अतिरिक्त >> प्रेत शताब्दी प्रेत शताब्दीप्रभात कुमार भट्टाचार्य
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प्रेत शताब्दी पुस्तक का आई पैड संस्करण
आई पैड संस्करण
आम आदमी के संघर्ष का दूसरा पड़ाव हैं ‘प्रेत शताब्दी’, जिसमें एक द्वन्द हैं- एब्सर्ड और यथार्थ के बीच। पहला पडाव था ‘काठ-महल’। ‘प्रेत-शाताब्दी’ के पात्र भी कमावेश वे ही हैं जिनका ‘काठमहल’ के माध्यम से परिचय पहले ही मिल चुका है। ‘प्रेत शताब्दी’ का विकृतियों से भरा प्लैट-फार्म, उन पात्रों की अगली छलांग के लिये ज़मीन तैयार करता है जो सामान्य-जन की मुक्ति के लिये संघर्ष में अपनी भूमिका लगातार निर्वाह कर रहे हैं।
‘प्रेत शताब्दी’ में सामान्य-जन की मुक्ति की लड़ाई तीन स्तरों पर लड़ी गई हैं। एक ओर निहित स्वार्थों की राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति की घिनौनी कोशिशें है। दूसरी ओर टूटे हुए लोगों की पस्त और भयावह तटस्थता हैं और तीसरी ओर हैं एक रास्ते की तलाश। यह तलाश प्रेत की भी हैं, नटी की भी हैं और यक्ष की भी है, अपने-अपने ढंग से। इस पुस्तक के कुछ पृष्ठ यहाँ देखें।
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