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भाषा एवं साहित्य >> सूर संचयिता

सूर संचयिता

मैनेजर पाण्डेय

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2012
पृष्ठ :168
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8609
आईएसबीएन :9788126722570

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"सूरदास: भक्ति, जीवन और दिव्य संगीत का सामंजस्यपूर्ण संगम"

सूर-साहित्य के अध्ययन, मनन और विश्लेषण से चिन्तनशील मानस को सहज ही यह निष्कर्ष प्राप्त हो जाता है कि सूरदास में जन-जीवन के मूल-तत्त्वों का ज्ञान और भक्ति की भावना का बोध इस प्रकार समन्वित है कि संपूर्ण सूर-साहित्य में व्यक्ति है और समाज भी, राग है और विराग भी, भावविह्वल हृदय है और चिन्तनशील मस्तिष्क भी। उसमें गृहस्थ और साधु तथा भक्त और भावुक सबकी भावना और आदर्श का समन्वय है। सूर-साहित्य की सीमा में प्रवेश करने वाले प्रत्येक सहृदय को उसमें उसके मन एवं आत्मा की आत्मीय भंगिमाएँ मिलेंगी, उसमें अतीत की झाँकी, वर्तमान का संबल और भविष्य का आदर्श प्राप्त होगा। सूरदास ने जीवन के विभिन्न उदात्त पक्षों का उद्घाटन कर उन्हें काम्य और कमनीय बना दिया है तथा संपूर्ण रागों का कृष्णार्पण कर उन्हें दिव्य आभा से मंडित कर दिया है।

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