अतिरिक्त >> लोहगढ़ लोहगढ़हरनाम दास सहराई
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लोहगढ़ पुस्तक का किंडल संस्करण...
किंडल संस्करण
उस दिन गोदावरी मचल उठी थी, नदी ने भीषण तूफानी समुद्र का रूप ले लिया था, बल्कि उसने चण्डी रूप ही धारण किया था। शिव-मंदिर को ही वह मतवाली नदी निगल गई थी। कैसा हाहाकार! कैसा उत्पात!
वहीं गुरू गोविंदसिंह का केसरिया झण्डा लहराया था और वहीं साधकों, तपस्वियों की झोपड़ियों के बीच एक सुन्दरी मुस्कराई थी, वहीं मुगलों को करारी टक्कर का सामना करना पड़ा था, वहीं पाँच प्यारों ने जौहर दिखाया था...यह सब लोहगढ़ में हुआ था।
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