे में कुछ लिखने-कहने में संकोच बना रहा परन्तु इधर ऐसा लगा कि न सही निष्णात, न सही विशद, लेकिन यदि कुछ कहा जाए तो सम्भव है कि काव्य के बारे में फिर कुछ विचार हो सके। वैसे मैं समकालीनता की बहुआयामी तेजस्विता से सर्वथा अवगत हूँ कि उसे यह विवेचन सन्दर्भच्युत या और भी कुछ लग सकता है। निवेदन है कि कोई भी रचना केवल समकालीन ही नहीं हुआ करती। अभी यह विश्वास मुझमें शेष है कि समकालीनता पूरी तरह अपनी आधारगत वानस्पतिक गन्ध को सर्वथा नहीं भूली है।
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