कहानी संग्रह >> माई का शोकगीत माई का शोकगीतदूधनाथ सिंह
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‘माई का शोकगीत’ समेत दूधनाथ सिंह की पाँच कहानियों का संग्रह
Maee Ka Shokgeet by Doodhnath Singh
‘माई का शोकगीत’ समेत इस संग्रह की पाँचों कहानियाँ इसका प्रमाण है कि दूधनाथ सिंह अपनी गद्य-भाषा पर कविता की तरह काम करते हैं। और इस भाषा के माध्यम से वह जिस कथा को पकड़ते हैं, वह हमारे जीवन का एक प्रामाणिक चित्र होता है।
‘हुँडार’ का निर्लज्ज और लम्पट चरित्र रायसाहब हो या ‘गुप्तदान’ के पांडे़जी, ये सब वे चरित्र हैं जो होते तो हमारे आसपास ही हैं, लेकिन उन पर अक्सर हमारी निगाह नहीं जाती। हमारे देखने की व्यवस्थासम्मत आदतों के चलते ये पात्र हमारी निगाह से छूटते रहते हैं, जब तक कि कोई हमारा ध्यान उधर न ले जाये। ‘हुँडार’ का ‘मैं’ रायसाहब के आगमन पर अपने ‘कई तरह के गुस्से’ का जिस प्रकार विवरण देता है, वह अनायास ही हमें कुछ ऐसी उपस्थितियों के प्रति सजग कर देता है, जो अन्यथा हमें नहीं दिखतीं।
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘माई का शोकगीत’ स्त्रियों पर घरेलू हिंसा का रोमांचकारी दस्तावेज है। इसमें एक स्त्री की कथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की कथा के समानांतर चलती है और पाठक के सामने यह सवाल छोड़ देती है कि राष्ट्र के इतिहास के समक्ष क्या व्यक्ति की इतिहास कोई अहमियत नहीं रखता?
‘हुँडार’ का निर्लज्ज और लम्पट चरित्र रायसाहब हो या ‘गुप्तदान’ के पांडे़जी, ये सब वे चरित्र हैं जो होते तो हमारे आसपास ही हैं, लेकिन उन पर अक्सर हमारी निगाह नहीं जाती। हमारे देखने की व्यवस्थासम्मत आदतों के चलते ये पात्र हमारी निगाह से छूटते रहते हैं, जब तक कि कोई हमारा ध्यान उधर न ले जाये। ‘हुँडार’ का ‘मैं’ रायसाहब के आगमन पर अपने ‘कई तरह के गुस्से’ का जिस प्रकार विवरण देता है, वह अनायास ही हमें कुछ ऐसी उपस्थितियों के प्रति सजग कर देता है, जो अन्यथा हमें नहीं दिखतीं।
संग्रह की शीर्षक कहानी ‘माई का शोकगीत’ स्त्रियों पर घरेलू हिंसा का रोमांचकारी दस्तावेज है। इसमें एक स्त्री की कथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की कथा के समानांतर चलती है और पाठक के सामने यह सवाल छोड़ देती है कि राष्ट्र के इतिहास के समक्ष क्या व्यक्ति की इतिहास कोई अहमियत नहीं रखता?
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