कविता संग्रह >> लावा लावाजावेद अख्तर
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जावेद अख्तर की नई कविताओं का संग्रह
Laava - a hindi book by - Javed Akhtar
कुछ बिछड़ने के भी तरीके हैं
खैर, जाने दो जो गया जैसे
थकन से चूर पास आया था इसके
गिरा सोते में मुझपर ये शजर क्यों
इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूँढ़ता फिरा उसको वो नगर-नगर तन्हा
आज वो भी बिछड़ गया हमसे
चलिए, ये किस्सा भी तमाम हुआ
ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा
ज़िंदगी ले रही है अंगड़ाई
खैर, जाने दो जो गया जैसे
थकन से चूर पास आया था इसके
गिरा सोते में मुझपर ये शजर क्यों
इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूँढ़ता फिरा उसको वो नगर-नगर तन्हा
आज वो भी बिछड़ गया हमसे
चलिए, ये किस्सा भी तमाम हुआ
ढलकी शानों से हर यक़ीं की क़बा
ज़िंदगी ले रही है अंगड़ाई
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